उप जिलाअधिकारी किसी भी तरीके के किसी आदेश की नही कर रहे पुष्टि।
सरकारी काजी हाउस को गिराने का भी कोतवाल पर आरोप।
उप जिलाधिकारी बिलग्राम ने कोतवाल को जारी किया नोटिस।
कमरुल खान
बिलग्राम/हरदोई। जहां देश से लेकर प्रदेश तक की भाजपा सरकारें दलितों के मसीहा होने का दम भर रही है। तो वहीं उनके सरकारी नुमाइंदे दलितों के आशियाने उजाडने में भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। इन हालातों में कैसे होगा दलितों का उत्थान कोतवाली बिलग्राम परिसर से लगे हुए कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। दलितों के आशियाने कोतवाली पुलिस द्वारा जबरजस्ती बिना किसी आदेश निर्देश के गिरा दिये गये जिससे दलित सड़कों पर रहने को मजबूर है।वहीं जिला प्रशासन से लेकर शासन और सरकार से आशियाने की मांग कर रहे हैं।पीढ़ियों से थाना परिसर से लगे इस दलित बस्ती में दलितों के मकान ही क्यों गिराए गए जबकि उसी जमीन पर बताया जाता है।कि कुछ राजनीतिक रसूख रखने वाले लोगों की दुकानें भी बनी है।परंतु कोतवाल महोदय दुकानों पर मेहरबान क्यों है।यह घटना ऐसे एक नहीं अनेक सवाल खड़े करती है। सरकारी कानून कोर्ट दोनों ही कहते हैं।कि राजस्व के किसी भी प्रकरण में पुलिस द्वारा बिना राजस्व विभाग की अनुमति के या उनके संज्ञान में लिए बगैर किसी भी तरीके की कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती परंतु कोतवाल बिलग्राम ने नियमों को ताक पर रखते हुए आखिर दलितों के ही आशियाने क्यों उजाड़े बताया जाता है बिलग्राम थाना की इमारत 1908 में ब्रिटिश शासन काल में बनी थी ये जमीन अंग्रेजी हुकूमत में कैसर हिंद बहादुर की मिल्कियत बताई जाती है साक्ष्यों से पता चलता है कि 1926 में पहला बंदोबस्त हुआ जिसमें थाना का पूरा रकबा ढाई बीघा दर्शाया गया है जिसका नंबर 310 है परंतु 1948 में पडताल के समय कब्जे के आधार पर उक्त गाटे को दो भागों में बांट दिया गया जिसमें थाने का रकबा दो बीघा चार बिसवा तथा शेष जमीन छे बिसवा आबादी मे चली गई जिसपर रामासरे आदि रह रहे थे छविराम पुत्र रामआसरे के अनुसार कुछ दिन पहले हमारेे ही परिवारीजनों के कुछ लोगों की आपस में कहा सुनी हुई जिसकी शिकायत लेकर एक पक्ष ने कोतवाली में शिकायत की जिसपर थानाध्यक्ष सतेन्द्र सिंह ने सभी को बुलाया और जमीन से जुड़े कागजात मांगें जब कोई ठोस कागजात उपलब्ध न हुए तो सभी को जमीन खाली करने का आदेश सुना दिया दलित परिवारों ने जब जमीन खाली करने से मना किया तो बल प्रयोग कर पुलिस द्वारा जुग्गी झोपड़ी सामान समेत सबको फुटपाथ पर फेंक दिया तब से लेकर आज तक वो घर पाने के लिए दर दर भटक रहे हैं
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कोतवाल सत्येंद्र सिंह का कहना है कि थाने की जमीन ढाई बीघा पक्के 1926 में हुए पहले बंदोबस्त में दर्शाई गई है जो मुझे हर हाल में चाहिए बाद में क्या हुआ और कितने भागों में बांटी गई मुझे इससे कोई मतलब नहीं है।
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