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Monday 1 October 2018

महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े 10 प्रेरक प्रसंग

Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang | Hindi | Story | Kahani | Short Shtories

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

गाँधी को बापू बना दिया

साबरमती आश्रम की बात है। एक दिन रात को एक चोर आ गया। चोर नासमझ था, नहीं तो आश्रम में चुराने के लिए भला क्या था!

संयोग से कोई आश्रमवासी जग गया उसने धीरे से कुछ और लोगों को जगा दिया। सबने मिलकर चोर को पकड़ लिया और कोठरी में बंद कर दिया।

व्यवस्थापक ने प्रातः यह खबर बापू को दी और चोर को उनके सामने पेश किया। बापू ने निगाह उठाकर उसकी ओर देखा। वह नौजवान सिर झुकाए आतंकित खड़ा था कि बापू उससे नाराज हैं और हो सकता है कि उसे पुलिस को सौंप दें।

बापू ने जो किया, उसकी तो वह स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता था। बापू ने उससे पूछा, “क्यों तुमने नाश्ता किया?”

कोई उत्तर न मिलने पर उन्होंने व्यवस्थापक की ओर प्रश्नभरी मुद्रा में देखा। व्यवस्थापक ने कहा, “बापू! यह तो चोर है, नाश्ते का सवाल ही कहाँ उठता है।”

बापू का चेहरा गंभीर हो आया। दुःख भरे स्वर में बोले, “क्यों क्या यह इंसान नहीं है? इसे ले जाओ और नाश्ता कराओ।”

व्यवस्थापक, जिसे चोर मानकर लाए थे, वह अब एक क्षण में इन्सान बन गया था। उसकी आँखों में प्रायश्चित के आँसू बह रहे थे।

करुणा ने बुद्ध को बुद्ध बनाया, प्रेम ने महावीर को महावीर बनाया, किंतु करुणा और प्रेम ने गाँधी को बापू बना दिया।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

गाँधी जी और टोपी

महात्मा गाँधी से एक मारवाड़ी सेठ भेंट के लिए आये। वह बड़ी-सी पगड़ी बाँधे थे और मारवाड़ी वेशभूषा में थे। बात-चीत के बीच उन्होंने पूछा– “गाँधीजी। आपके नाम पर लोग देश भर में गाँधी टोपी पहनते हैं और आप इसका इस्तेमाल नहीं करते, ऐसा क्यों?”

गाँधीजी मुस्कराते हुये बोले- “आपका कहना बिल्कुल ठीक है, पर आप अपनी पगड़ी को उतारकर तो देखिये। इसमें कम से कम बीस टोपियाँ बन सकती हैं। जब बीस टोपियों के बराबर कपड़ा आप जैसे धनी व्यक्ति अपनी पगड़ी में लगा सकते हैं तो बेचारे उन्नीस आदमियों को नंगे सिर रहना ही पड़ेगा। उन्हीं उन्नीस आदमियों में मैं भी एक हूँ।”

गाँधीजी का उत्तर सुनकर सेठजी को कुछ कहते न बना। वह चुप हो गये। पर गाँधीजी ने अपनी बात को जारी रखते हुये कहा– “अपव्यय संचय की वृति अन्य व्यक्तियों को अपने हिस्से से वंचित कर देती है।” तो मेरे जैसे अनेक व्यक्तियों को टोपी से वंचित रहकर उस संचय की पूर्ति करनी पड़ती है।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

नक़ल करना अपराध है

बात उन दिनों की है जब गाँधीजी अल्फ्रेड हाईस्कूल में अपनी आरंभिक शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। एक बार उनके स्कूल में निरीक्षण के लिए विद्यालय निरीक्षक आये हुए थे। उनके शिक्षक ने छात्रो को हिदायत दे रखी थी की निरीक्षक पर आप सब का अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए। जब निरीक्षक गाँधी जी की क्लास में आये तो उन्होंने बच्चो की परीक्षा लेने के लिए छात्रो को पांच शब्द बताकर उनके वर्तनी लिखने को कहा।

निरीक्षक की बात सुनकर सारे बच्चे वर्तनी लिखने में लग गये। जब बच्चे वर्तनी लिख ही रहे थे की शिक्षक ने देखा की गाँधी जी ने एक शब्द की वर्तनी गलत लिखी है। उन्होंने गाँधी जी को संकेत कर बगल वाले छात्र से नक़ल कर वर्तनी ठीक लिखने को कहा। किन्तु गाँधी जी ऐसा कहाँ करने वाले थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें नक़ल करना अपराध लगा। निरीक्षक के जाने के बाद उन्हें शिक्षक से डांट खानी पड़ी।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

