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Saturday, 6 October 2018

हाय भाजपा 70 साल: कस्मे वादे और किसान, वादे हैं वादों का क्या

अशोक सिंह विद्रोही/कर्मवीर त्रिपाठी

पाखंडी रहै छाॅव माॅ,घामें माॅ जरी हम। जलपान करैं नेता,भुगतान करी हम।।
भारत के किसानन कै,दुरभाग तनी देखौ। गोहू का धरै दिल्ली,भूसा का धरी हम।।
ये पक्तियां हैं प्रसिद्धि शायर रफीक सादानी की

विगत गांधी जयंती को दिल्ली यूपी बॉर्डर पर देश का अन्नदाता किसान जब केन्द्र सरकार की दहलीज पर दस्तक देता हैं, तो खुले आसमान और धूप की तपिस में उसका स्वागत “आपकी सेवा में सदैव तत्पर दिल्ली और यूपी की पुलिस” ने किया। आखिर क्या और क्यों जरूरत पड़ी कि मिट्टी और जिंदगी से जद्दोजहद करने वाला कृषि प्रधान देश का किसान हरिद्वार से चलकर दिल्ली तक की यात्रा को मजबूर हुआ।

देश के अन्न देवता का गुस्सा दिनों दिन बढ़ रहा है, इसके अनेकों कारण हो सकते हैं। खेत खलिहान आजादी के 70 साल बाद भी गंभीर दौर से गुजर रहे हैं। शहरों को स्मार्ट बनाने की तर्ज पर अगर सरकार ने खेती किसानी के स्मार्टनेस पर भी ध्यान दिया होता तो बापू के जन्मदिवस पर किसान सड़कों पर ना होता। गांधी ने कभी बेंगलुरु के नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के आगंतुक पंजिका में अपने अनुभव लिखने के दौरान व्यवसाय के कालम में किसान शब्द लिखा था। तब उन्हें सायद इल्म नहीं रहा होगा कि उनकी 150वी जयंती पर अंग्रेजों के जमाने की पैदाइश पुलिस हजारों किसानों पर कानून की लाठी का प्रयोग करेगी । इसी दिन हरियाणा के भिवानी जेल में बैंक का कर्ज ना चुका पाने तथा चेक बाउंस मामले के कारण 2 साल की सजा पाए 65 वर्षीय किसान रणवीर सिंह की मौत हो गयी।

वह महज 10 दिन पहले ही जेल भेजे गए थे उन पर तकरीबन 9. 83 लाख का बैंक कर्ज था। ऐसे तमाम किसान महज इसलिए जेलों में हैं क्योकि उन पर बैंक का कर्ज है। जो इस दुविधा के साथ नहीं जी पाए उन्होंने आत्महत्या जैसे दुखद राह पर चलने का फैसला ले लिया। सवाल उठता है कि आखिर सरकार जीडीपी के पीछे ही क्यों दीवानी बनी घूम रही है ? क्या कृषि प्रधान देश जैसा वाक्य स्कूली किताबों तक सिमट कर रह जाएगा ? क्या सरकार को अपने इंटरनेशनल ब्रांडिगं से इतनी भी फुर्सत नहीं मिल पा रही कि वह समझ सके कि कृषि क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र है जो देश का सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। हड़प्पा काल से लेकर वर्तमान के स्मार्ट कल्चर की संस्कृति तक के समय में।
गौरतलब है कि 23 सितंबर को शुरू हुयी किसान यात्रा बीजेपी शासित उत्तराखंड के हरिद्वार से चलकर सारे खुफिया तंत्र को चकमा देता हुआ देश का पालनहार किसान हरिद्वार से हजारों की तादात में कूंच करते हुए पश्चिमी यूपी के जिलों में अपनी 11सूत्री मांगों को लेकर निकल पड़ता है। आंसूगैस के गोले, पुलिसिया गोली, पानी की बौछार से लेकर लाठी चार्ज तक ने जवानों और किसानों को आपस में ही लड़ा दिया और सत्ता में बैठे तमाशबीन अपने चापलूस, गणेश परिक्रमा प्रेमी अक्षम सिस्टम के हाथों की कठपुतली बन कर रह गये । जिसका पूरा फयदा विपक्षी पार्टियों ने भी अपनी – अपनी रोटी सेक कर उठाया।

जानकार बताते हैं की किसानों की ये यात्रा बड़े ही सूझबूझ के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से पहले ही खत्म की जा सकती थी, लेकिन किन वजहों से सीएम योगी से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश बीजेपी के किसान नेताओं ने इस में रुचि नहीं ली। लेकिन इस उग्र प्रदर्शन ने एक बात तो सिद्ध कर ही दिया कि खलिहानों, खेतो का किसान जब सड़क पर उतरने को मजबूर होता हैं तो सिस्टम के सारे तिकड़म धरे के धरे रह जाते हैं।क्यों कि देश की आबादी का लगभग 65 प्रतिशत खेत व खलिहान से जुड़ा किसान ही है।

मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने जब सब कुछ बिखर गया तो समेट रहे हम की तर्ज पर गांधी जयंती के सारे कार्यक्रम निपटा कर शाम को पत्रकार वार्ता के दौरान बताते हैं कि हमारे प्रशासन ने किसान यात्रा में पूरा सहयोग और मदद किया, शांतिपूर्ण यात्रा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जगहों से होकर गुजरी। उन्होंने बताया कि किसानों की समस्याओं को लेकर दिल्ली से वापसी के समय गाजियाबाद में मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव सूचना के साथ किसानों के प्रतिनिधि मंडल से तीन घंटे तक बैठक की।हलाकि वार्ता बेनतीजा साबित हुयी।
योगी ने डैमेज कंट्रोल के तहत की गयी पत्रकार वार्ता में किसानों के गुस्से को अपने चिर- परिचित घोषणाओं के सब्जबाग में टहलाने की कोशिश के तहत बताया कि आवारा पशुओं की रोकथाम के लिए प्रति जनपद 1 करोड 20 लाख रुपए गौशाला निर्माण कार्य के लिए दिए हैं। इस रकम से कैसे और कितने पशुओं का भला होगा यह जिले के अधिकारी ही बता पाएंगे। इसके अलावा सीएम योगी ने पश्चिमी यूपी के किसानों की संख्या और आक्रोश को ठंडी फुहारों से शांत करने की कोशिश के साथ बताया कि 40 हजार ट्यूबवेल अकेले पश्चिम उत्तर प्रदेश में लगवाया गया है। इसके साथ ही किसानों को 18 घंटे बिद्दुत आपूर्ति करने का जिक्र करते हुए उन्होंने धान के समर्थन मूल्य और 26000 करोड़ के गन्ना भुगतान का पुराना बकाया वाले अपने बयान को फिर दोहराया ।
बहर हाल केंद्रीय राज्य मंत्री गजेंद्र शेखावत और उत्तर प्रदेश के दो मंत्री सुरेश राणा व लक्ष्मी नारायण चौधरी के तमाम हाथ पाॅव पटकने के बाद भी किसान यूनियन के बैनर तले दिल्ली में घुसने को आमादा किसानों की 11 में से 7 मांगों के राजनाथ सिंह फार्मूला को सिकहर पर टांग दिया। शायद इसी का नतीजा रहा कि खुले आसमान में रात भर डटे देश के अन्न दाता को आखिरकार किसान घाट तक जाने की इजाजत मजबूरन केंद्र सरकार को देनी पड़ी और चारों तरफ राजनैतिक आलोचनाओं व प्रतिक्रियों से घिरी दिल्ली सरकार ने सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ की तरह सारा ठीकरा पिछली सरकारों पर फोड़ने और अपने पाक – साफ दामन की दुहाई देते दिखे ।

इन सबके बीच यूपी के सीएम ने दो विशेषज्ञ राय बहादुर अफसरों को सरकारी उड़न खटोले से नोएडा हालात पर नजर रखने तथा समस्या को सुलझाने के लिए भेजा ।उड़न खटोले से गये अधिकारियो ने कौन सा पराक्रम किया ? यह अभी तक सार्वजनिक रूप से पता ही नहीं चल पाया। सूत्र बताते हैं कि अगर 23 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक की घटना पर गौर करें तो किसानों के शांतिपूर्ण यात्रा और दिल्ली बॉर्डर पर हुए पुलिसिया कार्रवाही के बीच एक सोची-समझी रणनीति का सहारा लेकर शह और मात का खेल राज्य और केंद्र ने खेला, लेकिन इस खेल के परिणाम ऐसे होगें शायद इसका अंदाजा किए बगैर चीजों को फिट करना ही दोनों सरकारों के गले की फांस बन गया। अगर सूत्रों की मानें तो इस तमाम फजीहत में योगी आदित्यनाथ ने खुद को और मजबूत तथा पाक साफ करने का दाव जीत लिया है और केन्द्र सरकार के पाले में पंचर फुटबॉल को दुरूस्त करने की रणनीति को अंजाम भी दे दिया। खैर अंत भला तो सब भला फार्मूले के तहत चेतावनी और उम्मीद के साथ शांतिपूर्ण यात्रा कर किसान लौट तो गए लेकिन चुनावी साल में अन्न देवता का यह रूप सवा सौ करोड़ देशवासियों के अच्छे दिनों के सपनों को दिखाने वाली मोदी सरकार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है । प्रधानमंत्री मोदी ने अपने तमाम भाषाणो और विज्ञापनों में फोटो के साथ इस बात का जिक्र किया है कि कृषि हमारे राष्ट्र की शक्ति है और किसान राष्ट्र की प्रतिष्ठा है। पीएम मोदी 2019 के हालिया चुनाव से पहले अपनी सरकार और किसान की प्रतिष्ठा को किस फार्मूले से ठीक करते हैं यह महत्वपूर्ण होगा।

