अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी
मुख्यमंत्री प्रदेश में रामराज्य की बयार बहाने का दावा करते हैं। शासन स्तर पर न्यूनतम भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए भ्रष्ट अधिकारियों की कमर तोड़ने की बजाय लचीला बनाने की मंशा रखते हैं। उनके इस नेक मंशा पर वर्ष 1823 में बने सिंचाई विभाग ने ही बंदरबांट की नहर बहा दी है।
महज बंदरबांट और वसूली के चक्कर में आपदा राहत फंड (सीआरएफ) व 2711 बाढ़ अनुरक्षण मद का फंड डायवर्जन कर करोड़ों की रकम इधर से उधर कर दी गई।
विभागीय प्रमुख सचिव से लेकर प्रमुख अभियंता सिंचाई तक को पूरी जानकारी में होने के बावजूद अब मामले को ठंडे बस्ते में डालने की पूरी तैयारी है। कार्रवाई के नाम पर विभाग ने बड़ों को बचाते हुए महज जूनियर इंजीनियरों पर कार्रवाई को लेकर पत्र लिखा है।
मजेदार तथ्य है कि विभाग ने जिन 8 अधिकारियों पर धनराशि का डायवर्जन कर देनदारीया सृजित करते हुए कार्रवाई की संस्तुति की है,उनमें से अब तक एक की मृत्यु तथा पांच सेवानिवृत्त हो चुके हैं। कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति करते हुए सिंचाई और जल संसाधन अनुभाग 5 के पत्र के अनुसार धनराशि डायवर्जन का सारा ठीकरा निचले स्तर के 2 अवर अभियंता आर एन वर्मा व पी के यादव पर डाल दिया गया। जबकि जानकारों का कहना है कि फंड डायवर्जन में अवर अभियंता की कोई भूमिका ही नहीं होती। ऐसे में विभाग की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगने लगे हैं।
फंड डायवर्जन के इस खेल की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बसपा कार्यकाल के दौरान वर्ष 2011 में शाहजहांपुर के गंगा नदी ढाई तट पर तकरीबन 70 गांवो को बाढ़ से बचाने के लिए बांध पर आपदा राहत निधि व 2711 मद से लगभग 10 करोड़ 57 लाख 41 हजार रुपए के कार्य कराने का आदेश जारी किया गया था। तत्कालीन प्रमुख सचिव एवं राहत आयुक्त के के सिंह ने 22 जुलाई 2011 ने तत्कालीन जिला अधिकारी शाहजहांपुर को धन आवंटन के लिए लिखे आदेश पत्र में 14 बिंदुओं का जिक्र किया है। जिसमें बिंदु संख्या 7 पर स्पष्ट किया गया है कि सीआरएफ से स्वीकृत उक्त धनराशि का अन्य किसी भी विभागीय कार्य हेतु कदापि प्रयोग नहीं किया जाएगा। बावजूद इसके तत्कालीन अधिशासी अभियंता (अब दिवंगत) बीके सिंह सहित अन्य अधिकारियों ने आवंटित रकम का डायवर्जन कर दिया। जिसके चलते कार्यदाई संस्था का भुगतान खटाई में पड़ गया।
तकरीबन 7 साल बीत जाने के बावजूद भुगतान के लिए कार्यदाई संस्था एसके ट्रेडर्स तथा अन्य को सिंचाई विभाग से कागजो का पुलिंदा और उम्मीदों का झुनझुना ही मिल सका है। जबकि फंड डायवर्जन तथा काल्पनिक कार्य अनुबंध को आधार बनाकर अब तक जिम्मेदारों ने अपने चहेते ठेकेदारों के नाम पर करोड़ों का भुगतान कर दिया। इस खेल में सिंचाई विभाग के आला अधिकारियों से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारियों की संलिप्तता उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर स्पष्ट होती है।
