हिंदू धर्म का एक संप्रदाय अघोर पंथ (Aghor Panth) भी है तथा इसका पालन करने वालों को अघोरी (Aghori) कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी तक कोई निश्चित प्रमाण नहीं हैं, मगर इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष माना जाता हैं।
शैव (शिव साधक) से संबधित होने के कारण अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है, क्योंकि पुराणों में विदित है कि शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप भी है।
अघोरियों का जीवन कठिन होने के साथ साथ रहस्यमयी भी है तथा इनकी साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी होती है। अघोरियों की हर बात निराली होती है, ये जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं। खुलासा डॉट इन में हम आज अघोर पंथ में प्रचलित कई मान्यताओं और धारणाओं पर बात करेंगे और बताएंगे कि कैसे रहते हैं अघोरी।
अघोरियों (Aghori baba) की साधनाएं
शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना, ये तीन तरह की साधनाएं अघोरी (Aghori) द्वारा की जाती हैं। । शव और शिव साधना में शव की साधना की जाती हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती का रखा हुआ पैर माना जाता है। इस प्रकार की साधना में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है। जबकि श्मशान साधना में आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा कर के गंगा जल चढ़ाया जाता है । शवपीठ से तात्पर्य उस स्थान से है जहाँ शवों का दाह संस्कार किया जाता है| इस साधना में मांस-मदिरा की जगह प्रसाद के रूप में मावा चढ़ाया जाता है।
Aghori शवों पर करते हैं साधना
हिन्दू धर्म के अनुसार आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित किया जाता है जो डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक (Aghori tantrik) इन्हीं शवों को पानी से निकल कर तंत्र सिद्धि में इस्तमाल करते है|
मुर्दे से बात करने में सक्षम होते हैं अघाेरी Aghori
यह बात सुनने में अजीब लगती है मगर सच है कि अघोरियों की साधना इतनी प्रबल होती है कि वो मुर्दे से बात करने में सक्षम होते हैं। अघोरियों के बारे में माना जाता है कि ये बहुत ही हठी व गुस्से वाले होते है । अधिकांश अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जिनको देख कर लगता है जैसे ये बहुत गुस्से में हो, लेकिन मन से वो उतने ही शांत होते है। अघोरी काले वस्त्रों व धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।
कुत्ता पालना होता है अघोरियों (Aghori) को पंसद
अक्सर अघोरी (Aghori) श्मशानों में ही कुटिया बनाकर रहते है तथा वहां छोटी सी धूनी जलती रहती है। ये जानवरों में वो सिर्फ कुत्तो को पालना पसंद करते हैं। अघोरी (Aghori) अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे हर हाल में पूरा करते हैं। अघोरी (Aghori) मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक सभी चीजों को खाते हैं, सिर्फ एक गाय का मांस छोड़ कर । इस पंथ में श्मशान साधना (shamshan sadhana) का विशेष महत्व होने के कारण ये श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। अघोरी अपने आप में मस्त रहते है तथा आम दुनिया से कटे होने के कारण आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते । इनका अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने में व्यतीत होता है ।
प्रमुख स्थान जहां अघोरी (Aghori) करते हैं साधना
तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान, दुनिया में चार ऐसे श्मशान घाट हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिल जाता हैं ।
पश्चिम बंगाल का तारापीठ
पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले के एक छोटा शहर में तारा देवी का मंदिर है, जिसे तारापीठ का मंदिर कहा जाता है । इस मंदिर में तारा मां की प्रतिमा स्थापित है जो कि मां काली का ही रूप है। पुराणों के अनुसार यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। इस मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, अत: इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस घाट कि विशेषता यह है कि इस घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है तथा यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। द्वारका नदी मंदिर के चारों ओर बहती है।
मां कामख्या मंदिर
गुवाहाटी, असम से 8 किलोमीटर की दूरी पर नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर कामाख्या मंदिर स्थित है । इस मंदिर को तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल माना जाता है तथा तांत्रिकों के लिए यह जगह स्वर्ग के समान है । मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान व महत्व रखता है। ये वही जगह है जहाँ भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने यहां स्थित श्मशान मं आते हैं।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक माना जाता हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये सात सौ सीढिय़ां बनी हुई हैं तथा से गोदावरी नदी का उद्गम भी यही से हो रहा है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं अत: भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। यहां स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए अत्याधिक प्रसिद्ध है।
महाकलेश्वर मंदिर उज्जैन
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर है, जो मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण हिन्दू धर्म में महाकालेश्वर महादेव को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है तथा तंत्र शास्त्र में इस शहर को फलदायी माना गया है। दूर-दूर से साधक यहां के श्मशान में तंत्र क्रिया करने आते हैं।
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