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Sunday 29 October 2017

मुंबई में पहली बार उत्तर भारतीय फेरीवालों ने पीट डाले राजठाकरे के गुण्‍डे

मुंबई। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय फेरीवालों ने पहली बार राजठाकरे के गुण्‍डों को चुनौती दी है। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय हमेशा से ही पीटे जाते रहे हैं, ‘जय महाराष्ट्र’ के नारे के बीच उन्हें गालियां पड़ती रही हैं और उनको हमेशा चुप ही रहना पड़ा है। उत्तर भारतीय लोगों के खिलाफ हिंसा को राजनीतिक समर्थन शिवसेना और एमएनएस से मिलता रहा है और यह वर्ग महाराष्ट्र में डरकर रहने को मजबूर है। आज माहौल गर्म है क्योंकि पहली बार कमजोर फेरीवालों से चुनौती मिली है। मुंबई के मलाड में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के ‘गुंडे’ पीटे गए हैं और फेरीवाले छुपकर भागने के बजाय उनके सामने खड़े हो गए हैं। कांग्रेस नेता संजय निरूपम पर इन फेरीवालों को भड़काने का आरोप लगा है और 7 फेरीवालों की गिरफ्तारी हुई है। एमएनएस के गुंडों का डर क्यों खत्म हो गया और फेरीवाले भागने के बजाय लड़ने पर क्यों उतारू हो गए इसका जवाब फिल्म ‘मैरी कॉम’ के एक डॉयलॉग में है, ‘किसी को इतना भी मत डराओ, कि डर ही खत्म हो जाए।’
क्या है मामला?
राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अतिक्रमण हटाने के लिए फेरीवालों को शहर से हटाने की मांग करते हुए राज्य सरकार को 15 दिन का वक्त दिया था। ठाकरे ने कहा था कि अगर सरकार ने यह काम नहीं किया तो हम खुद अपने स्तर पर करेंगे। 16वें दिन से ही एमएनएस कार्यकर्ताओं द्वारा फेरीवालों से मारपीट और उनका सामान फेंकने की खबरें सामने आने लगीं, यानि कि एमएनएस के गुंडों ने कानून हाथ में लेकर अपना काम शुरू कर दिया। इसी क्रम में कई एमएनएस कार्यकर्ता मलाड स्टेशन के बाहर बैठे फेरीवालों को हटाने पहुंचे और गुंडागर्दी शुरू कर दी। इस बार दांव उल्टा पड़ गया और भागने के बजाय फेरीवाले भी मुकाबला करने उतर आए। फेरीवालों ने एमएनएस कार्यकर्ताओं को जमकर पीट दिया।
लगे हत्या की कोशिश के आरोप
एमएनएस कार्यकर्ताओं की पिटाई करने वाले फेरीवालों पर हत्या की कोशिश के आरोप लगाए गए और बाद में सात फेरीवालों को गिरफ्तार कर लिया गया। सुशांत नाम के एक कार्यकर्ता के सिर में गहरी चोट आई, जिसे आधार मानकर यह मामला दर्ज किया गया। मारपीट के आरोप में 18 एमएनएस कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में एक और एफआईआर कांग्रेस नेता संजय निरूपम पर भी दर्ज हुई है। निरूपम पर फेरीवालों को भड़काने और बिना इजाजत सभा करने का आरोप लगा है।
संजय निरूपम ने कहा था ‘लड़ो’
दरअसल, कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने शनिवार को एक सभा करके फेरीवालों से अत्याचार के खिलाफ लड़ने की बात कही थी। निरूपम ने फेरीवालों से कहा था, ‘अगर कोई कानून अपने हाथ में लेता है और पुलिस आपकी मदद के लिए नहीं आती तो आपको भी कानून हाथ में लेने का हक है।’ इस तरह संजय निरूपम ने फेरीवालों से चुपचाप न सहते रहने और आवाज उठाने को कहा था।
एमएनएस को चुनौती
फेरीवालों का हिंसा करना किसी भी तरह से सही नहीं है और यह बात एमएनएस कार्यकर्ताओं पर भी लागू होती है। हिंसा करने और कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं मिलना चाहिए, लेकिन राजनीतिक समर्थन की वजह से कार्यकर्ता हमेशा ही उपद्रव करते रहे हैं और उन्हें आंख दिखाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। राज्य सरकार के समांतर महाराष्ट्र में एक और सरकार चलती रही है, जिसके फैसले शीर्ष नेता सुनाते रहे हैं। इनके फरमान लागू कराने के लिए गुंडे हमेशा तैयार रहते हैं और कोई इनकी सत्ता को चुनौती नहीं देता। संभवत: यह पहली बार है कि उन्हें जवाब उन्हीं के अंदाज में मिला है। फेरीवालों में खासकर उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया गया था और वे जानते हैं कि महाराष्ट्र में उनका कोई आधार नहीं है और चुपचाप सहना ही एकमात्र विकल्प है। हिंसा के बदले हिंसा के दूसरे विकल्प को शायद उन्होंने मजबूरी में आजमाया है।
संजय निरूपम बनाम राज ठाकरे
संजय निरूपम के यह कहने पर कि अगर आपको कोई नुकसान पहुंचाए और कानून को हाथ में ले तो अपने हित में फेरीवालों को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार है, एक भड़काने वाला बयान माना जा रहा है। इस तरह तो महाराष्ट्र से फेरीवालों को भगाने की बात करने वाले राज ठाकरे के बयान को भी लोगों को उकसाने वाला बयान माना जा सकता है। राष्ट्रीय एकता भंग करने वाले काम को समर्थन देना भी ठाकरे का अच्छा कृत्य नहीं माना जा सकता। कल तक चुपचाप सहने वाले आज आपकी तरह जवाब देने पर क्यों मजबूर हैं, इसका जवाब उनपर बढ़ते जा रहे अत्याचार की हद है।
एमएनएस के गुंडों को जवाब कभी नहीं मिला और न ही उन्हें इसकी उम्मीद थी। इतना तो तय है कि गलत-सही का चिंतन अब उन्हें भी करना होगा और कानून हाथ में लेने से पहले अब वे भी कई बार सोचेंगे क्योंकि जो कल तक सह रहा था, अब जवाब देने की हालत में है।
-एजेंसी

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