एग्जिट पोल की संभावनायें बनीं तो कई बडेÞ चेहरों का राजनीति से होगा लोप
चुनावी नतीजे तय करेंगे मुलायम, लालू, शरद पवार, अजीत सिंह, शरद पवार व देवगौड़ा
का राजनीतिक भविष्य
रवि गुप्ता
लखनऊ। जिस तरह से विभिन्न मीडिया माध्यमों के एग्जिट पोल सर्वे में नई सरकार बनाने के रुझान आ रहे हैं…सही में यदि ऐसा कुछ हुआ तो वर्तमान भारतीय राजनीति के कई ऐसे पुरोधा लीडर हैं जो एक तरह से नेपथ्य में चले जायेंगे। इनमें राजनीति में धरती पुत्र व ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर मुलायम तो करिश्माई राजनीतिक छवि के दम पर बिहार में लम्बे समय तक एक छत्र राज करने वाले लालू यादव तक शामिल हैं। ये वो नेतागण हैं जिन्होंने अपने ही हाथों से अपनी-अपनी पार्टी की नींव रखी और अब ढ़लते उम्र के चलते सक्रिय राजनीति से उतना ज्यादा नाता चाहकर भी नहीं रख पाते हैं। वहीं वरिष्ठ पत्रकार हेमेंद्र प्रताप तोमर के मुताबिक जो स्थितियां दिख रही हैं कि ऐसे में पक्ष तो ताकतवर होता दिख रहा है, जबकि देश में विपक्ष एक प्रकार से नेतृत्वहीन और कमजोर प्रतीत हो रहा क्योंकि उसके एक-एक बडेÞ नेताओं के राजनीतिक भविष्य खतरे के निशान पर दिख रहे हैं।
हालांकि ऐसे राजनीतिक ऊथल-पुथल में भी इन वरिष्ठ नेताओं की भूमिका कम या अधिक उनके दलों में अभी भी कायम है। मगर इन बुजुर्गवार नेताओं के राजनीतिक कैरियर को लेकर सवाल तब से उठने लगा जब गत रविवार को 2019 लोकसभा चुनाव के आखिरी फेज का मतदान संपन्न हुआ और उसके साथ ही एग्जिट पोल से जुडेÞ आंकड़ों के आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया। तमाम मीडिया माध्यमों व सोशल मीडिया सर्वे के आधार पर प्रस्तुत किये जा रहे सभी के एग्जिट पोल में लगभग एक प्रकार की समानता तो दिख ही रही है कि एनडीए सरकार बना सकती है जबकि यूपीए विपक्ष में और बाकी सब इधर-उधर। यानी इसके आधार पर देखा जाये तो पक्ष जरूरत से ज्यादा मजबूत हो सकता है, तो विपक्ष के बिखरे हुए और कमजोर होने की आशंका जाहिर की जा रही है। सबसे बड़ा दल होने के नाते कांग्रेस तो फिर भी अग्रिम पंक्ति में ही खड़ी रहेगी जबकि विपक्ष के अन्य छोटे-मझोले व क्षेत्रीय दलों के राजनीतिक अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो सकता है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ऐसी स्थितियां इसलिए बनती दिख रही हैं क्योेंकि एग्जिट पोल की संभावनाओं को माना जाये तो इन दलों की नींव रखने वाले नेताओं का ही ‘पॉलीटिकल कैरियर’ हाशिये की ओर जा रहा है।
इन पुरोधा नेताओं में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह समेत दक्षिण भारतीय राजनीति के वयोवृद्ध नेता एचडी देवगौड़ा व शरद यादव शामिल हैं। शुरूआत करते हैं सपा संस्थापक मुलायम सिंह से, जो अभी अपनी ही पार्टी में संरक्षक की भूमिका में हैं। मगर इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि इस राजनीतिक ढलान में भी वो कई बार अपनी पार्टी के लिये संकटमोचन की भूमिका निभाते आये हैं। वहीं पीएम मोदी से लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उनके मधुर राजनीतिक संबंध पहले से ही जगजाहिर हैं। ऐसे में अगर इस चुनाव में उम्मीद पर खरा नहीं उतरी तो मुलायम सिंह के लिए यह काफी दुखद होगा। इसी तरह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भले ही जेल में हों, पर अपने तीखे बयानों से वो लगातार पार्टी में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने से नहीं चूकते हैं। वहीं जब परिणाम उनकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं आया तो उन्हें करारा झटका लग सकता है।
ऐसे ही शरद पवार, अजीत सिंह, देवगौड़ा और शरद यादव भी अपने-अपने हिस्से की राजनीति कर चुके हैं। अब अगर चुनावी नतीजे इन नेताओं के विपरीत आयें तो इनका राजनीतिक वनवास लगभग तय है। यानी जो नेता एक जमाने में कभी भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को अपने राजनीतिक कौशल व कूटनीति के दम पर मोड़ने का माद्दा रखते रहें, वो आज उसी तंत्र के ऊठापटक से थक-हारकर नेपथ्य की ओर अग्रसर होते दिख रहे हैं।
No comments:
Post a Comment