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Wednesday 22 May 2019

नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी की तैयारी

ललित गर्ग

नरेन्द्र मोदी के सरकार बनाने एवं एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलने के संकेत विभिन्न स्तरों से मिल रहे हैं। ऐसे भी संकेत सामने आ रहे हैं कि भाजपा जीत का एक नया इतिहास बनाने जा रही हैं। मतदाता का असली निर्णय एवं पूरे देश का भविष्य 23 मई को सामने आ रहा हैं। लेकिन संकेतों एवं संभावनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि अब जो नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने वाली है, वह सशक्त होगी। लगभग तय है और एक्जिट पोल से मिले संकेतों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है और वह एक स्थिर सरकार बनने जा रही है। जब सरकार स्थिर और मजबूत होगी तो निश्चित ही नये भारत का निर्माण होगा, लोकतंत्र मजबूत होगा, जनता की परेशानियां कम होगी एवं राजनीतिक विसंगतियों एवं विषमताओं पर विराम लगेगा।

भले ही नयी सरकार के सम्मुख चुनौतियां हो, लेकिन विकास की संभावनाएं भी बहुत हंै। प्रश्न है कि आखिर नया भारत बनाने की आवश्यकता क्यों है? अनेक प्रश्न खडे़ हैं, ये प्रश्न इसलिये खड़े हुए हैं क्योंकि आज भी आम आदमी न सुखी बना, न समृद्ध। न सुरक्षित बना, न संरक्षित। न शिक्षित बना और न स्वावलम्बी। अर्जन के सारे स्रोत सीमित हाथों में सिमट कर रह गए। स्वार्थ की भूख परमार्थ की भावना को ही लील गई। हिंसा, आतंकवाद, जातिवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रीयवाद तथा धर्म, भाषा और दलीय स्वार्थों के राजनीतिक विवादों ने आम नागरिक का जीना दुर्भर कर दिया। इसलिये नयी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है कि वह सत्ता एवं राजनीति में धन एवं अपराध की धमक को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाये। इस दृष्टि से नरेन्द्र मोदी सरकार ने पिछली सरकार में जिस तरह के कठोर निर्णय लिये, वीवीपीआई संस्कृति पर शिकंजा कसा, लालबत्ती की कारों पर रोक लगायी, ऐसे ही कुछ कदम उठाये, ताकि आम आदमी स्वयं को भी उपेक्षित महसूस न करें।

नया भारत निर्मित करते हुए हमें अब युवा पीढ़ी के सपनों को टूटते-बिखरते हुए नहीं रहने देना है। युवापीढ़ी से भी अपेक्षा करते हैं कि वे सपने देखें, हमारी युवापीढ़ी सपने देखती भी है, वह अक्सर एक कदम आगे का सोचती है, इसी नए के प्रति उनके आग्रह में छिपा होता है विकास का रहस्य। कल्पनाओं की छलांग या दिवास्वप्न के बिना हम संभावनाओं के बंद बैग को कैसे खंगाल सकते हैं? सपने देखना एक खुशगवार तरीके से भविष्य की दिशा तय करना ही तो है। किसी भी युवा मन के सपनों की विविधता या विस्तार उसके महान या सफल होने का दिशा-सूचक है। स्वप्न हर युवा-मन संजोता है। यह बहुत आवश्यक है। खुली आंखों के सपने जो हमें अपने लक्ष्य का गूढ़ नक्शा देते हैं। लेकिन नयी बनने वाली सरकार की नीतियांे में इन युवा सपनों को सचमुच पंख लगने चाहिए, रोजगार एवं व्यापार को प्रोत्साहन मिलना चाहिए, देश निर्माण में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

