भविष्य में कृषि को पारिस्थितिकी, जलवायुपरक, आर्थिक, सामाजिक, समता और न्याय तथा ऊर्जा और रोजगारपरक चुनौतियां विश्व स्तर पर झेलनी होंगी। इसके लिए आवश्यकता होगी नवोन्मेष की, प्रथम श्रेणी की तकनीकों के विकास की और फिर उन्हें प्रसारित करके गुणवत्तापूर्ण उत्पादों में बदलने की जो विश्व-स्पर्ध का मुकाबला कर पाएं और भरपूर मुनाफा कमाकर कृषि में जुटी जनता के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठा सकें। यह तभी संभव होगा, जब अनुसंधान और विकास गति तेज की जाएगी, प्रबंध कौशल में अभिवृद्धि की जाएगी और संसाधनों के आवंटन के साथ-साथ उनका समुचित और कारगर सदुपयोग किया जाएगा।
धान
धान की शेष पकी फसल की कटाई कर लें।
गेहूं
धान की कटाई के बाद गेहूँ के लिए खेत की तैयारी तत्काल कर लें। देख लें कि मिट्टी भुरभुरी हो जाये और ढेले न रहने पायें।
गेंहूँ में बोआई का सबसे अच्छा समय 15 से 30 नवम्बर तक का है। इस बीच गेहूँ की बोआई हर हालत में पूरी कर लें।
प्रमाणित और शोधित बीज ही बोयें।
बीज शोधित न हो तो प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कैप्टान अथवा 25 ग्राम थीरम से शोधित कर लें।
यू.पी.डब्ल्यू.-343, एच.डी.-2888, डी.बी.डब्ल्यू-39, यू.पी.-2382, एच.यू.डब्ल्यू-510 गेहूँ की उपयुक्त किस्में हैं।
बोआई 20-23 सेमी की दूरी पर कतारों में हल के पीछे कूड़ों में या सीड ड्रिल से करें। इसमें प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा बीज लगेगा।
प्रति हेक्टेयर 60 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फेट व 40 किग्रा पोटाश बोआई के समय प्रयोग करें। यदि खरीफ में खेत परती रहा हो या दलहनी फसल ली गयी हो तो 60 किग्रा की जगह कुल 50 किग्रा नाइट्रोजन डालना होगा। हां, अगर हरी खाद का प्रयोग किया गया है तो केवल 40 किग्रा नाइट्रोजन पर्याप्त होगा।
अगर मिटटी में जस्ते की कमी हो तो प्रति हेक्टेयर 25 किग्रा जिंक सल्फेट बोआई के पहले ही अनितम जुताई के समय खेत में मिला दें।
खाद और बीज एक साथ डालने के लिए फर्टी-सीड ड्रिल का प्रयोग करना अच्छा होगा।
अगर गेहूँ के साथ राई की सह फसली करनी हो, तो गेहूँ की प्रत्येक 9 कतार के बाद एक कतार राई बो सकते है। याद रहे राई की बोआई छिटकवां तरीके से न करें।
बोआई के 20-25 दिन बाद 6-8 सेमी या 3- 4 अंगुल की सिंचाई करना जरूरी है।
अगर खेत समतल है तो सिंचाई से पहले, वरना सिंचाई के 3-4 दिन बाद 40-60 किग्रा नाइट्रोजन की टाप ड्रेसिंग कर दें।
जौं
पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्र होने की दशा में जौं की बोआई 15 नवम्बर तक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा बुन्देलखण्ड के इलाके में 15 से 30 नवम्बर के मध्य पूरी कर लें।
बोआई 20 सेमी की दूरी पर 5-6 सेमी की गहराई में कूडों में करें।
यदि बीज प्रमाणित न हो तो बोआई से पूर्व कैप्टान या थीरम से उपचारित करें।
बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 75 किग्रा बीज की जरूरत होगी।
बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फेट तथा आवश्यकता होने पर 20 किग्रा पोटाश प्रयोग करें।
लाही
बोआई के 15-20 दिन पर अथवा हर हालत में सिंचाई के पहले पौधों की छंटाई कर लें। पौधे घने होने और खरपतवार बढऩे से लाही की उपज में 20-30 प्रतिशत की कमी हो सकती है। घने पौधों को निकालकर पौध से पौध की दूरी 10-15 सेमी कर लें।
