नई दिल्ली। रिटायर्ड जज पिनाकी चंद्र घोष को भारत के पहले लोकपाल बनाये जाने के लिये चयन समिति ने लोकपाल अध्यक्ष के तौर पर उनके नाम पर मुहर लग गई है। समिति ने इसके अलावा आठ सदस्यों के नामों को भी तय कर दिया है। इस समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन और मुकुल रोहतगी भी शामिल थे। मुमकिन है कि जल्दी ही इन सभी के नामों की औपचारिक घोषणा कर दी जाएंगी।
ये होगा काम
पिनाकी फिलहाल राषट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं। आपको बता दें कि लोकपाल केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ मिलकर काम करेगा। लोकपाल सीबीआई समेत किसी भी जांच एजेंसी को आरोपों की जांच करने का आदेश दे सकेगा। इसके अलावा इसकी जांच के दायरे में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री सांसद और सभी तरह के कर्मचारी आएंगे।
पिता भी रह चुके हैं जज
1952 में जन्में जस्टिस पीसी घोष (पिनाकी चंद्र घोष) जस्टिस शंभू चंद्र घोष के बेटे हैैं। 1997 में वे कलकत्ता हाईकोर्ट में जज बने। दिसंबर 2012 में वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। 8 मार्च 2013 में वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश प्रोन्नत हुए और 27 मई 2017 को वह सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश पद से सेवानिवृत हुए। जस्टिस घोष ने अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले दिये।
जयललिता के खिलाफ आय से अधिक सम्पति के मामले में उन्होंने शशिकला समेत बाकी आरोपियों को दोषी करार देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि फैसला सुनाए जाने से पहले तक जयललिता की मौत हो चुकी।
जस्टिस राधाकृष्णन के साथ वाली बेंच में रहते हुए उन्होंने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड जैसी परपंरा को पशुओं के प्रति हिंसा मानते हुए उन पर रोक लगाई।
अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ बेंच में रहते हुए उन्होंने निचली अदालत को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्णआडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और बाकी नेताओ पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था।
सरकारी विज्ञापनों के लिए दिशा निर्देश तय करने वाली बेंच के भी वो सदस्य थे।
जस्टिस पीसी घोष, चीफ जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस कलीफुल्ला के साथ उस बेंच के भी सदस्य थे, जिसने ये तय किया था कि केंद्रीय एजेंसी ( सीबीआई )की ओर से दर्ज मुकदमें में दोषी ठहराए गए राजीव गांधी के दोषियों की सज़ा माफी का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है।
जस्टिस घोष उस संविधान पीठ के भी सदस्य थे, जिसने अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के फैसले को पलटते गए वहां पहली की स्थिति को बहाल किया था।
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