उपलब्ध दस्तावेज कहते है कि पिछली सपा सरकार में शारदा नहर खंड शाहजहांपुर के अंतर्गत वर्ष 2012-13 में एसके ट्रेडर्स के ठेकेदार शिव कुमार सिंह तथा अन्य फर्मों ने विभिन्न अनुबंधों के तहत करोड़ो रुपए का काम करवाया था। जिसके अंतर्गत सिंचाई विभाग ने ढाई घाट के अतिरिक्त तटबंध के किमी 0.100 से 0.950 के बीच तक सुरक्षा योजना के तहत विभिन्न फर्मो को कार्य आवंटित किया। इन्ही कार्यदाई संस्थाओ मे से एक ठेकेदार एसके सिंह का आरोप है कि काम के भुगतान के लिए विभागीय अमला अस्सी फीसद तक के कमीशन की मांग कर रहा है। पीड़ित ठेकेदार के अनुसार उन्होंने इसकी शिकायत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक से की है।
बावजूद इसके पारदर्शिता का दम भरने वाली योगी सरकार पर सिंचाई विभाग का भ्रष्ट अफसर तंत्र ज्यादा ही भारी साबित हो रहा है। इस पूरे प्रकरण में विभागीय मनमानी तथा बकाया भुगतान में कमीशन की बात के पुख्ता साक्ष्य के तौर पर पीड़ित पक्ष तथा सिंचाई विभाग के अधिकारियों की बातचीत का वीडियो रिकॉर्डिंग भी कम दिलचस्प नहीं है। जिसमें मुख्य अभियंता एसपी जैन से लेकर विभाग के कई अधिकारियों ने पीड़ित से कमीशन और हिसाब किताब सेटल करने की बात कही है।
उपलब्ध एक क्लिप में कमीशन को लेकर विभागीय अधिकारियों के बीच आपसी नोकझोंक का दृश्य योगी सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त जीरो टॉलरेंस की हवा निकालने वाला है। फंड डायवर्जन के बहाने सरकारी धन के इस बंदरबांट में विभागीय अधिकारियों ने कोर्ट को भी गुमराह करने की पूरी कोशिश की। जिसको लेकर निचली अदालत में विभाग के 6 अधिकारियों पर धारा 340 के तहत प्रकरण चल रहा है। प्रकरण से संबंधित शिकायत मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर भी दर्ज कराई गई।
जांच आख्या लगाते हुए मुख्य अभियंता सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग बरेली प्रवीण कुमार ने 26 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट में पीड़ित ठेकेदार के भुगतान को लेकर महज आश्वासन का हवाला दिया। वहीं दूसरी तरफ पीड़ित को घूस की शिकायत के लिए शासन के उच्च अधिकारियों या सतर्कता विभाग से संपर्क करने की सलाह भी दे डाली। हालांकि अभियंता ने भुगतान के लिए घूस (कमीशन) मांगने की शिकायत को आधारहीन बताया। इसी आख्या के हू-बहू शब्दों में अधीक्षण अभियंता सिंचाई कार्य मंडल सीतापुर ने 24 दिसंबर 2018 को अपनी जांच आख्या में अवशेष भुगतान देनदारियां मद संख्या 2711 (बाढ अनुरक्षण) में तकरीबन 88 लाख और सीआरएफ मद से 20 लाख रुपए के बकाया भुगतान के लिए विभागीय मांग की बात स्वीकारी है। आख्या में अधीक्षण अभियंता ने पैसे की उपलब्धता होने पर भुगतान करने तथा घूस (कमीशन) की मांग को आधारहीन बताया है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
फंड डायवर्जन में संलिप्त जिम्मेदारों पर कार्यवाही की जानकारी के लिए विभागाध्यक्ष विनय कुमार राठी से संवाददाता ने फोन पर संपर्क किया। उनके द्वारा बताया गया कि उक्त प्रकरण के विषय में प्रमुख अभियंता परिकल्प एवं नियोजन ध्यान सिंह से ही जानकारी मिल सकती है। प्रमुख अभियंता ध्यान सिंह ने फोन पर कहा कि प्रदेश बहुत बड़ा है। सभी फाइलों की जानकारी संभव नहीं है।

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