जलवायु
लहसुन को ठंडी जलवायु कि आवश्यकता होती है वैसे लहसुन के लिए गर्म और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहें तो उत्तम रहता है अधिक गर्म और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिए उत्तम नहीं रहते है छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिए अच्छे होते है इसकी सफल खेती के लिए 29.76-35.33 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70 ‘ आर्द्रता उपयुक्त होती है समुद्र तल से 1000-1400 मीटर तक कि ऊंचाई पर इसकी खेती कि जा सकती है।
भूमि
इसके लिए उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी रहती है भारी भूमि में इसके कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है इसकी तैयारी प्याज कि खेती के समान ही कि जाती है।
प्रजातियां
भारत में लहसुन कि अधिकतर स्थानीय किस्मे ही उगाई जाती है क्योंकि उसकी उन्नत किस्मों के विकास पर कम ध्यान दिया गया है लहसुन कि गांठों कि संख्या और नाम के आधार पर किस्मों के नाम दिए जाते है गांठों के आधार पर एक गांठ और अनेक पुत्तियों वाली किस्मे प्रमुख है अनेक पुत्तियों वाली किस्मों में मदुराई पर्वतीय लहसुन, मदुराई मैदानी लहसुन, जामनगर लहसुन, पूना लहसुन, नासिक लहसुन आदि प्रमुख है।
लहसुन दो प्रकार का होता है एल सफेद और दूसरा लाल, खाने के लिए सफेद लहसुन का ही इस्तेमाल किया जाता है जबकि लाल लहसुन में अधिक कड़वाहट होने के कारण इसका औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है सफेद लहसुन कि किस्मों को उनके कंदों को छोटे व बड़े आकार के आधार पर दो भागों में विभक्त किया गया है जिनकी प्रमुख किस्मे नीचे दी गई है।
छोटी गांठों वाली किस्में
तहीती, टाइप -56-4
बड़ी गांठों वाली किस्में
रजाली गद्दी, फावरी सोलन , उत्तरी भारत में विशेष रूप से निम्न किस्मे उगाई है जाती – नासिक लहसुन, हिसार स्थानीय, सोलन, अगेती कुवारी, 56टाइप -4, को-2, उत्तरी भारत में उगाई जाने वाली कुछ उन्नत किस्मों के चारित्रिक गुणों का उल्लेख नीचे किया है।
56-4 टाइप
इस किस्म का विकास पंजाब कृषि वि.वि. द्वारा चयन विधि द्वारा किया गया है इस किस कि गांठे आकार में छोटी और सफेद रंग कि होती है प्रत्येक गांठ में 25-34 पुत्तियां होती है यह प्रति हे . 150-200 क्विंटल तक उपज दे देती है।
सोलन
इस किस्म का विकास हिमाचल प्रदेश कृषि वि.वि. द्वारा किया गया है पौधों कि पत्तियां अन्य किस्मों से काफी चौड़ी, लम्बी और गहरे रंग कि होती है इस किस्म कि गांठे आकार में बड़ी और सफेद रंग कि होती है प्रत्येक गांठ में चार ही पुत्तियां होती है जो काफी मोटी होती है अन्य किस्मों कि तुलना में यह अधिक उपज देने वाली किस्म है।
नवीनतम उन्नत किस्में
को – 2
इस किस्म का विकास कोयाम्बुर स्थित तमिलनाडू कृषि वि.वि. द्वारा किया है इसके कंद सफेद होते है जो देखने में आकर्षक लगते है यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है।
आई. सी. – 49381
इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है यह किस्म अधिक उपज देती है इसकी 160-180 दिन में फसल तैयार हो जाती है।
यमुना (-1 जी) सफेद
