पहले फेज का चुनाव खत्म होने के साथ ही पार्टियों की निगाहें पूर्वी यूपी पर टिकीं
गोरखपुर पर बीजेपी का मंथन जारी, वाराणसी को लेकर गठबंधन-कांग्र्रेस संशय में
लखनऊ। लोकसभा चुनाव का पहला चरण संपन्न होने के साथ ही पश्चिमी यूपी की आठ संसदीय सीटों का जनमत भी मतपेटियों में बंद हो गया। अब सूबे में सभी राजनीतिक दलों की निगाहें पूर्वी यूपी की ओर टिक गई हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने पूर्वी यूपी के तकरीबन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशियों की सूची जारी तो पूर्वांचल की सीटों पर एक तरह से सस्पेंस खत्म हो गया। जबकि बीजेपी और कांग्रेस पहले ही पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पूर्वांचल में बिछी चुनावी बिसात पर जैसे ही एक-एक करके विभिन्न दलों के उम्मीदवारों का नाम तय हुआ तो राजनीतिक शह-मात का खेल शुरू हो गया। हालांकि अभी भी कई ऐसी सीटें हैं जहां पर सपा-बसपा गठबंधन तो कहीं कांग्रेस यह नहीं तय पा रही है कि आखिर चुनावी समर में किसे उतारा जाये। वहीं पूर्वांचल की इक्का-दुक्का सीटें भी हैं जिसको लेकर बीजेपी भी उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पायी है।
गौर करने वाली बात यह है कि सूबे के मुख्यमंत्री जिस क्षेत्र यानि गोरखपुर से ताल्लुक रखते हैं वहीं पर अभी सटीक प्रत्याशी पर मुहर नहीं लग सकी, जबकि गठबंधन ने यहां से रामभुआल निषाद को उतारा है। देवरिया से गठबंधन व कांग्रेस ने उम्मीदवार तय कर दिए हैं तो बीजेपी उम्मीदवार फाइनल नहीं कर पायी है। कुछ ऐसी ही स्थिति बीजेपी के साथ देवरिया और घोसी सीटों को लेकर भी है। भदोही और जौनपुर संसदीय सीटों पर भी भाजपा उम्मीदवारों के चयन को लेकर संशय की स्थिति में लग रही है। बहरहाल, ये तो रही बीजेपी की बात। देखा जाये तो पूर्वांचल की सभी सीटों पर प्रत्याशियों के ऊपर आखिरी मुहर लगाने के मामले में सपा-बसपा गठबंंधन और कांग्रेस के बीच भी पेंच फंसा हुआ दिख रहा है। बलिया और मछलीशहर सुरक्षित सीटों पर अभी तक कांग्रेस उम्मीदवारों को फाइनल नहीं कर पायी है। यही नहीं पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और सीएम योगी के गृह क्षेत्र गोरखपुर लोकसभा सीटों पर अभी तक कांग्रेस नेतृत्व प्रत्याशियों को उतारने का साहस नहीं दिखा सका है। जबकि गाहे-बगाहे यही देखने में आता है कि राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों पर अक्सर पीएम मोदी को खुली बहस के लिए तो ललकारते रहते हैं, मगर जब बात आमने-सामने की चुनावी टक्कर की आई तो वो अपने किसी सशक्त उम्मीदवार को फाइनल नहीं कर सके। वहीं सपा-बसपा गठबंधन के टिकट बंटवारे की स्थिति पर गौर करें तो अभी तक माया-अखिलेश वाराणसी, चंदौली, बलिया और महाराजगंज की सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम का चयन नहीं कर सके हैं। कुल मिलाकर पूर्वांचल के हालिया राजनीतिक परिदृश्य को लेकर यही कहा जा सकता है कि लगभग सीटों पर प्रत्याशियों का चयन हो गया, उम्मीदवारों की विधिवत घोषणा भी हो चुकी है…अब यहां की भाग्य विधाता यानि जनता-जनार्दन को यह तय करना है कि वो किस मुद्दे पर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए किसका राजतिलक करती है और किसे सबक सिखाती है।
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