*गड्ढ़ा मुक्त सड़के- यू पी से न हो पाएगा
*योगी के गड्ढ़ा मुक्ति की मियाद आज पूरी
*गड्ढ़ों की किस्मत में तारीख़ पर तारीख़
अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी
मुख्यमंत्री घोषणाएं करते हैं, नाराज होते हैं तथा चेतावनी देते हैं। प्रदेश के अधिकारी हैं कि सुधरते ही नहीं । सरकार के सुशासन को बेपटरी करने पर आमादा अफसरशाही की देन है प्रदेश की गड्ढा युक्त सड़कें। इसकी छाया सूबे में मुख्य सचिव के निजी आवास मार्ग से लेकर आम आदमी की गलियों तक बखूबी देखी जा सकती हैं। भय मुक्त सुशासन युक्त सरकार के नारे के साथ योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की लगाम संभाली । लगा रामराज्य आ रहा है, यूपी के दिन बहुरेंगे । मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के पेंच कसे और पहला फरमान गड्ढा मुक्त प्रदेश व बूचड़खानों पर सुनाया। सरकार के दिन- महीने- साल बीते। वादों की झड़ी लगी। सरकारी इमारतों के रंग से लेकर शहरों के नाम बदल चुके हैं।अगर कुछ नहीं बदला तो महज गड्ढा युक्त सड़को की किस्मत से तारीख पर तारीख का खेल। मुस्कुराइए आज 30 नवंबर है , मुख्यमंत्री के पहले फरमान की एक और तारीख- – – – –
प्रदेश सरकार को सत्ता में आये हुए बीस माह बीत चुके हैं । योगी ने सत्ता संभालते वक्त गड्ढा युक्त सड़कें विरासत में मिलने की बात कही थी । विरासत में मिले गड्ढों पर जांच बिठाई गयी । सरकार इन गड्ढों को कभी भरे या ना भरे लोगों को इन पर चलने की आदत अब पड़ चुकी है। मुख्यमन्त्री योगी के द्वरा प्रदेश को गड्ढा मुक्त करने का फरमान अफसरों की लापरवाही से 15 जून 2017 से 30 नवंबर 2018 तक चार बार से अधिक तारीखों के झूले में झूल रहा है। वह भी तब जब प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जिम्मेदार विभाग पीडब्ल्यूडी के मंत्री हैं । सरकार के 100 दिन पूरे होने पर योगी ने प्रदेश के 60 फीसद सड़को के गड्ढा मुक्त होने का दावा किया था, जिसकी हवा तभी निकल गयी थी। इस पर उन्होंने सफाई देते हुए गड्ढा मुक्ति की पहली तारीख 15 जून 2017 पर कहा था कि सरकार के खजाने में पैसा ही नहीं था। बरसात के बाद युद्ध स्तर पर पूरी तरह गड्ढा मुक्त होगा प्रदेश। योगी ने इसके लिए बाकायदा नौ जिम्मेदार विभागों को आदेश भी दिया था । जिसके नोडल विभाग के तौर पर पीडब्ल्यूडी को अधिकृत किया गया था। नतीजा ना सड़कों के गड्ढे हटे ना किसी विभाग ने इसको लेकर कोई कोशिश की। एक साल पूरे होने पर सरकार की उपलब्धियों की पुस्तक एक साल बेमिसाल में गड्ढा मुक्त सड़कों की आंकडे बाजी का खेल भी तारीखों में सिमट कर रह गया।
सीएम फिर नाराज हुए। समीक्षा बैठक बुलायी अधिकारियों के पेंच कसे । लेदेकर सडकीय गड्ढों को एक और तारीख 25 अक्टूबर की सौगात मिली। यह घोषणा भी मुख्यमंत्री ने 15 अक्टूबर को समीक्षा बैठक के दौरान नाराजगी के साथ की थी और कहा था कि पीडब्ल्यूडी सभी विभागों से समन्वय स्थापित कर इसे पूरा करें। अक्टूबर 31 के बाद योगी ने प्रदेश की सड़कों के आकस्मिक निरीक्षण के साथ ही सुधारी गयी सड़कों पर जिम्मेदार विभागों के साइन बोर्ड लगाने का आदेश जारी किया था । ऐसे में जब सडके ही नहीं सुधरी तो साइन बोर्ड की जरूरत भी जिम्मेदार विभागों ने नहीं समझी। विभागों की आपसी तालमेल में कमी और खींचतान का खामियाजा गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर तक तथा राजधानी की सड़कों से लेकर गोरखपुर तक की खस्ताहाल सड़कों पर चल रहा आम आदमी उठाने को मजबूर है। कुछ ऐसा ही नजारा सीएस के ड्रीम प्रोजेक्ट कुम्भ 2019 के प्रयागराज की सडकों को देखकर लगाया जा सकता है । पिछले महीने पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव नितिन रमेश गोकर्ण ने एक बार फिर सडकीय गड्ढा मुक्त की तारीख 30 नवंबर तक बढ़ाकर हर हाल में उसे ठीक करने का बयान जारी किया था।
आज वह तारीख भी गुजर गयी लगभग 800 से अधिक मौतों की वजह बने प्रदेश के गड्ढों को लेकर योगी आदित्यनाथ भले ही संजीदा हो लेकिन आंकड़ेबाजी में माहिर अधिकारी सरकार के विकास एजेंडे में पलीता लगाने का ही काम कर रहे हैं।
मुस्कराइये कि आप गड्ढा युक्त राजधानी में हैं
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजधानी से एमएलसी हैं। उनके मंत्रिमंडल के पांच मंत्री भी यहीं से सदन में नुमाइंदगी करते हैं। राजधानी के गड्ढा युक्त सड़कों को सुधारने की जिम्मेदारी नगर निगम, एलडीए, आवास विकास, पीडब्ल्यूडी जैसे विभागों की है। बजट के नाम पर खस्ताहाल नगर निगम का आलम यह है कि शहर की आधे से अधिक सड़कें गड्ढों से अटी पड़ी हैं। निगम प्रशासन जैसे तैसे कूड़े मिट्टी और पत्थरों से गड्ढों को भरने की कोशिश में लगा है। राज्य के मुख्य सचिव एसी पांडे का निजी आवास महानगर के एल पार्क रोड पर स्थित है। जिसके आसपास की सड़कों में गड्ढों की भरमार है। मजेदार बात यह है कि महानगर क्षेत्र मुख्य सचिव के निजी आवास के साथ ही कद्दावर कबीना मंत्री गोपाल टंडन की विधानसभा भी है। कुछ ऐसा ही नजारा महानगर के सत्ता पक्ष से पूर्व सभासद जीडी शुक्ला के आवास के आसपास की सड़कों का है । पूर्व डीजीपी सीके मलिक के आवास संख्या 700 / ए सेक्टर – सी, आईएएस अधिकारी लोक रंजन के आवास संख्या सी 737 महानगर के सामने की सड़क भी खस्ताहाल हालत में है। जब राजधानी का यह हाल है तो प्रदेश का विकास किस तरह हो रहा है ये तो समझा ही जा सकता है । विधायकों की विधायक निधि से क्या बन रहा है क्या सवर रहा है यह तो सरकार ही जाने ।
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