मार्गशीर्ष (अगहन) संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | मार्गशीर्ष (अगहन) मास गणेश चतुर्थी की कहानी | Alienture हिन्दी

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Thursday 22 November 2018

मार्गशीर्ष (अगहन) संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | मार्गशीर्ष (अगहन) मास गणेश चतुर्थी की कहानी

Margashirsha Sankashti Chaturthi Vrat Katha In Hindi | Agahan Month Ganesh Chaturthi Story | संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है । मार्गशीर्ष (अगहन)  मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत, मार्गशीर्ष (अगहन) संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कहलाता है। इस तिथि को ‘गजानन’ गणेश की पूजा की जाती है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करे, तो गणेश चतुर्थी का व्रत करें । इससे कष्ट दूर होते हैं और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

Margashirsha Sankashti Chaturthi Vrat Katha

 

मार्गशीर्ष संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | Margashirsha Sankashti Chaturthi Vrat Katha 

पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती हैं, उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए?

गणेश जी ने उत्तर दिया कि हे हिमालयनंदनी! अगहन में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद अर्ध्य देना चाहिए। दिन भर व्रत रहकर पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शाकला बनाकर हवन करावें तो वह अपने शत्रु को वशीभूत कर सकता हैं। इस सम्बन्ध में हम तुम्हें एक प्राचीन इतिहास सुनाते हैं।

प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे। वे राजा आखेट प्रिय थे। एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का आखेट में वध कर दिया। उस ब्राह्मण के अंधे माँ-बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्रशोक में मर रहे हैं, उसी भांति तुम्हारा भी पुत्रशोक में मरण होगा। इससे राजा को बहुत चिंता हुई। इससे राजा को बहुत चिंता हुई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया। भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुई। पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए जहाँ उन्होंने खर-दूषण आदि राक्षसों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव के साथ मैत्री की। तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। ढूँढते-ढूँढ़ते वानरों ने गिद्धराज सम्पाती को देखा। इन वानरों को देखकर सम्पाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहाँ पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ हैं। संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आये हैं। वहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपरहण कर लिया गया हैं। हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहाँ है? उनकी बात सुनकर सम्पाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो। जानकी जी का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर है वह मुझे मालूम हैं। सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गँवा चुका हैं। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहां अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हुई है। रावण द्वारा अपहर्त सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही है। मैं आपसे सत्य कह रहा हूँ कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए। केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र लांघ सकते हैं। अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं हैं। सम्पाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे सम्पाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूँ? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूँ?

हनुमान जी की बात सुनकर संपाति ने उत्तर दिया कि हे मित्र! आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिये। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लेंगे। संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया। हे देवी! इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को लांघ गए। इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।

श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि महाराज युधिष्ठर! आप भी इस व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षणभर में अपने शत्रुओं को जीतकर सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी बनेंगे। भगवान कृष्ण का वचन सुनकर युधिष्ठर ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने शत्रुओं को जीतकर राज्य के अधिकारी बन गये।

मार्गशीर्ष मास गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि | Margashirsha Month Ganesh Chaturthi Vrat Pujan Vidhi – 

प्रात: काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो, शुद्ध हो कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप,दीप, नैवेद्य,अक्षत,फूल) विधि से करें। इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन-ही-मन श्री गणेश का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प करें:-
“मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये”
अब कलश में जल भरकर उसमें थोड़ा गंगा जल मिलायें । कलश में दूर्वा, सिक्के, साबुत हल्दी रखें। उसके बाद लाल कपड़े से कलश का मुख बाँध दें। कलश पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। पूरे दिन श्री गणेशजी के मंत्र का स्तवन करें।संध्या को दुबारा स्नान कर शुद्ध हो जायें। श्री गणेश जी के सामने सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जायें। विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें। वस्त्र अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में १० लड्डु अर्पित करें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा सुने अथवा सुनाये। जौ, चावल, चीनी, तिल व घी से हवन करें । तत्पश्चात् गणेश जी की आरती करें। ५ लड्डु प्रसाद के रूप में बाँट दें और शेष ५ अगले दिन ब्राह्मण को दान में दे ।

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