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Tuesday, 18 December 2018

सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना से गिरा राहुल का ग्राफ

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

क्षेत्रीय पार्टियों की अवहेलना झेल रही कांग्रेस के लिए तीन राज्यों के चुनाव संजीवनी की तरह थे। लगा कि अब गठबन्धन के बाजार में उसका भाव बढ़ जाएगा। लेकिन यह ज्वार मुख्यमंत्रियों की तैनाती तक भी कायम नहीं रह सका। उधर राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया, इधर कांग्रेस की असलियत सामने आ गई। सन्देश यह गया कि कांग्रेस ने अपनी जीत के लिए जाल फैलाया था। यह सफलता राहुल गांधी की नहीं राफेल पर फैलाये गए दुष्प्रचार की थी। इसमें क्षेत्रीय पार्टियों के प्रति लगाव नहीं था। इसके अलावा राहुल गांधी की भाषा शैली का स्तर भी ठीक नहीं है। ऐसे में कई क्षेत्रीय पार्टियों ने उचित दूरी के उपक्रम भी शुरू कर दिए। इसकी शुरुआत समाजवादी पार्टी ने की है।
अखिलेश ने कहा कि अब संयुक्त संसदीय समिति की जरूरत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की जांच के बाद जेपीसी जांच की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वोच्च है। इसमें हर पहलू पर विचार किया गया है। जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया था, तब तक सपा जेसीपी की मांग के पक्ष में थी। लेकिन अब इसकी कोई आवश्यकता नहीं रही। अखिलेश यादव ने कोर्ट के फैसले को सर्वोपरि बताते हुए संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग को वापस ले लिया है। बसपा प्रमुख मायावती भी इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को महत्व देने के पक्ष में है।

चेन्नई में द्रमुक नेता स्टॅलिन ने प्रधानमंत्री पद हेतु राहुल गांधी का नाम क्या लिया, अनेक पार्टियां बिफर गई। तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, तेलगु देशम पार्टी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि प्रधानमंत्री के नाम पर फैसला चुनाव के बाद होगा। जाहिर है कि तीन राज्यों में जीत के बाद राहुल का जो ग्राफ बढा था, वह कुछ घण्टे में उतर गया। इसमें राफेल पर उनके पैंतरे का सर्वाधिक योगदान है।

अखिलेश यादव ने ठीक कहा है कि जब जेपीसी की मांग की गई थी तो सुप्रीम कोर्ट का जिक्र नहीं किया गया था। पर अब जब कोर्ट ने फैसला दे दिया है तो अगर किसी को निर्णय पर आपत्ति है तो उसे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। कांग्रेस का प्रस्तावित महागठबन्धन में महत्व चुनाव परिणाम निकलने के ठीक पहले की स्थिति में आ गया है। तब तेलगु देशम के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने नई दिल्ली में बैठक बुलाई थी। कांग्रेस उनके पीछे चलती दिखाई दी थी। कहने को इसमें सत्रह पार्टियां थी। लेकिन पांच छह को छोड़कर शेष केवल संख्या बढ़ाने के लिए थी। सपा और बसपा से ने इससे दूरी बनाई रखी।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के गठबंधन को लेकर रुख से मायावती नाराज हैं। सरकार बनने के बाद भी मायावती कांग्रेस पर विश्वास करने को तैयार नही है। राहुल ने इस बैठक के बाद अपना ही एजेंडा मीडिया के सामने बयान किया। कहा कि लोग सरकार के खिलाफ खड़े हो रहे हैं और कह रहे हैं कि वादे पूरे नहीं किए गए। इस तरह की बात से ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू खुश नहीं है। क्योंकि अपने अपने प्रदेश में ये भी सरकार में है। इनपर भी वादे पूरे न करने के आरोप लग रहे है।

राहुल गांधी ने कहा था कि हमारा लक्ष्य भाजपा को हराने, भारत के संविधान और हमारे संस्थानों की रक्षा करना है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश की सभी संस्थाओं को नीचा दिखा रही हैं। वैसे राहुल यह नहीं बता सके कि भाजपा या संघ ने किस प्रकार देश की संस्थाओं को नीचा दिखा रहा है। राफेल पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर कांग्रेस की बयानबाजी संवैधानिक संस्था पर हमला है।बिहार में राजद भी कांग्रेस को अपने पीछे ही चलाना चाहती है। तेजस्वी यादव ने कांग्रेस से बिहार में महागठबंधन के लिए अपने लिए नेतृत्व करने की मांग की है।

वह बिहार में अपने लिए बड़ी भूमिका चाहते हैं, कांग्रेस को दोयम दर्जे से ज्यादा महत्व देने को तैयार नहीं है। कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है। उंसकी भूमिका भी है, लेकिन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों को ड्राइविंग सीट देना चाहिए। जिससे वह महत्वपूर्ण फैसले ले सकें। राज्य की राजनीति और वहां की सफलता राष्ट्रीय राजनीति के तेवर बदलेगी। इस प्रकार कांग्रेस को औकात बता दी गई है। तेलंगाना में कांग्रेस और तेलगु देशम का गठबन्धन नाकाम साबित हुआ। इससे भी चंद्रबाबू नायडू सावधान हुए है। उन्हें लग रहा है कि कांग्रेस को आंध्र प्रदेश में ज्यादा महत्व देने से उनका नुकसान हो सकता है। इसी प्रकार ममता वाजपेयी भी कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में उभरने का मौका नहीं देना चाहती।

तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस को लगा था कि अब महागठबन्धन में राहुल गांधी क्षमता को स्वीकृति मिल जाएगी। लेकिन राफेल पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने इस संभावना को समाप्त कर दिया है। राहुल गांधी फिर जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे है, उससे भी साबित है कि उनमें सुधार संभव नहीं है। यही कारण है कि क्षेत्रीय पार्टियां अपने हिसाब से चलने का मन बना चुकी है।

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