नई दिल्ली। शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने लगभग पांच अरब डॉलर के एस-400 पूरी दुनिया में सबसे उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक समझौते का एलान किया. ये प्रणाली ज़मीन से मिसाइल दागकर हवा में ही दुश्मन की ओर से आ रही मिसाइलों को नष्ट कर देती है.
इस प्रणाली की रेंज 400 किलोमीटर है और ये एक साथ 80 निशाने भेद सकती है. यही नहीं इस प्रणाली से एक साथ दो लॉन्चरों से आने वाली मिसाइल पर निशाना साधा जा सकता है. भारत के पड़ोसी देश चीन के पास भी यही मिसाइल रक्षा प्रणाली है. भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हो चुका है और सीमा पर कई बार दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं. ऐसे में भारत के लिए अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत करना ज़रूरी है. ख़ासकर पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका के मद्देनज़र ये और भी ज़रूरी हो गया था.
इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस में रक्षा विशेषज्ञ राजीव नयन के मुताबिक भारत को ये ‘ख़तरा’ उठाना ही था. राजीव नयन कहते हैं, “भारत को अपने रणनीतिक हित भी देखने हैं. मिसाइल रक्षा प्रणाली हासिल करना समय की ज़रूरत है. अमरीका कह चुका था कि भारत यदि ये सौदा करता है तो उस पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, लेकिन भारत इस दबाव में आया हुआ नहीं दिखना चाहता है.”
रूस और अमरीका के बीच तनाव
साल 2014 में रूस के यूक्रेन से क्राइमिया को छीनने के बाद से ही अमरीका और रूस के बीच रिश्तों में तनाव है. अमरीका के 2016 राष्ट्रपति चुनावों में रूस के कथित हस्तक्षेप ने इस तनाव को और बढ़ा दिया है. अमरीका ने कई रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं. रूस, ईरान और उत्तर कोरिया पर आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से अमरीका ने साल 2017 में विशेष क़ानून भी बनाया था. ये क़ानून अन्य देशों को भी इन देशों के साथ रक्षा समझौते करने से रोकता है. लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के पास कुछ देशों को इससे छूट देने की शक्ति है. भारत को उम्मीद थी कि वो ये छूट हासिल कर लेगा, लेकिन ट्रंप सरकार के अधिकारियों के हालिया बयान मिश्रित संकेत ही देते हैं.
एशिया एंड पैसिफ़िक सिक्यूरिटी अफ़ेयर्स के सहायक रक्षा सचिव रेंडाल श्राइवर कहते हैं, “मैं यहां बैठकर ये नहीं बता सकता कि भारत को छूट मिलेगी या नहीं- ये फ़ैसला राष्ट्रपति को लेना है. अगर उनके सामने भारत के रूस से बड़ा नया प्लेटफ़ार्म और दक्षता हासिल करने चुनौती आती है तो वो फ़ैसला लेंगे.” सितंबर में जब अमरीकी रक्षा मंत्री जिम मेटिस और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो दिल्ली आए तब भी उन्होंने ऐसी कोई छूट देने का एलान नहीं किया.
भारत की एयर फ़ोर्स में इस समय विमानों की कमी है. ऐसे में एस-400 रक्षा प्रणाली भारत की क्षमताओं को बढ़ाएगी ही. भारत के पास इस समय 31 स्कवाड्रन ही हैं इनमें भी अधिकतर पुराने रूसी लड़ाकू विमान ही शामिल हैं. यदि चीन और पाकिस्तान से भारत का युद्ध होता है तो उसे 42 स्क्वॉड्रन की ज़रूरत होगी. इस नई मिसाइल रक्षा प्रणाली से भारतीय एयर फ़ोर्स देश के लिए ख़तरा होने वाली मिसाइलों की पहचान कर सकेगी और उन्हें हवा में ही नष्ट कर सकेगी.
राजीव नयन के मुताबिक भारत के पास पहले ही रक्षा प्रणालियां हैं. ये रूस से ही ख़रीदी हुई हैं. ऐसे में हम जिस सिस्टम को जानते समझते हैं उसके साथ ही चलना ही समझदारी है. कंट्रोल रिस्क कंसलटेंसी के सहायक निदेशक प्रत्यूष राव कते हैं कि भारत का इस समझौते पर हस्ताक्षर करना विदेश नीति में और अधिक संतुलन लाने के प्रयासों का भी संकेत है.
वो कहते हैं, “बराक ओबामा के शासनकाल में भारत ने अमरीका के साथ रिश्तों को मज़बूत करने में काफ़ी कुछ निवेश किया. मोदी अब राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मिलकर अमरीका से रिश्ते बेहतर करने के प्रयास कर रहे हैं.” वो कहते हैं, “ट्रंप प्रशासन के साथ जुड़ी अनिश्चित्ता को देखते हुए भारत को अपने सर्वश्रेष्ठ हितों का ख्याल रखना ही है.” हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत को टैरिफ़ किंग (कर लगाने का बादशाह) बताते हुए कहा था कि भारत अमरीका के साथ व्यापार समझौता करना चाहता है ताकि उसे ख़ुश कर सके. भारत के कूटनीतिक गलियारों में ये बयान पसंद नहीं किया गया था. राष्ट्रपति ट्रंप के शासनकाल में दुनिया में एक नया वर्ल्ड ऑर्डर उभर रहा है. इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि इन हालातों में भारत रूस और चीन के साथ अपने संबंध बेहतर करने की कोशिश कर रहा है.
