लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम चुनाव की निष्पक्षता एंव पारदर्शिता एक बार फिर कटघरे में हैं। यह सवाल आम मतदाता की तरफ से नहीं उठाया जा रहा है बल्कि राजनेताओं और राजनैतिक दलों ने उठाया है। वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की सुचिता के साथ इस कार्य में लगे तंत्र की निष्पक्षता का भी सवाल अहम बन गया है। 23 मई को 17 वीं लोकसभा के नतीजे हमारे सामने होंगे, लेकिन मतदान की पूरी प्रक्रिया पर बार-बार लगते लांछन हमारी लोकतांत्रिक विरासत को कमजोर कतरे हैं। एक बार सरकार फिर बनेगी। वह चाहे बहुमत की बने या गठजोड़ की, लेकिन सुचिता का प्रश्न आज भी सबसे मूल है। चुनाव आयोग इस पर अभी तक कोई तटस्थ नीति नहीं बना पाया है जबकि यह उसकी नैतिक जिम्मेवारी बनती है कि खुद उपर उठते सवालों का जबाब दे और चुनाव प्रणाली को पारदर्शी, निष्पक्षता के साथ और साफ-सुथरा बनाया जाए। हालांकि इसके पूर्व भी चुनाव आयोग ईवीएम पर उठे सवालों का समुचित जबाब ईवीएम मशीनों के प्रदर्शन के माध्यम से दे चुका है। लोकसभा के आम चुनाव में गैर भाजपाई दल और वीवीपैट को लेकर सुप्रीमकोर्ट भी जा चुके हैं, जिसमें अदालत मतदान के मिलान करने का आदेश दे चुका है जबकि प्रतिपक्ष इस प्रतिशत को 50 फीसदी किए जाने की मांग कर रहा है। सुप्रीमकोर्ट इस पर सुनवाई करेगा। 50 फीसदी वीवीपैट पर्चियों का मिलान मतगणना प्रक्रिया को और अधिक जटिल बनाएगा। परिणाम आने में कई दिन लग सकते हैं, इसके अलावा खर्च का अतिरिक्त बोझ भी बढ़ सकता है। आयोग अपनी बात कोर्ट में रख भी चुका है। लेकिन बीच का रास्ता क्या है उस पर गौर करना होगा।
लोकसभा कें सभी सात चरणों के मतदान खत्म होने के बाद ईवीएम बदलने की जिस तरह अफवाहें उड़ी वह वाकई हमारी व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं। सोशलमीडिया पर ईवीएम बदलने की बातें खूब वायरल हुई जिसकी वजह से आयोग की विश्वसनीयता के साथ पूरा प्रशासनिक अमला विपक्ष के निशाने पर आ खड़ा हुआ। अफवाहों में कितना दम है यह तो जांच का विषय हो सकता है, लेकिन जो बाते खुल कर सामने आयीं हैं वह सवाल तो उठाती हैं। प्रतिपक्ष का अरोप है कि सत्ता पक्ष हार के भय से ईवीएम मशीनें बदलवा रहा है। ईवीएम बदलने की खबरें यूपी के चंदौली के साथ गाजीपुर, डुमरियागंज, झांसी और बिहार से आयीं। चंदौली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी का कभी हिस्सा रहा है। वाराणसी से विभाजित हो कर चंदौली को नया जिला बनाया गया है। यहां से यूपी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय चुनाव मैदान में हैं। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी की नेता राबड़ी देवी ने बाकायदा ट्यूट कर ईवीएम बदलने का आरोप लगाया। चुनाव आयोग से इस पर सफाई भी मांगी। इस मसले पर संबंधित जिला निर्वाचन अधिकारियों को ट्यूटर और मीडिया के जरिए अपनी बात रखनी पड़ी। मामला इतना तूल पकड़ा कि आयोग को भी संबंधित जिलों के बारे में सफाई देनी पड़ी और कहना पड़ा कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं ईवीएम बदलने की कोई बात नहीं है।
राजनीति अफवाहों को मुद्दा बना उसे सच साबित करने पर तुली हुई है। लोकतंत्र में हम पारदर्शिता की सौ फीसदी वकालत करते हैं, लेकिन अफवाहों को सच में तब्दील करने के षडयंत्र से हमें बचना चाहिए। विज्ञान और तकनीकी विकास का उपयोग अगर हम साकारात्मक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर सकते हैं तो उसमें हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। सच का गलाघांट खुद को सहीं ठहराने की नीति से बचना चाहिए। चुनाव आयोग अपने देश की संस्था है। अगर सत्ता पक्ष के साथ होना उसकी फितरत है तो फिर यह विवाद