बोआई के 30 दिन बाद सिंचाई करें। इसके बाद ओट आने पर प्रति हेक्टेयर 50 किग्रा नाइट्रोजन की टाप ड्रेसिंग करें।
पत्तियों को खाने वाली आरा मक्खी और बालदार गिडार का नियंत्रण करें।
राई
बोआई के 15-20 दिन के बाद घने पौधे की छँटनी करके पौधे की आपसी दूरी 15 सेमी कर लें।
बोआई के 5 सप्ताह के बाद पहली सिंचाई और फिर ओट आने पर प्रति हेक्टेयर 75 किग्रा नाइट्रोजन का छिड़काव करें।
कीटों की रोकथाम लाही की तरह ही करें।
चना
बोआई के 30-35 दिन के बाद निराई-गुड़ाई कर लें।
मटर
मटर की बोआई के 20 दिन के बाद निराई कर लें। बोआई के 40-45 दिन बाद पहली सिंचाई करें। फिर 6-7 दिन बाद ओट आने पर हल्की गुड़ाई भी कर दें।
मसूर
बोआई के लिए 15 नवम्बर तक का समय अच्छा है।
शेखर-2, शेखर-3, पंत मसूर-4 , पतं मसूर-5 या नरेन्द्र मसूर-1 प्रजातियाँ उपयुक्त हैं।
एक हेक्टेयर खेत में 40 किग्रा बीज की आवश्यकता होगी। ध्यान रहे कि बीज प्रमणित अथवा सत्य और शोधित हों।
प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फेट और पोटाश की आवश्यकता होगी।
अगर जिंक की कमी हो तो प्रति हेक्टेयर 25 किग्रा की दर से जिंक सल्फेट खेत की अनितम तैयारी के पहले जमीन में अच्छी तरह मिला दें।
बोआई 20-25 सेमी की दूरी पर कतारों में करें।
शीतकालीन मक्का
सिंचाई की सुनिशिचत व्यवस्था होने पर रबी मक्का की बोआई माह के मध्य तक पूरी कर लें।
मृदा परीक्षण न होने पर बोआई के समय सामान्यत : प्रति हेक्टेयर 40 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फेट व 40 किग्रा पोटाश और यदि भूमि में जिंक की कमी हो तो बोआई के पहले 25 किग्रा जिंक सल्फेट भूमि में अवश्य मिलाना चाहिए।
पहली निराई-गुड़ाई, बोआई के 20-25 दिन बाद करें जिससे खेत में खरपतवार न रहे।
बोआई के लगभग 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई कर दें।
पौधे के लगभग घुटने तक की ऊँचाई के होने या बोआई के लगभग 30-35 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 87 किग्रा यूरिया की टाप ड्रेसिंग कर दें।
शरदकालीन गन्ना
बोआई के 3-4 सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई कर लें।
बरसीम
बोआई के बाद 2-3 सिंचाई एक-एक हफ्ते पर और फिर आवश्यकतानुसार हर 20-25 दिन पर करते रहें।
बोआई के 45 दिनों के बाद पहली कटाई करें।
फसल कटाई के बाद फिर सें सिंचाई करनी होगी।
जई
नवम्बर का पूरा महीना चारे हेतु जई बोने के लिए अच्छा है।
जई की केन्ट, यू.पी.ओ.-94, यू.पी.ओ.-212, क्लेमिंग गोल्ड किस्में अच्छी हैं।
एक हेक्टेयर में 80-100 किग्रा बीज की जरूरत होगी।
सब्जियों की खेती
आलू की कुफरी बहार, कुफरी बादशाह, कुफरी अशोका, कुफरी सतलज, कुफरी आनन्द तथा लाल छिलके वाली कुफरी सिन्दूरी और कुफरी लालिमा मुख्य प्रजातियाँ हैं।
प्रसंस्करण हेतु आलू की कुफरी चिप्सोना-1 एवं चिपसोना-2 उपयुक्त प्रजातियां हैं।
आलू की बोआई यदि अक्टूबर में न हो पायी हो तो अब जल्दी पूरी कर लें।
अक्टूबर में बोये आलू की सिंचाई करें। बोआई के 25-30 दिन बाद 87-108 किग्रा यूरिया की टाप ड्रेसिंग करके मिथी चढ़ा देनी चाहिए।
सब्जी मटर की बोआई 15 नवम्बर तक कर सकते है । मटर की अर्किल, आजाद पी-1, आजाद पी-3 मुख्य प्रजातियां हैं।
सब्जी मटर के लिए प्रति हेक्टेयर 80-100 किग्रा बीज लगेगा। बोआई 30 सेमी की दूरी पर कतारों में करें।
