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Friday 17 May 2019

राहुल गांधी: अमेठी से वायनाड तक…नफा-नुकसान!

अगर अमेठी को ही मॉडल बनाकर उत्तरप्रदेश के सामने पेश करते तो नजारा कुछ और होता

वायनाड-अमेठी दोनों जीतने की सूरत में राहुल गांधी कौन सीट छोड़ेंग ये देखने वाली बात होगी

अशोक मिश्र

लखनऊ। भारतीय राजनीति में अगर मैराथन पारी खेलनी हैं तो उत्तरप्रदेश में कदमताल करना ही पड़ेगा .आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा राज्य है। 80 लोकसभा व 402 विधानसभा सीटें उत्तरप्रदेश से आती हैं। उत्तर प्रदेश में बीते कई दशक से राजनीतिक बनवास झेल रही कांग्रेस को संजीवनी की जरूरत है। कार्यकर्ताओं से अभी तक दूरी बनाये रखने वाली कांग्रेस संगठन के मामले में उससे कहीं आगे खड़ी भारतीय जनता पार्टी व गठबंधन से लड़ रही चुनावी लड़ाई में प्रभावहीन ही नजर आ रही है।

हालांकि राहुल व प्रियंका गांधी को छोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई भी नेता अपने बूते भीड़ जुटाने में सक्षम नहीं है। वहीं राहुल गांधी के वायनाड जाने से उत्तर प्रदेश की लड़ाई प्रियंका गांधी पर केन्द्रित हो गई है। सालों से कांग्रेस की गढ़ रही अमेठी-रायबरेली में भी कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिल रही है। राजधानी लखनऊ मुख्यालय से चंद घंटे की दूरी पर स्थित अमेठी ,रायबरेली ,सुल्तानपुर ,प्रतापगढ़ में कुल मिलाकर लोकसभा की चार व विधानसभा की 22 सीटें है। अमेठी के ही कुछ पुराने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की मानें तो राहुल गांधी अगर अमेठी को ही मॉडल बनाकर उत्तरप्रदेश के सामने पेश करते तो नजारा कुछ और होता। विकास से कोसों दूर अमेठी अपने नेता को हर बार चुनाव में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जिता कर संसद भेजती रही है और बदले में अमेठी को उपेक्षा का ही दंश झेलना पड़ता है। कहने के लिए तो अमेठी में बड़े बड़े उद्योग लगे हैं जिसमें कुछ बंद तो कुछ चल रहे हैं।

इन उद्योगों से अमेठी के स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं मिल पाता। कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद जो दल उत्तरप्रदेश की गद्दी पर विरोज उन्होंने अमेठी रायबरेली को विकास से उपेक्षित ही रखा। दूसरी तरफ केरल की बात करें तो कभी यह कांग्रेस का गढ़ रहा हो लेकिन वर्तमान में वामपंथी केरल में ज्यादा हावी हैं। 20 सीट में अगर राहुल 10 भी जीत जाये तो बड़ी जीत होगी। वायनाड से राहुल दक्षिण भारत को तो साध सकते हैं लेकिन उनको प्रधानमन्त्री बनाने के लिए ये काफी नहीं है। पूरे दक्षिण भारत को मिला कर भी उत्तरप्रदेश की भरपायी नहीं की जा सकती। अगर कांग्रेस को फिर से उत्तर प्रदेश में जीवित करना है तो राहुल को उत्तरप्रदेश व अमेठी दोनों जगह गतिविधियां बढ़ानी होंगी। पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर राहुल गांधी तक गांधी परिवार की कई पीढ़ियों ने अमेठी में राज किया एक राजीव गांधी को छोड़ दें तो बाकी सब छाप छोड़ने में विफल ही रहें। अमेठी को दूसरा राजीव गाँधी कब मिलेगा ये भविष्य के गर्त में है।

राहुल गांधी अगर केवल अमेठी रायबरेली पर ही अपना फोकस रखते तो आस पास के जिलो में में भी कांग्रेस अच्छा कर सकती है। बरसों से कांग्रेस व अमेठी के राजनीतिक नब्ज पर नजर रख रहे पत्रकार अम्बरीश मिश्र बताते हैं कि राहुल के वायनाड जाने से अमेठी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा साथ ही ये भी कहने से नहीं चूकते हैं कि अगर यहाँ राहुल थोड़ा और समय दें तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बेहतर कर सकती हैं। सुल्तानपुर से पत्रकार अवधेश शुक्ल बताते हैं कि राहुल के सामने अमेठी से मोदी भी चुनाव नहीं जीत सकते। अमेठी की जनता राहुल को अपन परिवार का सदस्य मानती है। वो कहते हैं कि वायनाड जाने से दक्षिण भारत में कांग्रेस मजबूत होगी। लोक सभा की वायनाड-अमेठी दोनों जीतने की सूरत में राहुल गांधी कौन सीट छोड़ेंग ये देखने वाली बात होगी। कांग्रेस अगर 2022 में विधान सभा चुनाव में अपनी मजबूत पकड़ चाहती है तो नीति नियंताओं को अमेठी-रायबरेली को केंद्र में रखकर अपनी चुनावी रणनीति बनानी होगी।

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