कभी थम नहीं सकता है। क्योंकि आज जो सत्ता में है कल वह प्रतिपक्ष में था और आज का प्रतिपक्ष कभी सत्ता में था। इसलिए इस तरह के विवादों से बचना चाहिए। किसी भी संवैधानिक संस्था की साख पर सवाल खड़े करना न्यायोचित नहीं हैं। प्रश्न और तर्क के साथ सवाल भी उठने चाहिए, लेकिन यह बातें सिर्फ राजनीति के लिए प्रयोजित हों तो ऐसी साजिश से सभी राजनैतिक दलों को बचना चाहिए। फिर मौसमी आरोप क्यों लगाए जाते हैं। जब विपक्ष जीतता है तो कोई सवाल नहीं उठते है, लेकिन जब सत्ता पक्ष की वापसी होती है तो ठीकरा ईवीएम पर फोड़ दिया जाता है ऐसा क्यों।
निर्चाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसकी अपनी गरिमा है। लेकिन वर्तमान राजनैतिक हालात में वह भी राजनीति का शिकार बन गया है। सत्ता के हाथ का खिलौना बनने का आरोप उस पर भी खूब लग रहा है। जिसकी वजह से आयोग की सुचिता और उसकी नीयति पर सवाल उठने लगे हैं जबकि ऐसी बात नहीं है। दो साल पूर्व ईवीएम हैक के मसले को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी सभी राजनैतिक दलों को चुनौती दिया था कि सभी राष्टीय और क्षेत्रिय दलों को चार-चार घंटे का वक्त दिया जाएगा अगर कोई राजनैतिक दल ईवीएम को हैक कर सकता है तो अपना प्रदर्शन करे, लेकिन ईवीएम को सियासी मुद्दा बनाने वाले राजनेता भाग खड़े हुए। जैदी ने साफ कर दिया था कि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव नहीं है। अयोग की इस चुनौती पर कोई दल आज तक खरा नहीं उतर पाया। जबकि ईवीएम मशीनें पूरी तरह स्वदेश में बनी हैं। इनका निर्माण में भेल और दूसरी तकनीकी कंपनियां करती हैं। आयोग मतदान प्रक्रिया को पूरी तरह निष्पक्ष बनाने के लिए पहली बार पर वीवीपैट मशीन का इस्तेमाल किया। भारत दुनिया का पहला मुल्क है जहां इस मशीन का उपयोग हुआ है। आयोग का साफ करना था कि हैक संभव नहीं है। जबकि जमींनी सच्चाई थी इस चुनाव में हर मतदाता अपने मतदान के बाद यह जान सकता था कि उसका वोट संबंधित उम्मीदवार के पक्ष में गया है या फिर दूसरे के खाते में। वोटिंग के दौरान वीवीपैट मशीन की स्क्रीन पर सात सेकेंड तक चुनाव निशान प्रदर्शित हो रहा था। फिर इस तरह के सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं। राजनेताओं को इस तरह के आरोपों से बचना चाहिए। देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था बेहद मजबूत हो चली है। अब हमें जाति, धर्म और दूसरे माध्यमों से चुनाव जीतने का सपना देखना छोड़ देना चाहिए। क्योंकि देश का अधिकांश वोटर अब युवा है वह मुद्दों को अहमियत देता दिखता है। पराजय के भय से आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाना कहा का न्याय होगा। हम अपने ही संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठा कर स्वस्थ और पारदर्शी लोकतंत्र का निर्माण नहीं कर सकते हैं। हम सत्ता पक्ष के अलावा प्रतिपक्ष में रह कर अच्छे तरह अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकते हैं। हर विषय को राजनीति में घसीटना न्याय नहीं है। इस व्यवहार से जहां राजनीति की साख गिरती है वहीं पारदर्शी व्यवस्था को लोगों को विश्वास उठता है। हमें नई सोच वालों को भी आगे लाना होगा। अब वक्त आ गया है जब बगैर प्रमाण के बेबुनियाद आरोप लगाने के बजाय तथ्यात्मक बातें को रखा जाए, जिस पर अवाम की जनता विश्वास करे। अयोग को भी अपनी निष्पक्षता बनाए रखने के लिए राजनैतिक हमदर्दी से बचना चाहिए, जिससे हमारी लोकतांत्रिक साख बनी रहे और विश्सनीयता पर सवाल न उठाएं जाएं।
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Wednesday 22 May 2019
चुनाव आयोग की सुचिता पर सवाल कितना जायज ?
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