33 जिले का औसतन वाटर लेवल गया नीचे ,लाखों हैंडपंप( चापाकल) पड़े बंद ,कुंआ, तालाब तो कब सूख गये
>> आपसी विवाद और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया नल जल योजना ,नहीं निकल रहा पानी
>> राजधानी शहर पटना के सगुना मोड़ से लेकर गांधी मैदान ,फुलवारीशरीफ से आर-ब्लॉक, दानापुर से गांधी मैदान ,आशियाना से लेकर दीघा तक मुख्य सड़कें पर पानी का कोई नलका नहीं ,तड़प कर मर जाएंगे लेकिन नहीं मिलेगा पानी
रवीश कुमार मणि
पटना ( अ सं) । सरकार ,साहेब ,बाबू मालिक कहने पर आपकी प्रतिष्ठा बढ़ती हैं । वहीं प्रतिष्ठा देने वाले लाखों गरीब लोग पानी के लिए तड़प रहें हैं और हजारों करोड़ रूपये की योजना लाकर स्मार्ट सिटी बनाने की तैयारी में जुटे हैं । लेकिन गरीबों के पानी नही जुटा सकते । बिहार के 33 जिले का औसतन वाटर लेवल नीचे चला गया हैं । जिसके कारण लाखों चापाकल(हैंडपंप) बंद हो गये हैं । पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ हैं । मुख्यमंत्री का महत्वकांछी नल-जल योजना ,आपसी विवाद और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया हैं ,लाखों खर्च के बावजूद हाथी के दांत समान प्रदर्शित हैं ,नल से जल नहीं निकल रहा हैं । राजधानी पटना की हालत तो और बुरी हैं ,मुख्य सड़कें पर एक भी सरकारी नलका, चापाकल या पानशाला की कोई व्यवस्था नहीं हैं । मजदूर ही विकास की आधारशिला है यह आप कैसे भूल सकते हैं । पुरानी एक कहावत हैं मरता क्या नहीं करता ……
सरकार नहीं गांव में जमींदार( पूंजीपति ) बुझा रहें प्यास ! बदले में क्या…..
बिहार के सोन ,गंगा ,कोशी नदी के आदी नदियों के सटे करीब 33 जिले का वाटर लेवल का भी नीचे चल गया हैं । जिसके कारण सरकारी और घर के अंदर लगे निजी हैंडपंप ( चापाकल) फेल हो गये हैं । मुख्यमंत्री का महत्वकांछी योजना नल-जल के नाम पर पंचायतों में करोड़ों रूपये खर्च किये गये लेकिन सही सर्वेक्षण (चयन) नहीं होने ,आपसी विवाद और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया हैं । अधिकांश सरकारी नल-जल से कोई पानी नहीं निकल रहा हैं । भ्रष्टाचार का हिस्सा बना प्रशासन ,नल-जल के विवाद को सुलझाने में विफल हैं ।
राज्य के चारों ओर पानी के लिए मचा हहाकार ,गरीबों की जान पड़ गयी हैं लेकिन सरकारी तंत्र हाथ समेटे और मौन व्रत की मुद्रा में हैं । जमींदारी गये 65 वर्ष हो गये हैं ,पूंजीपति ही अब जमींदार की भूमिका में हैं । पूंजीपतियों के घर हर तरह की व्यवस्था हैं अब अपने लिए घरों में शमरसेबुल लगाएं हुये हैं ।जहां गांव में गरीबों का सैकड़ों हैंडपंप फेल हो गये है वहीं पूंजीपतियों का शमरसेबुल धारा प्रवाह पानी दे रहा हैं । इस सूखाड़ में इनके कुत्ते व लग्जरी गाड़ियां की धुलाई और बाग-बगीचे की सिंचाई से हरे-भरे ,एहसास दिला रहें हैं की हमारा कल भी और आज भी जलवा हैं । सैकड़ों लोग पानी के लिए इनके दरवाजे पर कतार लगाएं दिख रहें हैं ,गरीबों की मजबूरी बन गयी है पानी तो इनके लिए शान.गैलन, बाल्टी ,तसला, घड़ा में पानी दे रहे हैं लेकिन एहसान जताकर न की मानवता से। फिर भी गरीब लोग, पूंजीपतियों को दुआ दे रहे हैं और नेता ,सरकार को कोस रहे हैं ।
प्यास में तड़प रहा पटना
बिहार का राजधानी पटना हैं या यह भी कहं सकते हैं की सरकार और पूंजीपतियों का ठिकाना पटना हैं । इस पटना को स्मार्ट सीटी बनाने की कावयाद शुरू हो गयी हैं ।इसी पटना में रहने वाले हजारों परिवारों को न तो अपना घर हैं न कोई पहचान ।सड़कें इनके बिछवन है तो खुला आसमान छत। ऐसे लोगों के लिए पेट की भूख तो समस्या है ही वर्तमान में पीने के लिए पानी संकट बन गया हैं । पटना का मुख्य सड़क बेली रोड हैं । सगुना मोड़ से लेकर गांधी मैदान तक मुख्य सड़क पर कोई सरकारी या सार्वजनिक नलका की व्यवस्था नहीं हैं ,कोई हैंडपंप भी नहीं हैं । इसी तरह का हालत दानापुर से गांधी मैदान ,फुलवारीशरीफ से आर ब्लॉक तक की सड़कें पर हैं । अगर आपके पाकेट में 20 रूपये नहीं हैं तो प्यास में तड़प कर पटना में मर जाएंगे ,चुकी मुफ्त में पानी की कोई व्यवस्था नहीं हैं ।
चुनाव में चंदा ले लिए रूपये तो कैसे चलाए पानशाला
तपती गर्मी में लोकसभा चुनाव हुई ,इसमें राजनीतिक पार्टियों ने विकास के लिए खूब हवाएं बांधी।अपने को गरीबों का सही साथी बताया। इधर अपने को कारोबारियों का हितैसी कहंकर चंदा लिया और कहां की जीते तो आपको सुरक्षा और सुविधाएं का भरपूर ख्याल रखेंगे । कारोबारियों ने हजारों ,लाखों ,करोड़ों चंदा दिये । चुनाव खत्म हो गयी और सभी अपने -अपने जगह । प्रतिवर्ष गर्मियों में अपनी पहचान और मानवता को लेकर शहरों के चौराहे पर पानशाला खोलते थे उन्होंने वर्तमान गर्मी में नहीं किया । इनका साफ कहना हैं की चुनाव में राजनीतिक पार्टियां चंदा ले गयी ,बचत के पैसे से पानशाला चलाते थे, हमारे भी बाल-बच्चे परिवार हैं ,उनको भी देखना हैं । इस वर्ष पानशाला चलाने की स्थिति नहीं हैं ।
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