कस्बा प्रभारी अनिल सक्सेना की अध्यक्षता में शांतिपूर्वक तरीके से निकला कदीमी जुलूस
पिहानी।हरदोई।कस्बे में आज शिया समुदाय ने आठ रव्वीउल अव्वल का जुलूस बड़ी ही अकीदत के साथ पारंपरिक तरीकों से निकाला।ज्ञात हो कि मोहर्रम के महीने से सवा दो महीने तक इस समुदाय के लोग गमगीन माहौल में अजादारी मातमदारी करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद साहब के जांनशीन नवासों का गम मनाते हैं।छ:माह के बच्चे सहित 72 जांनशीनों की रेगिस्तान की तपिश वाले इराक़ी सहरा में तीन दिन तक प्यासे रहकर शहादत होने के बाद सब्र और इंसानियत के साथ इस्लाम और मुसलमान होने का जो पैगाम दिया उसे यादगार बनाकर आज भी उनके मानने और चाहने वाले बड़ी अकी़दत से ताज़िए रखकर मनाते हैं।इमाम हुसैन के साथ किए गए जुल्म के महीनों को समुदाय विशेष के लोग आज भी गमगीन असीरी के माहौल का पुरसा देने के लिए जुलूस निकाल कर बड़ी ही अकीदत के साथ इस यादगार को ताजा करते हैं।सवा दो माह तक इस समुदाय विशेष के लोग नये लिवास की खरीदारी व लाल पीले चटकीले वस्त्र त्यागकर काले या हरे वस्त्रों को धारण करते हैं।औरतें श्रृंगार भी नहीं करतीं बल्कि इनका रिवाज है कि मोहर्रम का चांद नमूदार होते ही घरों में रोने की सदा लगाकर चूड़ियां तोड़ देती हैं।आज उर्दू कैलेंडर के मुताबिक आठ रव्वीउल अव्वल को जूलूस निकालकर गमगीन माहौल की सदाएं तीसरे पहर के आखिरी लम्हे तक रहतीं हैं।आज की तारीख के बारे में समुदाय विशेष की हदीस के मुताबिक कर्बला में इमाम हुसैन और उनके 72 जांनशीनों के साथ 6 माह के बच्चे की दरिंदगी से शहीद करने के बाद 6 साल की बच्ची सहित हुसैनी घराने की तमाम बीवियों और बेटियों को कैद करके एक ही रस्सी में सभी को बांधकर 366 शहरों से खुले सिर बेपर्दगी के साथ घुमाने वाले लश्करे यजीद के मुखिया की करतूत की खबर जैसे ही इमाम हुसैन के एक जांनशीन खानदानी दोस्त को मिली वैसे ही उन्होंने अकेले ही लश्करे यजीद के मुखिया सहित कुल 313 सिर काटकर इमाम हुसैन के उस बेटे के कदमों में आज की तारीख में तीसरे पहर के आखिरी लम्हे में लेजाकर रख दिए थे जिसको कर्बला की जंग में बीमार होने की वजह से जंग करने से रोका गया था और यजीदी लश्कर ने बीमार होने के कारण जंग न करने की वजह से उनको शहीद न करके बीवियों और बेटियों के साथ ही कैदखाने में डाल दिया था।बस यहीं पर 313 दुश्मनों के सिर देखकर वे मुस्कुरा दिए और खत्म हुआ मोहर्रम।इस्लाम में खुशी मनाने की घड़ी आई थी।इस जुलूस में राएबरेली,सिरसी मुरादाबाद और महमूदपुर सरैंया हरदोई की अन्जुमनों ने अपनी पुरसोज़ आवाज़ में नौहेख्वानी व मरसिएखानी करके अपने कलाम पढ़े।जुलुस अपने कदीमी रास्तों से गुजरकर ठीक दोपहर 12:30 बजे जोहर की अज़ान के बाद शाम मगरिब की अजान के वक्त स्व० नवाब मोहम्मद कुली के इमामबाड़े में पहुंचकर अलविदा किया गया।
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