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Tuesday 4 June 2019

सपा-बसपा का गठबंधन टूट: ऐसा होने की है ये बड़ी वजह

नई दिल्ली। सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद मायावती का दावा है कि यादव वोट उन्हें नहीं मिले। वहीं सपा नेताओं के आरोप हैं कि दलितों ने उन्हें वोट नहीं दिया, जबकि यादवों ने मायावती के प्रत्याशियों के लिए जी-जान से मतदान किया। सवाल है कि आखिर किसका दावा सही है? गठबंधन से नफा किसे हुआ और नुकसान किसका हुआ?

सपा को हुआ बड़ा नुकसान
पहले सपा की जीती सीटों पर नजर डालते हैं। सपा को पांच सीटों- आजमगढ़, संभल, मुरादाबाद, रामपुर और मैनपुरी पर जीत मिली है। इनमें से अगर दो सीटों पर सपा को मिले मतों की समीक्षा करें तो तस्वीर कुछ साफ होती है। मैनपुरी मुलायम सिंह यादव की पुरानी सीट रही है। वर्ष 2014 में जीतने के बाद उन्होंने पोते तेज प्रताप सिंह यादव को यहां से उपचुनाव लड़ाया था। तब तेज प्रताप को उपचुनाव में 64 फीसदी वोट मिले। इस बार लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव का वोट प्रतिशत 10 फीसदी घट कर 53.75 रह गया।

ऐसा तब हुआ जबकि मुलायम सिंह के समर्थन में मायावती ने अखिलेश यादव के साथ संयुक्त रैली की। घटा हुआ प्रतिशत दो सवाल पैदा करता है। एक तो यह कि क्या यादवों ने उन्हें कम वोट दिया? वहीं दूसरा यह कि अगर उन्हें यादवों ने वोट कम भी दिया तो क्या दलितों ने वोट दिया? सियासी जानकार मानते हैं कि अगर दलित उनके लिए वोट करते तो उनके मतों का प्रतिशत घटता नहीं बल्कि बढ़ना चाहिए था। लिहाजा सपा नेता अंदरखाने निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि दलितों ने मुलायम सिंह को वोट नहीं दिया। वहीं कुछ फीसदी यादवों की नाराज़गी भी बताई जा रही है। कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद आदि में भी ऐसी ही स्थिति मानी जा रही है।

बसपा रही फायदे में
अब रही मायावती के दावे की बात। सियासी जानकार मायावती के इस दावे में कोई दम नहीं बता रहे कि यादवों ने उन्हें वोट नहीं दिया। सपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बसपा बताए कि उसने गाजीपुर, घोसी, जौनपुर और लालगंज लोकसभा सीटें कैसे जीतीं। गाजीपुर में तकरीबन साढ़े तीन लाख यादवों की आबादी मानी जाती है। अगर यादव वोट भाजपा के साथ होता तो पूर्व मंत्री मनोज सिन्हा कैसे हारते। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अफजाल अंसारी केवल मुस्लिमों और दलितों के बूते जीत पाए? गाजीपुर यादव बहुल सीट रही है। यहां से यादव जाति के कई नेता जीतते रहे हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति जौनपुर, लालगंज, घोसी व अंबेडकरनगर में भी मानी जा रही है। जौनपुर को ही लें।

जौनपुर यादव और क्षत्रिय बहुल सीट मानी जाती है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक जौनपुर में दलित 22 फीसदी, मुस्लिम12 और यादव करीब 15 फीसदी हैं। इस सीट पर बसपा के बैनर तले चुनाव जीते श्याम सिंह यादव को 50.08 फीसदी वोट मिले। यहां अगर यादव बसपा को वोट न देते तो भाजपा की जीत तय मानी जा रही थी। लिहाजा यह कहना कि यादवों ने बसपा को वोट नहीं दिया, गले से नहीं उतरता। लब्बोलुआब यह है कि यादव बहुत क्षेत्रों में दलितों का वोट सपा को नहीं मिला, जबकि अन्य सीटों यादवों का वोट बसपा को मिला, यानी गठबंधन का लाभ बसपा को मिला और सपा घाटे में रही है।

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