यह किस्म 150 -160 दिनों में तैयार हो जाती है इसके प्रत्येक शल्क कंद ठोस और बाह्य त्वचा चांदी कि तरह सफेद , गुदा क्रीम रंग का होता है शल्क कंदों का विकास 4 -4 .5 से.मी. होता है 25 -30 शल्क कंद एक क्लोव में पाए जाते है यह जाति रोग के प्रति सहन शील है 150 – 175 क्विंटल प्रति हे उपज हो जाती है यह किस्म सम्पूर्ण भारत में उगाने के लिए अखिल भारतीय सब्जी सुधार परियोजना के द्वारा संस्तुति कि जा चुकी है।
एग्री फाउंड व्हाईट (41 जी)
यह किस्म 150 – 160 में तैयार हो जाती है शल्क कंद ठोस त्वचा चांदी जैसी, गुदा क्रीम के रंग, ग्लोब बड़े और दिनों 20 -25 प्रत्येक शल्क कंद में पाया जाता है औसत 3.5 लहसुन – 4 से.मी. व्यास वाले कंद होते है यह किस्म गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि प्रदेशों के लिए अखिल भारतीय समन्वित सब्जी सुधार परियोजना के द्वारा संस्तुति कि जा चुकी है इसकी उपज 130 – 140 क्विंटल प्रति हे . हो जाती है।
यमुना सफेद 2 (जी 50)
शल्क कंद ठोस, त्वचा सफेद गुदा, क्रीम रंग का होता है यह किस्म 165-170 दिन में तैयार हो जाती है रोगों जैसे बैंगनी धब्बा ( पर्पिल ब्लांच ) और झुलसा रोग के प्रति सहन शील होती है इसकी 150-155 उपज क्विंटल प्रति हे. हो जाती है यह किस्म मध्य प्रदेश के लिए अच्छी पाई गई है।
जी -282
शल्क कंद सफेद, बड़े आकार (5.87 से.मी. व्यास) ठोस होते है प्रत्येक क्लोव 1.04-1.05 मोटा होता है एक क्लोव 205 ग्राम से 2.8 ग्राम तक का होता है 15-18 क्लोव प्रति शल्क कंद पाए जाते है यह किस्म 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है यह किस्म निर्यात कि दृष्टि से उत्तम है 175-200 क्विंटल प्रति हे उपज मिल जाती है।
एग्रीफाउंड पार्वती ( जी 313)
इसकी बुवाई सितम्बर अक्टूम्बर में करते है यह किस्म पहाड़ों में उगाने के लिए उपयुक्त है यह दिनों में तैयार हो जाती है इसके शल्क कंद बड़े, हल्का सफेद बैंगनी रंग मिश्रित और 250-170 किस्म 10-12 क्लोव वाले होते है शल्क कंदों का व्यास 5 -7 से.मी. होता है 4-5.5 ग्राम वाले क्लोव क्रीम रंग के होते है यह किस्म भी निर्यात के लिए उत्तम पाई गई है इसकी उपज 175-200 तक मिल जाती है।
आई. सी. 42891
इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है यह किस्म अधिक उपज देती है यह फसल 160-180 दिन में तैयार हो जाती है।
1 सेलेक्शन
इस किस्म का विकास चौधरी चरण सिंह हरियाणा वि.वि. द्वारा किया गया है यह किस्म अधिक उपज देने वाली है।
नवीनतम किस्में
वी.एल. जी
जम्मू कश्मीर, हिमाचल पदेश उत्तर प्रदेश कि पहाडिय़ों, बिहार पंजाब में उगाने कि सिफारिश कि गई है।
बीज बुवाई / पौध रोपण
लहसुन कि बुवाई का समय इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कहां उगाया जा रहा है
मैदानी क्षेत्रों में सितम्बर से नवम्बर तक।
पहाड़ी क्षेत्रों में माचज़् से मई तक।
बीजोपचार
बीज को बोने से पहले कैरोसिन या गोमूत्र द्वारा उपचारित करके बोना चाहिए।
बुवाई किविधि
लहसुन कि बुवाई कुढ़ों में छिटकवां डबलिंग विधि से कि जाती है अच्छी उपज के लिए लहसुन कि बुवाई डबलिंग विधि से करनी चाहिए इसके लिए दुरी निम्न प्रकार से रखनी चाहिए-
पंक्ति से पंक्ति कि दूरी 15 से.मी.
पौध से पौध कि दूरी 7.5 से.मी.
बोने कि गहराई – 5 से.मी.
आर्गनिक खाद
लहसुन कि अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे एक एकड़ के हिसाब से 20-25 टन गोबर कि सड़ी हुई खाद को समान मात्रा में बिखेर दें और आर्गनिक खाद 2 बैग भू – पावर 50 किलो ग्राम, 2 बैग माइक्रो फर्टीसिटी कम्पोस्ट वजन वजन 40 किलो ग्राम, 2 बैग माइक्रो भू – पावर वजन 10 किलो ग्राम, 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सीफर्ट 10 किलो ग्राम, और 50 किलो अरंडी कि खली, 2 बैग माइक्रो नीम वजन 20 किलो ग्राम, सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण तैयार कर खेत में इन वजन समान मात्रा में बिखेर कर जुताई कर खेत तैयार करें फिर बुवाई करे।
25-30 फसल दिन कि हो जाए तब उसमे 2 बैग सुपर गोल्ड मैनिशियम वजन 1 किलो ग्राम और माइक्रो झाइम 500 जब मि.ली. 400 पानी मिलाकर अच्छी तरह घोल बनाकर पम्प द्वारा छिड़काव करें और प्रति 15 – 20 दिन के अंतर से दूसरा व तीसरा छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई
गांठों के समुचित विकास के लिए भूमि में पर्याप्त नमी का होना अत्यंत आवश्यक है बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई कर दें उसके बाद 10-15 दिन के अंतर से सिचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारों कि रोकथाम के लिए इसकी – निराई गुड़ाई अवश्य करें पहली निराई – गुड़ाई हैण्ड हैरो या खुरपी द्वारा बोने के 20-25 दिन बाद करें इसके बाद दूसरी निराई – गुड़ाई इसके पहली के 20-25 दिन ( 40-50 दिन ) बाद करें इसके बाद – निराई गुड़ाई कि क्रिया नहीं करनी चाहिए।
कीट नियंत्रण
थ्रिप्स
ये कीड़े छोटे और पीले रंग के होते है जो पत्तियों पर सफेद धब्बा बना देते है ये कीड़े पत्तियों का रस चूसते है।
रोकथाम
इनकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर मि.ली. 250 प्रति पम्प द्वारा तर – बतर कर खेत में छिड़काव करें।
रोग नियंत्रण
बैंगनी (पर्पिल ब्लांच) धब्बा
यह रोग आल्टरनरिया पोरी द्वारा होता है पत्तियों और तने पर छोटे-छोटे गुलाबी रंग के धब्बे पड़ जाते है।
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर मि.ली. 250 प्रति पम्प द्वारा – तर बतर कर खेत में छिड़काव करें।
प्याज का कंडुआ रोग
यह रोग यूरोसाईटिस सपुली नामक फफूंदी के कारण होता है बीज के स्थान पर काले रंग के पिंड बन जाते है जो इस रोग के जीवाणु होते है।
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए बीज को कैरोसिन या गोमूत्र द्वारा उपचारित कर बोना चाहिए।
स्टेमफिलियम ब्लाईट
यह पत्तियों का प्रमुख रोग है आद्र्र मौसम में यह रोग अधिक लगता है यह रोग फफूंदी के कारण होता है।
रोकथाम
रोकथाम इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर छिड़काव तर बतर करे।
खुदाई
इसकी फसल 4 4 1 / 2 महीने में तैयार हो जाती है फसल तैयार हो जाने पर पत्तियां पिली पड़कर मर जाती है कंदों को पौध सहित भूमि से उखाड़ लिया जाता है इसके बाद पत्तियों के ऊपर से बांध कर छोटे—छोटे बण्डल बनाकर रख दिया जाता है 2-3 दिन में धुप में सुखाकर तत्पश्चात ऊपर का भाग काट दिया जाता है।
उपज
लहसुन कि उपज उसकी जातियों, भूमि और फसल कि देख-रेख पर निर्भर करती है प्रति हेक्टेयर 100 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है जूनागढ़ में लहसुन कि उपज जी.जी. 2 कि अधिकतम उपज 8.8 टन प्राप्त हुयी।
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