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Monday 4 February 2019

ये जो सियासत है: सीबीआई के सितारे इन दिनों गर्दिश में

अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी

लखनऊ। नामदार और कामदार मानी जाने वाली जांच एजेंसी सीबीआई के सितारे इन दिनों गर्दिश में हैं। आजादी के दौर में देश का केंद्र बिंदु रहा बंगाल एक बार फिर सियासी घमासान का अखाडा बन कर उभर रहा है। सीबीआई के बहाने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और फाइटर लेडी ममता बनर्जी ने सीधे तौर पर पीएम मोदी पर हमला तेज कर दिया है। सियासी विरोध की राजनीति संवैधानिक संस्थाओं तथा सियासी नफे नुकसान के बीच अभूतपूर्व तरीके से उलझ चुकी है। इसके बाद अब सभी की निगाहें देश के सर्वोच्च न्यायालय पर टिकी है ।

कभी अपने मोबाइल सिम को आधार से न जोड़ने तथा साल 2012 में एक रैली के दौरान शिलादित्य चौधरी नाम के शख्स को महज किसानों से जुड़े प्रश्न पूछने पर गिरफ्तार करवा चुकी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से आर-पार की लड़ाई का शंखनाद मेट्रो चैनल पर धरने पर बैठकर कर दिया है। वजह साफ है कि केंद्रीय सत्ता के नंबर एक की कुर्सी दौड़ में सियासी विरोध के जरिए क्षेत्रीय पार्टियां अपनी ताकत बढ़ाने में लगी हैं। पश्चिम बंगाल में रविवार शाम से जारी सियासी नौटंकी में सीबीआई तथा स्थानीय पुलिस के बीच हुए अभूतपूर्व टकराव को ममता बनर्जी ने बड़े ही खूबसूरती के साथ सियासी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। जहां से सीबीआई के नवागत निदेशक ऋषि शुक्ला समेत केंद्र की बीजेपी सरकार के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है।

आगामी आम चुनाव के सहारे प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही बसपा सुप्रीमो मायावती, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित लेफ्ट फ्रंट ममता के सत्याग्रह पांश में फसकर लाचार नजर आने लगे हैं। देश की सियासत में विरोध करने का यह तरीका अराजकता को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता है। सत्तर के दशक में लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने भी केंद्र की इंदिरा सरकार के विरोध में देश भर में आंदोलन चलाए थे। जिसकी कीमत इंदिरा गांधी को सत्ता गवा कर चुकानी भी पडी थी। संघीय ढांचे में केंद्र सरकार के विरोध में ममता बनर्जी ने जिस तरह की कार्यशैली को अपनाया है उससे दो संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराहट के नए रास्ते खुल गए हैं। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार तथा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच सियासी घमासान के दौरान ही सीबीआई चीफ ऋषि शुक्ला की ताजपोशी अजब संयोग है। सियासत के चौसर में लगातार घिरती जा रही सीबीआई के लिए अपने साख को बचाए रखना एक चुनौती सरीखा होता जा रहा है।

सीबीआई का बिवादो का नाता उसके जन्म से ही चोली दामन की तरह जुड़ा रहा है । केंद्रीय सत्ता में काबिज रहे दल से इतर लगभग हर विरोधी दल गाहे-बगाहे सीबीआई पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप मढ़ते रहते हैं। केंद्र के इसारे पर सीबीआई की कार्यवाही जैसे तोहमतों से दो-चार रहने वाली एजेंसी के लिए ममता बनर्जी ने मुश्किलों का बीज काफी पहले तभी बो दिया था जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सीबीआई को अपने प्रदेश में किसी भी जांच को करने से रोकने की बात कही थी। नायडू की राहों पर चलते हुए पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने भी सीबीआई के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी सीबीआई पर प्रतिबंध प्रदेश सरकार ने लगा रखा है।

सीबीआई के बुरे दिनों की वजह दरअसल उसके जन्म कुंडली के अधिनियम में ही शामिल है। जिसे ढाल बनाकर यह तीन राज्य संघीय जांच एजेंसी को सचमुच का तोता बनाने में तुले हैं। सीबीआई गठन के कानून के मुताबिक किसी भी राज्य में उसकी कार्यवाही से पहले वहां की सरकार के सहमती का प्रावधान है। दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम 1946 के तहत धारा 5 के मुताबिक देश के सभी क्षेत्रों में सीबीआई को जांच का अधिकार प्राप्त है, लेकिन इसी के साथ धारा 6 में साफ है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना एजेंसी राज्य के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती। इसी धारा का सहारा लेकर ममता ने रविवार को सीबीआई तथा कोलकाता पुलिस के बीच टकराहट का सियासी फायदा उठाते हुए इसे ममता बनाम मोदी में बदल दिया। सियासी जानकारों की माने तो ममता इस तरह के रिस्क लेने में माहिर राजनेता मानी जाती है। स्वच्छ और जुझारू छवि की ममता बखूबी जानती हैं कि हालिया आम चुनाव में कांग्रेस समेत सभी गठबंधन केंद्र की सत्ता में काबिज होने का सपना बुन रहे हैं। जिसमें कांग्रेस पहले से ही अलग-थलग पड़ चुकी है, तो वहीं सपा- बसपा गठबंधन पर सीबीआई के साथ ही ईडी का साया मंडरा रहा है। भ्रष्टाचार की आंच में झुलस रहे सियासी दलों से इतर ममता बनर्जी ने मास्टर स्ट्रोक चलते हुए पश्चिम बंगाल में सीबीआई के पांच अधिकारियों को थाने में बिठवाकर सीधे तौर पर अपनी ताकत का एहसास दिला दिया है।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से देश की जनता परेशान है जैसे बयान के बहाने ममता ने अपने भावी रणनीति की चाल भी चल दी है।

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