सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट मामले खुली अदालत में सुनवाई, कहा- बेगुनाह को नहीं होनी चाहिए सजा… | Alienture हिन्दी

Breaking

Post Top Ad

X

Post Top Ad

Recommended Post Slide Out For Blogger

Tuesday 3 April 2018

सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट मामले खुली अदालत में सुनवाई, कहा- बेगुनाह को नहीं होनी चाहिए सजा…

नई दिल्ली। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले पर लोकसभा में बयान दिया। इस दौरान विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों ने सोमवार को भारत बंद का आह्वान किया था। इस दौरान 10 से ज्यादा राज्यों में प्रदर्शन हिंसात्मक हुआ और 14 लोगों की मौत हो गई। इनमें सबसे ज्यादा असर मध्यप्रदेश में रहा। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एससी/एसटी एक्ट मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की। कोर्ट ने अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कहा हम एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ नहीं हैं पर बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। अदालत ने सभी पार्टियों से दो दिन में जवाब मांगा है और इस मामले में 10 दिन बाद सुनवाई की जाएगी। यह याचिका केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को दायर की गई थी। तब कोर्ट ने फौरन सुनवाई से इनकार कर दिया था।

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा देश के कई हिस्सों में हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुई हैं। इन हिंसक घटनाओं में 8 लोगों की मौत हुई है। मध्यप्रदेश में 6 उत्तर प्रदेश और राजस्थान में एक-एक की मौत हुई है।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई में भारत सरकार पार्टी नहीं थी। संविधान में एससी/एसटी के लोगों को पूरी तरह से प्रोटेक्शन दिया गया है और सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। हमारी सरकार ने इस एक्ट में कोई भी डॉयल्यूशन नहीं किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इससे पहले कहा था कि वो खुली अदालत में सुनवाई को तैयार हैं। लेकिन यह केस उसी बेंच के पास जाना चाहिए जिसने यह फैसला किया था। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा था कि बेंच के गठन के लिए चीफ जस्टिस के सामने केस मेंशन करें। इसके बाद सीजेआई दीपक मिश्रा ने ओरिजल बेंच को गठित करने के राजी हो गए जिसने एससी/एसटी फैसला सुनाया था।

इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने भारत बंद के दौरान जनधन हानि का हवाला दिया और फौरन सुनवाई की मांग की।

महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग के स्टोर कीपर ने राज्य के तकनीकी शिक्षा निदेशक सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। स्टोर कीपर ने शिकायत में आरोप लगाया था कि महाजन ने अपने अधीनस्थ उन दो अिधकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी है जिन्होंने उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक टिप्पणी की थी।

पुलिस ने जब दोनों आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी महाजन से इजाजत मांगी तो वह नहीं दी गई। इस पर पुलिस ने महाजन पर भी केस दर्ज कर लिया। महाजन का तर्क था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।

5 मई 2017 को काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने हाईकोर्ट पहुंचे। पर हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। एफआईआर खारिज नहीं हुई तो महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को उन पर एफआईआर हटाने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के साथ आदेश दिया कि एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत मिले। पुलिस को 7 दिन में जांच करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती।

इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दलित संगठनों और विपक्ष ने केंद्र से रुख स्पष्ट करने को कहा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की।

दलित संगठनों का तर्क है कि 1989 का एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस एक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है।

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad