इस्लामाबाद । पाकिस्तान अपनी आतंकी हरकतों के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से दंडित होने जा रहा है। पेरिस में संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को ग्रे सूची में डालने का फैसला किया है। इस फैसले की आधिकारिक घोषणा थोड़ी देर में होनी है, लेकिन चीन और सऊदी अरब के पीछे हट जाने के बाद अमेरिकी, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस की ओर से लाए गए प्रस्ताव के पारित होने पर कोई संशय नहीं रह गया है।
एफएटीएफ की पेरिस बैठक में केवल तुर्की अंतिम समय तक पाकिस्तान का साथ देता नजर आया, लेकिन इस संस्था में एक अकेले सदस्य का विरोध मायने नहीं रखता। एफएटीएफ में 37 सदस्य हैं। इनमें से अकेले तुर्की को छोड़कर शेष 36 ने यह जरूरी समझा कि आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए पाकिस्तान को दंडित करने का समय आ गया है। पाकिस्तान के इस वैश्विक संस्था की प्रतिबंधित सूची (ग्रे लिस्ट) में आने का मतलब है कि अन्य देश वहां निवेश करने से बचेंगे।
पाकिस्तान को पहले तीन महीने के लिए ग्रे लिस्ट में डाला गया है और इसके बाद इसे अगले तीन माह के लिए और आगे बढ़ाया जाएगा। खबरों की मानें तो चीन ने भी इस मसले पर पाकिस्तान की मदद नहीं की। आतंकियों की मदद और उनके वित्तपोषण की वजह से पाकिस्तान को इस लिस्ट में रखा गया है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मिलने वाली मदद पर भी अब रोक लगाई जा रही है।
इससे पहले गुरुवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने ट्वीट करते हुए लिखा, हमारी मेहनत रंग लाई। अमेरिका की पाकिस्तान को निगरानी वाले देशों की सूची में डालने की पहल को लेकर 20 फरवरी को जो बैठक हुई, उसमें पाकिस्तान को नामित करने के लिए सर्वसम्मति नहीं मिली।
अब पाकिस्तान के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को संभालना और कठिन हो जाएगा। पाकिस्तान को आघात केवल इससे नहीं लगा कि वह दुनिया भर में आतंकी समर्थक देश के तौर पर बदनाम हुआ, बल्कि इससे भी लगा कि भरोसेमंद चीन ने भी उसका साथ छेड़ दिया। चीन के बारे में पाकिस्तान कहा करता था कि उससे हमारी दोस्ती हिमालय से ऊंची है। उसे उम्मीद थी कि सऊदी अरब उसका साथ देगा, क्योंकि उसने उसके कहने पर हाल ही में अपने एक हजार सैनिक उसकी लड़ाई लड़ने के लिए भेज दिए हैं।
आतंकी फंडिंग को रोकने के लिए काम नहीं करने वाले ‘उच्च खतरे’ वाले देशों की सूची में शामिल होने के बाद पाकिस्तान पर आर्थिक असर पड़ेगा। FATF एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जो गैरकानूनी फंड के खिलाफ मानक तय करती है। पाकिस्तान के साथ कारोबार करने वाले बैंक और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां उसके साथ वित्तीय संबंध रखने पर पुनर्विचार कर सकती हैं।
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