आशा की जा रही है कि नयी गठित होने वाली सरकार विश्वास से भरी होगी, वह कुछ नयी संभावनाओं के द्वार खोलेगी, देश-समाज की तमाम समस्याओं के समाधान का रास्ता तलाशेगी, सुरसा की तरह मुंह फैलाती गरीबी, अशिक्षा, अस्वास्थ्य, बेरोजगारी और अपराधों पर अंकुश लगाने की दिशा में सार्थक प्रयत्न करेंगी, नोटबंदी, जीएसटी आदि मुद्दों से आम आदमी, आम कारोबारी को हुई परेशानी को कम किया जायेगा। व्यापार, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, ग्रामीण जीवन एवं किसानों की खराब स्थिति को सुधारते हुए हर व्यक्ति के जीवन में खुशहाली लाने का प्रयत्न होगा। नरेन्द्र मोदी की संवेदनाओं एवं स्पष्ट सरकारी योजनाओं में निश्चित ही नया भारत बनेगा और वह दुनिया पर शासन करेंगा।

गांधी, शास्त्री, नेहरू, जयप्रकाश नारायण, लोहिया के बाद राष्ट्रीय नेताओं के कद छोटे होते गये और परछाइयां बड़ी होती गईं। हमारी प्रणाली में तंत्र ज्यादा और लोक कम रह गया है। यह प्रणाली उतनी ही अच्छी हो सकती है, जितने कुशल चलाने वाले होते हैं। लेकिन कुशलता तो तथाकथित स्वार्थों की भेंट चढ़ गयी। लोकतंत्र श्रेष्ठ प्रणाली है। पर उसके संचालन में शुद्धता हो। लोक जीवन में ही नहीं लोक से द्वारा लोक हित के लिये चुने प्रतिनिधियों में लोकतंत्र प्रतिष्ठापित हो और लोकतंत्र में लोक मत को अधिमान मिले- यह नरेन्द्र मोदी सरकार से सबसे बड़ी अपेक्षा है। इस अपेक्षा को पूरा करके ही हम नया भारत बना सकेंगे।

भारत स्वतंत्र हुआ। आजादी के लिये और आजाद भारत के लिये हमने अनेक सपने देखें लेकिन वास्तविक सपना नैतिकता एवं चरित्र की स्थापना को देखने में हमने कहीं-ना-कहीं चूक की है। अब जो देश की तस्वीर बन रही है उसमें मानवीय एकता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, मैत्री, शोषणविहीन सामाजिकता, अंतर्राष्ट्रीय नैतिक मूल्यों की स्थापना, सार्वदेशिका निःशस्त्रीकरण का समर्थन आदि तत्त्व को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, जो कि जनतंत्र की स्वस्थता के मुख्य आधार हैं। नया भारत को निर्मित करते हुए हमें इन तत्त्वों को जन-जन के जीवन में स्थापित करने के लिये संकल्पित होना होगा। इसके लिये केवल राजनीतिक ही नहीं बल्कि गैर-राजनीतिक प्रयास की अपेक्षा है। इस दृष्टि से नरेन्द्र मोदी सरकार राजनीतिक शक्तियों की बजाय गैर-राजनैतिक शक्तियों को बल दें, यह अपेक्षित है।

हमारी सबसे बड़ी असफलता है कि हम 70 वर्षों में भी राष्ट्रीय चरित्र नहीं बना पाये। राष्ट्रीय चरित्र का दिन-प्रतिदिन नैतिक हृास हो रहा था। हर गलत-सही तरीके से हम सब कुछ पा लेना चाहते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कत्र्तव्य को गौण कर दिया था। इस तरह से जन्मे हर स्तर पर भ्रष्टाचार ने राष्ट्रीय जीवन में एक विकृति पैदा कर दी थी। देश में एक ओर गरीबी, बेरोजगारी और दुष्काल की समस्या है। दूसरी ओर अमीरी, विलासिता और अपव्यय है। देशवासी बहुत बड़ी विसंगति में जी रहे हैं। एक ही देश की धरती पर जीने वाले कुछ लोग पैसे को पानी की तरह बहाएँ और कुछ लोग भूखे पेट सोएं- इस असंतुलन की समस्या को नजरंदाज न कर इसका संयममूलक हल खोजना एवं संतुलित समाज रचना नयी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