कभी झूठ मत बोलो

उन्ही दिनों की एक दूसरी घटना है। गाँधी जी के बड़े भाई कर्ज में फंस गये थे। अपने भाई को कर्ज से मुक्त कराने के लिए गाँधी जी ने अपना सोने का कड़ा बेंच दिया और उसके पैसे अपने भाई को दे दिए। मार-खाने के डर से गाँधी जी ने अपने माता-पिता से झूठ बोला कि कड़ा कही गिर गया है। किन्तु झूठ बोलने के कारण गाँधी जी का मन स्थिर नहीं हो पा रहा था। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था और उनकी आत्मा उन्हें बार – बार यह बोल रही थी की झूठ नहीं बोलना चाहिए।

गाँधी जी ने अपना अपराध स्वीकार किया और उन्होंने सारी बात एक कागज में लिखकर पिताजी को बता दी। गाँधी जी ने सोचा की जब पिता जी को मेरे इस अपराध की जानकारी होगी तो वह उन्हें बहुत पीटेंगे। लेकिन पिता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। वह बैठ गये और उनके आँखों से आंसू आ गये। गाँधी जी को इस बात से बहुत चोट लगी। उन्होंने महसूस किया की प्यार हिंसा से ज्यादा असरदार दंड दे सकता है।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

सिक्के का मूल्य

गाँधी जी देश भर में भ्रमण कर चरखा संघ के लिए धन इकठ्ठा कर रहे थ। अपने दौरे के दौरान वे उड़ीसा में किसी सभा को संबोधित करने पहुंचे। उनके भाषण के बाद एक बूढ़ी ग़रीब महिला खड़ी हुई, उसके बाल सफ़ेद हो चुके थे, कपडे फटे हुए थे और वह कमर से झुक कर चल रही थी, किसी तरह वह भीड़ से होते हुए गाँधी जी के पास तक पहुची।

”मुझे गाँधी जी को देखना है” उसने आग्रह किया और उन तक पहुच कर उनके पैर छुए।

फिर उसने अपने साड़ी के पल्लू में बंधा एक ताम्बे का सिक्का निकाला और गाँधी जी के चरणों में रख दिया। गाँधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे। उन्होंने गाँधी जे से वो सिक्का माँगा, लेकिन गाँधी जी ने उसे देने से मना कर दिया।

”मैं चरखा संघ के लिए हज़ारों रुपये के चेक संभालता हूँ”, जमनालाल जी हँसते हुए कहा ” फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेके यकीन नहीं कर रहे हैं।”

”यह ताम्बे का सिक्का उन हज़ारों से कहीं कीमती है,” गाँधी जी बोले।

”यदि किसी के पास लाखों हैं और वो हज़ार-दो हज़ार दे देता है तो उसे कोई फरक नहीं पड़ता। लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा-पूँजी थी। उसने अपना संसार धन दान दे दिया। कितनी उदारता दिखाई उसने… कितना बड़ा बलिदान दिया उसने! इसीलिए इस ताम्बे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ से भी अधिक है।”

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

गलती की है तो माफ़ी माँगो

गाँधी जी एक बार अपनी यात्रा पर निकले थे। तब उनके साथ उनके एक अनुयायी आनंद स्वामी भी थे। यात्रा के दौरान आनंद स्वामी की किसी बात को लेकर एक व्यक्ति से बहस हो गई और जब यह बहस बढ़ी तो आनंद स्वामी ने गुस्से में उस व्यक्ति को एक थप्पड़ मार दिया।

जब गाँधी को इस बात का पता चला तो उन्हें आनंद जी की यह बात बहुत बुरी लगी। उन्हें आनंद जी का एक आम आदमी को थप्पड़ मारना अच्छा नहीं लगा। इसलिए उन्होंने आनंद जी को बोला की वह इस आम आदमी से माफ़ी मांगे। गाँधी जी ने उनको बताया की अगर यह आम आदमी आपकी बराबरी का होता तो क्या आप तब भी इन्हें थप्पड़ मार देते।

गाँधी जी की बात सुनकर आनंद स्वामी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने उस आम आदमी से इस बात को लेकर माफ़ी मांगी।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

संयम की सीख

1926 की बात है। गांधी जी दक्षिण भारत की यात्रा पर थे। उनके साथ अन्य सहयोगियों के अलावा काकासाहेब कालेलकर भी थे। वे सुदूर दक्षिण में नागर-कोइल पहुंचे। वहां से कन्याकुमारी काफ़ी पास है। इस दौरे के पहले के किसी दौरे में गांधी जी कन्याकुमारी हो आए थे। वहां के मनोरम दृष्य ने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया था। गांधी जहां ठहरे थे, उस घर के गृह-स्वामी को बुलाकर उन्होंने कहा, “काका को मैं कन्याकुमारी भेजना चाहता हूं। उनके लिए मोटर का प्रबंध कर दीजिए।”

कुछ देर के बाद उन्होंने देखा कि काकासाहेब अभी तक घर में ही बैठे हैं, तो उन्होंने गृहस्वामी को बुलाया और पूछा, “काका के जाने का प्रबंध हुआ या नहीं?”

