आए दिन बहार के (कवि नागार्जुन/कविता संग्रह) ‘स्वेत-स्याम-रतनार’ अँखिया निहार के सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के खिले हैं दाँत ज्यों दाने अनार के आए दिन बहार के ! बन गया निजी काम- दिलाएंगे और अन्न दान के, उधार के टल गये संकट यू.पी.-बिहार के लौटे टिकट मार के आए दिन बहार के ! सपने दिखे कार के गगन-विहार के सीखेंगे नखरे, समुन्दर-पार के लौटे टिकट मार के आए दिन बहार के ! रचनाकाल : 1966 कवी नागार्जुन
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Wednesday 22 May 2019
Aaye Din Bahaar Ke, Hindi Kavita Sangrah
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