भारत अपनी रक्षा ज़रूरतें पूरी करने के लिए बहुत कम ही हथियार स्वयं बनाता है और दुनिया के सबसे बड़े हथियार ख़रीदार देशों में से एक है. भारत सबसे अधिक हथियार और उपकरण रूस से ही ख़रीदता है.
राव कहते हैं, “भारत रूस को ये भरोसा देना चाहता है कि वो अभी भी उसकी क़द्र करता है और वो उसका अहम रक्षा और सामरिक सहयोगी है. ये समझौता इसे ही दर्शाता है.” वो कहते हैं, “ये भारत के लिए जटिल स्थिति है क्योंकि उसे अपने भरोसेमंद कूटनीतिक सहयोगी रूस और अपने अस्थायी, लेकिन मज़बूत होते सहयोगी अमरीका दोनों के ही साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को बनाए रखना है.”
राजीव नयन कहते हैं कि अमरीका के साथ पर्दे के पीछे से की जा रही बातचीत ये नतीजा हासिल कर सकती है. लेकिन ये बहुत आसान भी नहीं होगा क्योंकि अमरीका भी भारत को लेकर जटिल स्थिति में है. अमरीका रूस के साथ रक्षा सौदे करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर बिलकुल स्पष्ट है. सितंबर में अमरीका ने चीन पर एस-400 प्रणाली ख़रीदने को लेकर प्रतिबंध लगा दिए थे.
नेटो सहयोगी देश तुर्की भी इस मिसाइल रक्षा प्रणाली को हासिल करने की प्रक्रिया में है. बहुत से विश्लेषकों का मानना है कि अमरीका नहीं चाहता कि तुर्की ये सीमा रेखा पार करे. यदि अमरीका भारत पर प्रतिबंध नहीं लगाता है तो अन्य देश भी इसी तरह की छूट के लिए दबाव बनाएंगे. इसी बीच, अमरीका भारत की बढ़ रही रक्षा ज़रूरतों को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है. अमरीका ने भारत के लिए अपना रक्षा निर्यात भी बढ़ाया है. इस समय भारत 15 प्रतिशत हथियार अमरीका से ही ख़रीद रहा है. राव कहते हैं, “अमरीका ने बहुत कोशिशें से भारत के साथ रक्षा संबंध स्थापित किए हैं और वो भारत के साथ अपने हथियार व्यापार को बचाने के लिए कोई न कोई रास्ता निकालना ही चाहेगा.”
मोदी सरकार भी अमरीका के साथ किसी भी तरह के तनाव को कम करने की हर संभव कोशिश करेगी. भारत में अगले साल चुनाव होने हैं और मोदी फिर से सत्ता में वापसी चाहते हैं. कोई नया विवाद मोदी के चुनावी अभियान पर भी असर डाल सकता है. राव कहते हैं, “अगर अमरीका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए तो भारत की विपक्षी पार्टियों को चुनावों से पहले नया गोला बारूद मिल जाएगा. नरेंद्र मोदी की विदेश नीति सवालों के घेरे में आ जाएगी. हाल के दिनों में पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर भारत की विदेश नीति में बदलाव देखे गए हैं.”
मोदी ने साल 2016 में फ्रांस की सरकार के साथ 36 रफ़ाल विमान ख़रीदने का सौदा किया था. ये विमान डासो एविशेन ने बनाए हैं. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का आरोप है कि मोदी ने फ्रांस के साथ हुए समझौते में एक भारतीय कंपनी को तरजीह दी. हालांकि भारत सरकार के मंत्री इस सौदे में किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारते हैं. लेकिन ये मुद्दा भारत में इस समय सुर्ख़ियों में है और इस पर तीखी राजनीति की जा रही है. मोदी और ट्रंप दोनों के पास अपने रिश्ते को बचाए रखने के कारण हैं. बड़ा सवाल ये है कि क्या ट्रंप भी चीज़ें को ऐसे ही देखेंगे जैसे मोदी देखते हैं.
कैसे काम करती है एस-400 प्रणाली
1: लंबी दूरी की निगरानी रडार दुश्मन की ओर से दागी गई मिसाइल पर नज़र रखती है और कमांड वाहन को इसकी जानकारी देती है.
2: निशाने की पहचान पुख़्ता होने के बाद कमांड वाहन से मिसाइल लाँच की जाती है.
र3: लाँच डाटा सबसे सटीक जगह पर मौजूद लाँच वाहन को भेजा जाता है और वो ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल दागता है.
4: दुश्मन की मिसाइल पर नज़र रख रही एंगेजमेंट रडार मिसाइल को निशाने की ओर निर्देशित करती है.
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