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Saturday, 25 May 2019

पवित्र रमजान के रोजे मनुष्य के लिए वारदान-कारी सुभ्हान रजा

हरदोई-बिलग्राम के रहुला की जामा मस्जिद नूरी में तरावीह के दौरान कुरआन पाक मुकम्मल होने पर कारी सुभ्हान रजा कादरी ने बयान करते हुए वहां मौजूद लोगों को बताया कि अल्लाह के द्वारा मनुष्य को दी गई हजारों नेयमतो में से एक नेयमत पवित्र रमजान के रोजे भी हैं जिनको रख कर इंसान अपने जिस्म का कायाकल्प कर सकता है साथ ही अपने रब के करीब पहुंचने का मार्ग भी पा सकता है।उन्होंने कहा कि बेशक हमारे अल्लाह ने हमारी ही भलाई के लिए हम पर ये पवित्र रमजान के रोजे फ़र्ज़ किये हैं जो लोग उसके एहकाम को मानते हैं। उनकी दुनिया के साथ साथ आख़िरत भी सवांर जाती है। आगे कहा कि वैसे तो हर धर्म में किसी न किसी रूप में रोजे रखे जाते रहे हैं कोई उपवास रख कर अपने ईश्वर को राजी करता है। और मुसलमान तीस रोजे रखकर अपनी भूख प्यास को सहकर अपनी इच्छाओं पर पूरा नियंत्रण प्राप्त करने में सफल होता है। उन्होंने बताया कि रोजा रखने से जिस्म में कौन कौन से बदलाव आते हैं और कैसे हमारा जिस्म पहले के मुकाबले ज्यादा चुस्त दुरुस्त और फूर्तीला हो जाता है। आइये जानते हैं कि तीस रोजे रखने वाले लोगों के शरीर में कौन कौन से बदलाव आते हैं और कैसे मनुष्य के शरीर का कायाकल्प हो जाता है। कारी सुब्हान रजा ने बताया कि रोजा रखने के पहले ही दिन ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी ख़ून से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है।दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है और ख़ून का दबाव कम हो जाता है। नसें जमाशुदा ग्लाइकोजन को आज़ाद कर देती हैं। जिसकी वजह से जिस्मानी कमज़ोरी का एहसास उजागर होने लगता है। विषयले माद्दों की सफाई के पहले राउंड के नतीज़े में- सरदर्द सर का चकराना, मुंह का बदबूदार होना और ज़बान पर सफेद परत का जम जाती है।तीसरे से सातवे रोज़े तकशरीर की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले राउंड में ग्लूकोज में बदल जाती है। कुछ लोगों में चमड़ी मुलायम और चिकनी हो जाती है। जिस्म भूख का आदी होना शुरु हो जाता है और इस तरह साल भर व्यस्त रहने वाला हाज़मा सिस्टम छुट्टी मनाता है। खून के सफ़ेद कण और इम्युनिटी में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है। हो सकता है रोज़ेदार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ़ हो, इसके ज़हरीले प्रदार्थो की सफाई का काम शुरू हो चुका होता है। आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है। आंतों की दीवारों पर जमा मवाद ढीला होना शुरू हो जाता है।आठवें से पंद्रहवें रोज़े तक आप पहले से चुस्त महसूस करते हैं। दिमाग़ी तौर पर भी चुस्त और हल्का महसूस करते हैं। हो सकता है कोई पुरानी चोट या ज़ख्म महसूस होना शुरू हो जाए। इसलिए कि आपका जिस्म अपने बचाव के लिए पहले से ज़्यादा एक्टिव और मज़बूत हो चुका होता है। जिस्म अपने मुर्दा सेल्स को खाना शुरू कर देता है। जिनको आमतौर से केमोथेरेपी से मारने की कोशिश की जाती है। इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का एहसास बढ़ जाता है। नाड़ियों और टांगों में तनाव इसी अमल का क़ुदरती नतीजा होता है। जो इम्युनिटी के जारी अमल की निशानी है।ऐसे लोगों को रोज़ाना नमक के ग़रारे नसों की अकड़न का बेहतरीन इलाज है।सोलहवें से तीसवें रोज़े तकजिस्म पूरी तरह भूख और प्यास को बर्दाश्त का आदी हो चुका होता है। आप अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस जरते हैं।इन दिनों आप की ज़बान बिल्कुल साफ़ और सुर्ख़ हो जाती है। सांस में भी ताज़गी आ जाती है। जिस्म के सारे ज़हरीले पदार्थो का ख़ात्मा हो चुका होता है। हाज़मे के सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है। जिस्म से फालतू चर्बी और ख़राब माद्दे निकल चुके होते हैं। बदन अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने फ़राइज़ अदा करना शुरू कर देता है। बीस रोज़ों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज़ हो जाते हैं।सोचने और समझने की सलाहियत बढ़ जाती है। बेशक बदन और रूह तीसरे अशरे की बरकात को भरपूर अंदाज़ से अदा करने के काबिल हो जाते हैं।इसलिए रब ने लोगों पर रोजा रखना जरूरी किया हैं।

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