नयी दिल्ली। तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा पर रोक लगाने के मकसद से जुड़़ा नया विधेयक सरकार शुक्रवार को लोकसभा में पेश कर दिया है। विधेयक के पेश होने के बाद लोकसभा की कार्यवाही जारी है। इस विधेयक के कई प्रावधानों पर कांग्रेस ने विरोध दर्ज कराया है। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक को संविधान का उल्लंघन करने वाला बताया है।
इस पर हुई वोटिंग पक्ष में 186 वोट और विरोध में 74 वोट पड़े
नया बिल पेश करने को लेकर लोकसभा में वोटिंग
तीन तलाक बिल पर विपक्ष की आपत्ति के बाद वोटिंग हुई है,ध्वनिमत से बिल पेश करने का विरोध किया गया।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद- ‘हम संसद हैं। हमारा काम कानून बनाना है। और जनता ने हमें कानून बनाने के लिए चुना है। कानून पर बहस और व्याख्या अदालत में होती है। लोकसभा को अदालत न बनाएं।’
ट्रिपल तलाक बिल 2019 के लोकसभा में पेश करने के बाद रविशंकर प्रसाद ने कहा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाएगी। यह महिलाओं के न्याय और सशक्तिकरण के बारे में है।
लोकसभा में तीन तलाक बिल को लेकर हंगामा जारी है रविशंकर प्रसाद सवालों का जबाव दे रहे हैं।
तीन तलाक बिल का विरोध करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा- किसी एक समुदाय को टार्गेट करने के बजाय ऐसा कॉमन लॉ बनाया जाए जिसमें ऐसा करने वाले सभी लोग इसके दायरे में आ सके।
बिल को पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा- ‘इस कानून से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा होगी।’
ओवैसी ने तीन तलाक बिल पर सवाल उठाते हुए कहा- आपको मुस्लिम महिलाओं से इतनी मोहब्बत है तो केरल की महिलाओं के प्रति मोहब्बत क्यों नहीं है? आखिर सबरीमाला पर आपका रूख क्या है?
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में तीन तलाक बिल को पेश किया।
गौरतलब है कि पिछले महीने 16 वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद पिछला विधेयक निष्प्रभावी हो गया था क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित था।दरअसल, लोकसभा में किसी विधेयक के पारित हो जाने और राज्यसभा में उसके लंबित रहने की स्थिति में निचले सदन (लोकसभा) के भंग होने पर वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है।
सरकार ने सितंबर 2018 और फरवरी 2019 में दो बार तीन तलाक अध्यादेश जारी किया था. इसका कारण यह है कि लोकसभा में इस विवादास्पद विधेयक के पारित होने के बाद वह राज्यसभा में लंबित रहा था।
मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश, 2019 के तहत तीन तलाक के तहत तलाक अवैध, अमान्य है और पति को इसके लिए तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है।
जेडीयू ने तीन तलाक पर साफ कर दिया है अपना रुख
वहीं हाल ही में जेडीयू ने कहा कि पार्टी इस बिल का समर्थन नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि हमने एक कामन एजेंडे पर आगे बढ़ने की बात कही थी। हम ये मानते हैं कि सरकार की तरफ से कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जो संविधान के आदर्शों के खिलाफ हो। संविधान की मूल भावना को उनकी पार्टी समर्थन करती है और बीजेपी से अपेक्षा है कि वो इस तरह की मर्यादा का ख्याल करेंगे।
बता दें कि केंद्र सरकार ने करीब तीन दिन पहले इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा था कि अल्पसंख्यक समाज के महिलाओं को भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। सरकार मुस्लिम समाज के महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस मुद्दे पर जेडीयू महासचिव के सी त्यागी ने कहा कि मौजूदा तीन तलाक का बिल मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग को मान्य नहीं है ऐसे में सरकार को इस मुद्दे पर सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है।
जानें तीन तलाक (Triple Talaq) की खास बातें
मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा शौहर को तीन बार तलाक बोलकर बीवी से निकाह खत्म करने का अधिकार देती है। ऐसे कई मामले सामने आए, जिसमें भारत ही नहीं, देश से बाहर रहने वाले लोगों ने भी फोन पर या फिर व्हाट्स एप के जरिये तीन बार तलाक बोलकर बीवी से निकाह खत्म लिया। तीन तलाक पीड़ित पांच महिलाओं ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
तीन तलाक बिल पर भाजपा और जद-यू में बढ़ेगी रार!
तीन तलाक की सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय विशेष बेंच का गठन किया गया। शीर्ष अदालत ने 2016 में इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) सहित सभी पक्षकारों की राय मंगी। केंद्र ने लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर शीर्ष अदालत में तीन तलाक का विरोध किया तो AIMPLB ने इसे विश्वास का मसला बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2017 में तीन तलाक पर सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय बेंच के गठन का ऐलान किया था। उसी साल मई में शीर्ष अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह निकाह खत्म करने का सबसे ‘घटिया’ और ‘अवांछित’ तरीका है। AIMPLB ने इसे पिछले 1,400 वर्षों से जारी आस्था का सवाल बताया तो केंद्र ने तीन तलाक को अवैध ठहराए जाने पर मुस्लिम समाज में विवाह व तलाक के लिए नया कानून बनाने की बात कही।
अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक और कुरान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध बताया था। 5 जजों की पीठ ने 2 के मुकाबले 3 मतों से यह फैसला दिया। कोर्ट ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन बताया, जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। शीर्ष अदालत ने सरकार से इस संबंध में कानून बनाने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक लाया, जो दिसंबर 2017 में तो लोकसभा से पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था। बाद में सितंबर 2018 में सरकार ने तीन तलाक को प्रतिबंधित करने के लिए अध्यादेश लाया, जिसके तहत तीन तलाक को अपराध घोषित करते हुए शौहर के लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया।
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