सबका साथ, सबका विकास का नारा लिये पहुंचे रहें पीएम
पीएम के संसदीय क्षेत्र से सटे होने के बावजूद नहीं मिली खास तरजीह
शिक्षा का ग्राफ ऊंचा, पर काम की तलाश में मेधावियों का पलायन जारी
रवि गुप्ता
लखनऊ। सबका साथ, सबका विकास का नारा लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरूवार को पूर्वांचल के प्रवेश द्वार या ऐतिहासिक शब्दों में कहें तो सिराज-ए-हिन्द के नाम से विख्यात जौनपुर की धरती पर जनसभा करने पहुंच रहे हैं। देखा जाये तो चरम पर चल रहे ऐसे चुनावी माहौल में अगर किसी भी लोकसभा क्षेत्र में खुद सत्ता पक्ष का मुखिया पीएम जनता-जनार्दन से सीधे तौर पर रूबरू होने के लिए पहुंचे तो इसके यही मायने निकाले जा सकते हैं कि संबंधित क्षेत्र का कुछ न कुछ राजनीतिक लाभ पार्टी नेतृत्व के मन-मस्तिष्क में चल रहा है।
अभी तक तो जनपद वासियों के बीच बीते पांच सालों में यही खुशफहमी रही कि…चलो अब जौनपुर के दिन बहुरेंगे, मोदी बगल के ही क्षेत्र से सांसद हैं तो वहां से निकलने वाली विकास की कुछ धारायें इस ओर भी रुख करेंगी। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि चिर-परिचित और बोलचाल वाले विकास के नाम पर अभी तक इमरती, तंबाकू की पत्तियों, चमेली के तेल और लम्बी-चौड़ी मूली के लिए जन-जन के बीच प्रसिद्ध जौनपुर आज भी एक अदद, अपेक्षित, सतत व ठोस विकास के लिए तरस रहा है। जिले की आधी से अधिक आबादी आज भी खेत-खलिहान पर निर्भर है, क्योंकि यहां पर उद्योगों का अभाव है। हालांकि जौनपुर-प्रयागराज मार्ग पर सतहरिया में पेप्सी व हॉकिंस की एकाध यूनिट है, तो वहीं वाराणसी रूट पर कुछ छोटी-मोटी औद्योगिक इकाईयां खुलने की ओर अग्रसर हैं। हैरानी तो यह भी है कि जिले में शिक्षा का ग्राफ तो काफी ऊंचा है, मगर काम की खोजबीन और बेहतर आवास की तलाश में आज भी यहां से मेधावियों का पलायन बदस्तूर जारी है।
वर्तमान में बीजेपी सांसद केपी सिंह यहां से सदन में जनता का प्रतिनिधित्व कर रहें, और दोबारा पार्टी ने उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया है। मगर इन पांच सालों में उन्होंने अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार में अपने संसदीय क्षेत्र के लिए क्या किया, इसको ढूंढने के लिए निकलेंगे तो कुछ खास हाथ नहीं लगेगा। क्षेत्रीय लोगों की मानें तो केपी का कुछ खास वर्ग में ही प्रभुत्व और वर्चस्व है, और उनके साथ बड़ा नाम यही जुड़ा है कि वो क्षेत्र के कद्दावर व जमीनी नेता रहे उमानाथ सिंह के पुत्र हैं बाकी उनकी भी राजनीतिक नैय्या पिछली बार मोदी लहर में ही किनारे लग पायी थी। हां, एक बात उनके संसदीय कैरियर के पक्ष में यही है कि उनकी लोकसभा में उपस्थिति का ग्राफ तो शानदार रहा, पर सदन में होने वाले बहस, वाद-संवाद में वो अपेक्षाकृत कम ही हिस्सा ले पायें। वहीं स्थानीय लोगों के मुताबिक अटल बिहारी की सरकार में जब इस क्षेत्र से 1999 में बीजेपी के स्वामी चिन्मयानंद सांसद रहें और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के पद पर रहें तो रेलवे सहित तमाम क्षेत्रों में जिले में विकास के काम हुए। जबकि दो बार सपा से पारसनाथ यादव और एक बार बसपा से बाहुबली धनंजय सिंह भी जिले में विकास के नाम पर कुछ विशेष नहीं कर सके।
जिले के राजनीतिक इतिहास को खंगाले तो भी इस सीट पर कांग्रेस छह बार, बीजेपी चार बार, सपा दो बार तो बसपा एक बार सदन में प्रतिनिधित्व कर पायी है। फिलहाल, पीएम मोदी के जौनपुर दौरे को लेकर राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो गई है। विपक्षी पार्टियां भी तमाम तरह से इस क्षेत्र को लेकर अपना गुणा-गणित लगाने में जुट गई हैं। वहीं जिले में विधानसभा सीटों के समीकरण पर गौर करें तो वर्तमान में शाहगंज और मल्हनी सीट सपा, बदलापुर और जौनपुर बीजेपी और केवल एक सीट मुगरा बादशाहपुर सीट बसपा के खाते में है। अबकी यहां के चुनावी समर में बीजेपी के निवर्तमान सांसद केपी, सपा-बसपा गठबंधन से श्याम सिंह यादव और कांग्रेस से देवव्रत मिश्र उतरे हैं। तीनों राजनीतिक चेहरों की पहचान की बात करें तो केपी सिंह जनपद के कद्दावर नेता रहे उमानाथ सिंह के पुत्र हैं, श्याम सिंह यादव पूर्व पीसीएस अधिकारी, अध्यक्ष यूपी राइफल एसो. और जनपद में सपा के मजबूत नेता ललई यादव के रिश्तेदार हैं तथा देवव्रत मिश्र पूर्व राज्यसभा सदस्य व राजीव गांधी के करीबी रहे शिव प्रताप मिश्रा उर्फ बाबा के पुत्र हैं।
‘जौनपुर में प्रत्याशी नहीं पार्टी लड़ रही है। पीएम का चुनाव हो रहा है जबकि गठबंधन तो इस सर्किल से पूरी तरह बाहर है। जनता समझदार है, उसे अपने वोट का सही महत्व और राष्ट्र के बेहतर भविष्य का अंदाजा बखूबी है। ’-: स्वामी चिन्मयानंद, पूर्व सांसद जौनपुर व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री
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