ह्म्बोआई के समय सब्जी मटर में प्रति हेक्टेयर 60 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फेट व 30-40 किग्रा0 पोटाश प्रयोग करें।
नवम्बर में फ्रेन्चबीन, पालक, मेथी, धनिया, मूली की बोआई की जा सकती है। अक्टूबर में बोयी गयी इन सबिजयों की आवश्यकतानुसार निराई व सिंचाई करें।
टमाटर की बसन्तग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए पौधशाला में बीज की बोआई कर दें।
टमाटर की पूसा रूबी, पंजाब छुहारा, पन्त बहार उन्नत एवं पूसा हाइब्रिड-2, अविनाश-2 , नवीन, रूपाली व रशि में संकर किस्में अच्छी हैं।
एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए उन्नत किस्मों की 350-400 ग्राम और संकर किस्मों की 200-250 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।
लहसुन की बोआई यदि न हुई हो तो इस माह पूरी कर लें।
लहसुन के लिए यमुना सफेद (जी-282) प्रजाति उपयुक्त है।
लहसुन के खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 25-30 टन गोबर की खाद या 7-8 टन नादेप कम्पोस्ट मिला दें और 35-40 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फेट व 50 किग्रा पोटाश बोआई से पहले अनितम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।
पिछले माह बोये गये लहसुन की निराई- गुड़ाई तथा सिंचाई करें एवं बोआई के 40 दिन बाद 74 किग्रा यूरिया की प्रथम टाप ड्रेसिंग कर दें।
प्याज की रबी फसल के लिए पौधशाला में बीज की बोआई करें।
एग्रीफाउन्ड लाइट रेड, पूसा रेड प्रजातियां अच्छी हैं।
पौधशाला में बोने के लिए प्रति हेक्टेयर 8-10 किग्रा बीज पर्याप्त होता है।
फलों की खेती
आम एवं अन्य फलों के बाग में जुताई करके खरपतवार नष्ट कर दें।
आम के मिलीबग कीट के नियंत्रण हेतु तने और थाले के आसपास फालीडाल धूल का बुरकाव तथा तने के चारों और एल्काथीन की पथी लगायें।
नये लगें छोटे पेड़ों की कतारों के बीच में चनामटरमसूर की बोआई करें।
आम के पेड़ों में थालों की सफाई कर दें तथा सूखी एवं रोगग्रस्त टहनियों को काट दें।
अमरूद में छाल खाने वाले कीड़ों की रोकथाम डाइक्लोरोवास एक मिली प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छेदों में भरकर चि कनी मिटटी से लेप कर दें।
आंवले, नींबू, पपीता में सिंचाई करें।
आंवले की तुड़ाई एवं विपणन की व्यवस्था करें।
आंवले में दीमक से बचाव हेतु फोरेट 10 जी प्रति पौधा 25-30 ग्राम डालकर मिटटी में मिला दें।
आंवला में शूट गाल मेकर कीट से ग्रस्त टहनी को काटकर जला दें एवं पेड पर डाइमेथोएट 2 मिली एवं मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
ह्म्केले में प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया का प्रयोग करें तथा 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें।
केले मे पर्ण धब्बा एवं सडऩ रोग के लिए 1 ग्राम कार्बन्डाजिम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
पुष्प व सगन्ध पौधे
देशी गुलाब की कलम काटकर अगले वर्ष के स्टाक हेतु क्यारियों में लगा दें।
ग्लेडियोलस में स्थानीय मौसम के अनुसार सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई करें।
रजनीगंधा के स्पाइक की कटाई-छंटाई, पैकिंग, विपणन तथा पोषक तत्वों के मिश्रण का अंतिम चरणीय छिड़काव करें।
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