लखनऊ। रामकृष्ण मठ, निराला नगर मेँ चल रहे श्रीमद्भागवत कथा का हुआ समापन का समापन हुआ। भागवत ज्ञान सत्र में पूतना वध, अघासुर वध एवं दामोदर लीला का वर्णन करते हुए कहा कि पूतना यानि जो पवित्र नहीं हैं।
यह बातें रामकृष्ण मठ निराला नगर मेँ स्वामी गुणेशानन्द जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के समापन पर कही। उन्होंने कहा कि पूतना चतुर्दशी के दिन आयी है यानि अपवित्रता पूतना ज्ञानेद्रिय, पूतना क्रमेन्द्रिय एवं मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार में रहती है। स्वामी जी ने कहा कि पूतना 3 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मारती है जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य जब तक तीनों गुणों के अधीन रहता है तब तक अपवित्रता उसे मारती है।
भगवान ने पूतना से ऑख नहीं मिलायी है क्योंकि भगवान बाहर का वेश नहीं देखते है भगवान भीतर की स्वच्छता एवं पवित्रता देखते है ।
श्रीकृष्ण गोकुल में अनेकाधिक लीला करते है – क्रिया एवं लीला में पार्थपथ है जिसके पीछे कर्तव्य का अभिमान होता है वह क्रिया है और जिसके पीछे केवल अन्य को सुख करने की इच्छा होती है वह लीला है। जीवन मे उत्सव मनाओ, उत्सव का अर्थ है कि उत् = ईश्वर, सव = सामीप्य ईश्वर का सामीप्य जहॉ हो उसे उत्सव कहते है ।
कथा का रसपान कराते हुए स्वामी जी ने कहा कि दामोदर लीला भगवान को अपने संसार के कार्य करते-करते कार्य को कैसे साधन बनाया जा सकता है कार्य को कैसे पूजा में परिणत किया जा सकता है यह बनाती है। श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कर श्रोता भावविभोर हो उठे। रामकृष्ण मिशन अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि भगवान श्रीरामकृष्ण के 182 वेँ जन्मोत्सव का समापन 25 फरवरी को होगा।
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