यह शुभ लक्षण है कि भारत में यह एहसास उभर रहा है कि तथाकथित राजनेता या ऊपर से आच्छादित कुछ लोगों की प्रगति देश में आनन्द और शांति के लिये पर्याप्त नहीं है, इसलिये नरेन्द्र मोदी जैसे संवेदनशील और स्वाभिमानी व्यक्तियों में राजनीति का एक नया अहसास अंकुरित हो रहा है जिसमें संघर्ष और निर्माण के तत्व हैं। इसमें संदेह नहीं कि किसी भी व्यवस्था में आचरण की सीमाएं हुआ करती हैं। व्यवस्था में रहने वालों को इन सीमाओं का आदर करना सीखना चाहिए, तभी व्यवस्था बनी रह सकती है। हमारे राजनेता एक-दूसरे को अपनी-अपनी मर्यादा का पालन करने की सलाह दे रहे हैं, तो इसमें कहीं कुछ गलत नहीं है। गलत तो यह बात है कि हर कोई दूसरे के आचरण पर निगाह रखना चाहता है, खुद को देखना नहीं चाहता। इससे अराजकता की ऐसी स्थिति बनती है जिसमें न साफ दिख पाता है और न ही कुछ साफ समझ आता है। नयी गठित होने वाले लोकसभा में विपक्ष को इस दृष्टि से सार्थक भूमिका निर्वाह के लिये तत्पर होना चाहिए।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हर एक को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। राजनीतिक परिपक्वता और समय का तकाजा है कि हम दूसरों की ही नहीं अपनी मर्यादाएं भी समझें और उसके अनुरूप आचरण करें। यह भी जरूरी है कि हम अपने को दूसरों से अधिक उजला समझने की प्रवृत्ति से भी बचें। हमें यह भी एहसास होना चाहिए कि जब हम किसी की ओर एक उंगली उठाते हैं तो शेष उंगलियां हमारी स्वयं की ओर उठती हैं। हम स्वयं को दर्पण में देखने की आदत डालें। दूसरों को दागी बताने से पहले अपने दागों को पहचानें।

आज राजनीति को नहीं, शासन व्यवस्था को भी पवित्रता की जरूरत है। पवित्रता की भूमिका निर्मित करने के लिए पूर्व भूमिका है आत्मनिरीक्षण। किस सीमा तक विकारों के पर्यावरण से हमारा व्यक्तित्व प्रदूषित है? यह जानकर ही हम विकारों का परिष्कार कर सकते हैं। परिष्कार के लिए खुद से बड़ा कोई खुदा नहीं होता। महात्मा गांधी के शब्दों में-‘‘पवित्रता की साधना के लिए जरूरी है बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो।’’ भगवान महावीर ने संयमपूर्वक चर्या को जरूरी माना है। पवित्रता का सच्चा आईना है व्यक्ति का मन, विचार, चिंतन और कर्म।

इन आम चुनावों की एक बड़ी विडम्बना रही कि इसमें कोई भी कद्दावर राजनेताओं नहीं था जो यह सीख दे सकेे हैं कि सब अपने-अपने आईने में स्वयं को देखें और अपनी कमियों का परिष्कार करें। स्वयं के द्वारा स्वयं का दर्शन ही वास्तविक राजनीति का हार्द है। नैतिकता की मांग है कि सत्ता के लालच अथवा राजनीतिक स्वार्थ के लिए हकदार का, गुणवंत का, श्रेष्ठता का हक नहीं छीना जाए। राजनीति को शैतानों की शरणस्थली मानना एक शर्मनाक विवशता है। शासन को भी इससे मुक्त बनाना होगा, यह कतई जरूरी नहीं कि इस विवशता को हम हमेशा ढ़ोते ही रहें। इस भार से मुक्त भारत का निर्माण करने के लिये ही नरेन्द्र मोदी को आगे किया गया है, अब उन्हें भारत को सशक्त बनाना है, नया भारत निर्मित करना है।

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