किसी को काम सौंपने के बाद उसके बारे में दर्याफ़्त करते रहना बापू की आदत में शुमार नहीं था। फिर भी उन्होंने ऐसा किया। यह स्पष्ट कर रहा था कि कन्याकुमारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे। स्वामी विवेकानन्द भी वहां जाकर भावावेश में आ गए थे और समुद्र में कूद कर कुछ दूर के एक बड़े पत्थर तक तैरते गए थे।

काकासाहेब ने बापू से पूछा, “आप भी आएंगे न?”

बापू ने कहा, “बार-बार जाना मेरे नसीब में नहीं है। एक दफ़ा हो आया इतना ही काफ़ी है।”

इस जवाब से काकासाहेब को दु:ख हुआ। वे चाहते थे कि बापू भी साथ जाएं। बापू ने काकासाहेब को नाराज देख कर गंभीरता से कहा, “देखो, इतना बड़ा आंदोलन लिए बैठा हूं। हज़ारों स्वयंसेवक देश के कार्य में लगे हुए हैं। अगर मैं रमणीय दृश्य देखने का लोभ संवरण न कर सकूं, तो सबके सब स्वयंसेवक मेरा ही अनुकरण करने लगेंगे। अब हिसाब लगाओ कि इस तरह कितने लोगों की सेवा से देश वंचित होगा? मेरे लिए संयम रखना ही अच्छा है।”

Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

छूत – अछूत को त्याग दो

यह बात उन दिनों की है जब महात्मा गांधी जी के पिता जी का तबादला पोरबंदर से राजकोट हो गया था। जहाँ गाँधी जी रहते थे वही उनके पड़ोस में एक सफाईकर्मी भी रहता था।

गाँधी जी उसे बहुत पसंद करते थे। एक बार किसी समारोह के मौके पर गाँधी जी को मिठाई बाँटने का काम सौंपा गया। गाँधी जी सबसे पहले मिठाई पड़ोस में रहने वाले सफाईकर्मी को देने लगे।

जैसे ही गाँधी जी ने उसे मिठाई दी वह गाँधी जी से दूर हटते हुए बोला कि ” मैं अछूत हूँ इसलिए मुझे मत छुएं ”. गाँधी जी को यह बात बुरी लगी और उन्होंने उस सफाई वाले का हाथ पकड़कर मिठाई पकड़ा दी और उससे बोले कि ” हम सब इंसान है, छूत – अछूत कुछ भी नहीं होता। गाँधी जी बात सुनकर सफाईकर्मी के आँसू निकल गये।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

एक अंग्रेज का गांधी को पत्र

एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पत्र लिखा। उसमें गालियों के अतिरिक्त कुछ था नहीं।

गांधीजी ने पत्र पढ़ा और उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया। उसमें जो आलपिन लगा हुआ था उसे निकालकर सुरक्षित रख लिया।

वह अंग्रेंज गांधीजी से प्रत्यक्ष मिलने के लिए आया। आते ही उसने पूछा- महात्मा जी! आपने मेरा पत्र पढ़ा या नहीं?
महात्मा जी बोले- बड़े ध्यान से पढ़ा है।

उसने फिर पूछा- क्या सार निकाला आपने?

महात्मा जी ने कहा- एक आलपिन निकाला है। बस, उस पत्र में इतना ही सार था। जो सार था, उसे ले लिया। जो असार था, उसे फेंक दिया।

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Mahatma Gandhi Ke 10 Prerak Prasang

जब गांधी जी ने दी कर्म बोने की सलाह

एक बार गांधी जी एक छोटे से गांव में पहुंचे तो उनके दर्शनों के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी। गांधीजी ने लोगों से पूछा, ‘इन दिनों आप कौन-सा अन्न बो रहे हैं और किस अन्न की कटाई कर रहे हैं?’
तभी भीड़ में से एक वृद्ध व्यक्ति आगे आया और करबद्ध हो बोला, ‘आप तो बड़े ज्ञानी हैं। क्या आप इतना भी नहीं जानते कि ज्येष्ठ (जेठ) मास में खेतों में कोई फसल नहीं होती। इन दिनों हम खाली रहते हैं।

गांधी जी ने पूछा, ‘जब फसल बोने व काटने का समय होता है, तब क्या बिलकुल भी समय नहीं होता?’

वृद्ध ने जवाब दिया, ‘उस समय तो हमें रोटी खाने का भी समय नहीं होता।

गांधी जी बोले, ‘तो क्या इस समय तुम बिलकुल निठल्ले हो और सिर्फ गप्पें हांक रहे हो। यदि तुम चाहो तो इस समय भी कुछ बो और काट सकते हो।’
तभी कुछ गांव वाले बोले, ‘कृपा करके आप ही बता दीजिए कि हमें क्या बोना और क्या काटना चाहिए?’

गांधी जी ने गंभीरतापूर्वक कहा –

आप लोग कर्म बोइए और आदत को काटिए,
आदत को बोइए और चरित्र को काटिए,
चरित्र को बोइए और भाग्य को काटिए,
तभी तुम्हारा जीवन सार्थक हो पाएगा।

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