शास्त्रों में किसी भी काम की शुरुआत से पहले पंचदेवों की पूजा की जाती है। ये पंचदेव हैं गणेशजी, शिवजी, विष्णुजी, सूर्य देव और मां दुर्गा। इनमें सूर्य प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले देवता माने गए हैं। ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य मान-सम्मान का कारक ग्रह है। जिन लोगों की कुंडली में ये ग्रह शुभ स्थिति में हो, उन्हें घर-परिवार और समाज में प्रसिद्धि मिलती है, कामों में आसानी सफलता मिलती है और ऐसे लोग बहुत ही आकर्षक होते हैं। कुंडली सूर्य अशुभ हो तो व्यक्ति कड़ी मेहनत करता है, लेकिन सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता है। सूर्य को नियमित रूप से चढ़ाने से कुंडली के सभी दोष भी दूर होते हैं और बुरे समय से छुटकारा मिलता है। अगर आप भी सूर्य को जल चढ़ाते हैं तो यहां बताई जा रही बातों का ध्यान हमेशा रखें, अन्यथा इस उपाय से कोई लाभ नहीं मिल पाएगा…
पहली बात
सूर्य देव को जल चढ़ाने का सबसे पहला नियम ये है कि सूर्य उदय होने के कुछ देर बाद तक जल चढ़ा सकते हैं। सुबह 8 बजे से पहले ये काम कर लेना चाहिए। इसके बाद सूर्य को जल चढ़ाने से पूरा पुण्य नहीं मिल पाता है।
दूसरी बात
सूर्य को तांबे के लोटे से ही जल चढ़ाना चाहिए। कभी भी स्टील, लोहे, एल्युमीनियम के बर्तन से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
तीसरी बात
सूर्य को जल चढ़ाते समय हमारा मुख पूर्व दिशा की ओर ही होना चाहिए।
चौथी बात
सूर्य देव को पानी में चावल और लाल फूल मिलाकर अर्घ्य अर्पित कर सकते हैं।
पांचवीं बात
जल चढ़ाते समय सूर्य के मंत्रों का जाप अवश्य करें। सूर्य के मंत्र जैसे ऊँ भास्कराय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ खगाय नम: आदि।
छठी बात
जल चढ़ाने के बाद अपने स्थान पर ही खड़े-खड़े तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।
सातवीं बात
हमें आसन खड़े होकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाने के बाद आसन उठाकर उस स्थान को भी प्रणाम करें जहां जल चढ़ाया है।
No comments:
Post a Comment