योगी की रणनीति कितनी पास कितनी फेल
हालिया किसान आंदोलन में सीएम योगी ने आला दर्जे की रणनीति अपनायी। पहले अपने मंत्रियों और आला अधिकारियों को लगाया तो बाद में खुद भी वार्ता में शामिल हुए बेहद खूबसूरती से उन्होंने सारा दारोमदार पीएमओ और गृहमंत्री के पाले में डाल कर अन्न देवता को दिल्ली बॉर्डर तक पहुंचाने का इंतजाम भी कर दिया । जवानों और किसानों के टकराव से हिली केंद्र सरकार को मजबूरन किसानों की शरण लेनी पड़ी और सीएम योगी हारी बाजी को जीत गए।
इस जीत की पटकथा 29 सितंबर को ही लिखी जा चुकी थी जब प्रदेश के मंत्री सुरेश राणा मेरठ के एक निजी अस्पताल में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत से मिलने गये थे । इसके बाद केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ,केंद्रीय राज्य मंत्री गजेंद्र शेखावत और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने यूपी सदन में भी किसान नेताओं से कई दौर की वार्ता करी थी। केंद्र को लगातार आंदोलन में विरोधी पार्टियों के प्रमुख नेता राहुल गांधी, अखिलेश यादव जैसे नेताओं के पहुंचने का डर भी सताता रहा जो इस वार्ता की एक प्रमुख वजह भी बनी।

(नरेश टिकैत) भारतीय किसान यूनियन
आंदोलन स्थगित किया है, तब तक खत्म नहीं होगा जब तक सरकार हमारी सारी मांगों को पूरा नहीं करती । जब अमीरों का कर्ज माफ हो सकता है तो किसानों का कर्ज क्यों नहीं माफ कर रहे मोदी जी- योगी जी । हम खाली नहीं हैं हमारे पास भी खेत खलियान के बहुत से काम है।

आंदोलन के जरिए किसान नेताओं ने की राजनीतिक जुताई
बिना किसी ठोस नतीजे के खत्म हुए किसान आंदोलन को लेकर कई तरह के तर्क दिए जा रहे हैं कि आखिर क्या वजह रही कि लंबी यात्रा के बाद पुलिस की लाठी ,आंसू गैस और गोली को झेलने के बाद भी किसान आसानी से महज 7 मांगों के एवज में वापस लौट गया !
जानकार बताते हैं कि भारतीय किसान यूनियन में अंदरूनी कलह चरम पर है। रमेश और नरेश टिकैत समेत युद्धवीर सिंह के राजनीतिक ताकत को साबित करने के लिए ही यह गंगा उल्टी बहाने जैसा आंदोलन किया गया था । इसके अलावा टिकैट बंधुओं के खासमखास धर्मेंद्र मलिक यूपी सरकार में किसान समृद्धि आयोग के सदस्य पद का लुप्त उठा रहे हैं ।वहीं राकेश टिकैत एक बार फिर बिजनौर से चुनाव लड़ने का मंसूबा रखते हैं । इन्हीं समीकरणों के चलते किसान आंदोलन खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारहआने की तरह ठंडे बस्ते में चला गया।

किसानों के ग्यारह सूत्री मांगो में एक प्रमुख मांग छुट्टा आवारा पशुओ को लेकर है। नीलगाय पहले से ही किसानो के लिए जी का जंजाल बनी हुयी है और उपर से अब शहरों से पकड़े गये सांडों व गायों को गावों में छोड़ने का मुद्दा भी है, जिनसे फसलों को काफ़ी नुक्सान होता हैं। धरनारत किसानों का कहना था कि यूपी में योगी महराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद पशुओ से जुड़े फरमान के कारण डर की वज़ह से बहुत से लोगों ने गाय, सांड पालना ही छोड़ दिया और शहरों की सड़को पर घूमने वाले आवारा पशुओ को सरकारी अफसर गाड़ियों में भरवा कर उनके गावों के आस पास छोड़ देते हैं। जिससे उनकी मेहनत से लहलहाती फसलों को ये पशु चट कर जाते हैं ।
हालाकि योगी ने अपने डैमेज कंट्रोल प्रेस कांफ्रेस में इस मुद्दे पर सफाई देते हुऐ इस पर कार्ययोजना बनाने की बात कही है। ये देखने वाली बात होगी कि योगी का ये नुख्सा अन्नदाताओं को कितना भाता हैं!

सीएम योगी ने किसानों के मुद्दों को अपने तमाम घोषणाओं की तर्ज पर लेकर गंभीर चूक कर दी। जिसका एहसास उन्हें तब हुआ जब किसान दिल्ली की दहलीज पर करो या मरो की भूमिका में आ गये। केंद्र से पड़े दबाव और सीएम के स्मार्ट सलाहकारों को शायद अंदाजा ही नहीं था की किसान आर- पार के मूड में हैं।
यही वज़ह रही कि दिल्ली बॉर्डर पर जवानों और किसानों की तकरार व हिंसक झड़पों के बाद सीएम को ख़ुद आगे आना पड़ा और एक दिन पहले की विफल वार्ता के बावजूद मीडिया के सामने सच- झूठ का काकटेल परोसना पड़ा।

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