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Wednesday, 29 May 2019

ओरल कैंसर का बचाव ही बेहतर इलाज है

उमेश कुमार सिंह

हमारी जीवन शैली से जुड़ी एक खतरनाक बीमारी है कैंसर। इस बीमारी के बढऩे के कई कारण हैं और बीमारी का प्रकोप शरीर के किसी भी अंग को अपनी चपेट में ले सकता है। लेकिन युवाओं में मुंह और गले का कैंसर अभी बढ़ता ही जा रहा है। इसका मूल कारण है तरह-तरह की तंबाकू, पान मसाला, गुटखा और बीड़ी-सिगरेट का सेवन यानी नशे की लत। चिकित्सक मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों के लिए तंबाकू को मुख्य कारण मान रहे हैं। लेकिन समय पर पहचान से इस जानलेवा बीमारी से बचाव भी संभव है।
नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर ऑकोलॉजिस्ट डा.समीर कौल का कहना है कि दरअसल आज हमारे देश की युवा पीढ़ी ने तंबाकू के विषय में अनेक गलत धारणाएं पाल रखी हैं। वे समझते हैं कि इसके इस्तेमाल से वे अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करते है, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पूरे देश के पुरु षों में गले व मूंह के कैंसर के मामले में तेजी से वृद्धि हो रही है। लेकिन अब महिलाएं भी पीछे नहीं है। हां ग्रामीण महिलाओं की तुलना में शहरी महिलाओं में यह ज्यादा पाया जा रहा है। आज बाजार में तंबाकू के तरह-तरह के उत्पाद मौजूद है। जैसे पान मसाला, गुटका, सिगरेट, सिगार से लेकर बीड़ी तक। आज स्कूली बच्चें बड़ी संख्या में पान मसाले के आदि होते जा रहे हैं। सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह है कि पंद्रह-सोलह वर्ष तक के बच्चे भी बड़ी संख्या में इसके आदी होते जा रहे हैं।
मुंह के कैंसर में सबसे ज्यादा प्रभावित अंग होठ, जीभ, गाल या मुंह हो सकते है। तंबाकू, गुटका या पान मसाला खाने से ऊतकों में बदलाव आने से ‘स्कैनस सेल कारसिनोमा’ नाम कैंसर हो जाता है। भारत में पाया जाना वाला यह तीसरा सबसे प्रमुख कैंसर है। समय रहते पहचान हो जाने पर इसका इलाज आसान हो जाता है। प्रारंभ में जीभ पर सफेद दाग या छाले पड़ जाते हैं। फिर धीरे-धीरे कोमल जीभ कठोर हो जाती है। बाद में मुंह खोलने में ही कठिनाई होने लगती है। पहले चरण में गले के अल्ट्रासाउंड, छाती के एक्स-रे व खून आदि के जांच से इसका पता चल जाता है। यदि कैंसर गले तक नहीं पहुंचा होता है, तो सर्जरी द्वारा उसे ठीक कर दिया जाता हैं दूसरे चरण में पता चलने पर यह पता किया जाता है कि कौन सा लिंक कोड कहां और कितना प्रभावित हुआ है? गर्दन में, बीच में या गर्दन के नीचे। यहां भी सर्जरी द्वारा लिंक कोड को हटा दिया जाता है। प्रथम दोनों चरण में सर्जरी के साथ-साथ रेडियोथेरेपी भी दी जाती है। यहां पर डॉक्टरों का कहना है कि आज कैंसर के इलाज में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। अब यह मौत का पर्याय नहीं है, बल्कि अंतिम अवस्था में भी मरीज का जीवन हम लंबा कर देते हैं।
डा.समीर कौल का कहना है कि धूम्रपान से कैंसर का रिश्ता जग-जाहिर है। आमाशय का कैंसर, नपुंसकता, फेफड़े एवं मुंह का कैंसर घाव के भरने में देरी जैसी बीमारियों के बारे में यह प्रमाणित हो चुका है कि इसका कारण मोटे तौर पर धूम्रपान ही है। धूम्रपान न केवल फेफड़े बल्कि मूत्राशय और कई अन्य अंगों के कैंसर का जन्मदाता भी है। यदि आप धूम्रपान करते हैं तो आपकी पत्नी और बच्चों एवं घर में साथ रहने वाले अन्य सदस्यों को भी फेफड़े के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। इस लिए तंबाकू स्वस्थ एंव खुशहाल जीवन के लिए अभिशाप है. तंबाकू का दूसरा रूप से बच्चे एवं युवा शामिल हैं।
मुुंह के कैंसर में सैलिवरी ग्लैंड के कैंसर के मामले भी बहुत ज्यादा देखने को मिलते हैं। इस कैंसर में क्यूकोपिडरमाइड या एडिनायड सिस्टिक कारसिनोमा और प्लियोमारफिक एडिनोमा कैंसर के मरीजों की संख्या ज्यादा है। ये दोनों कैंसर मुंह के अंदर जाकर जानलेवा हो सकते हैं। मुंह के कैंसर में जबड़े, जीभ या दूसरे अंगों के कटने के बाद ऐसे ही नहीं छोडऩा चाहिए, बल्कि सर्जरी के बाद काटकर हटाए गए अंगों या हिस्सों का पुननिर्माण बहुत जरूरी है, ताकि मरीज फिर से अपनी पहले वाली व्यवहारिक जिंदगी जी सके। सबसे बड़ी बात यह है कि तंबाकू के इस्तेमाल को अभी तक सामाजिक तौर पर मान्यता प्राप्त है। विशेष सामाजिक आयोजनों और शुभ अवसरों पर भी लोग सम्मिलित रूप से तंबाकू का सेवन करते देखे जा सकते हैं। कुछ कंपनियां तो बकायदा ऐसे आयोजनों को लेकर टीवी पर विज्ञापन भी देती है। सबसे खास बात तो यह है कि तंबाकू की घातक मुसीबतों से पहले हमें इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव से लाभ का अहसास होता है। परंतु, तुरंत के इस कथित लाभ में बाद की कितनी बड़ी हानि छिपी है, यह हम नहीं जान पाते हैं।
दरअसल इनका सेवन थोड़े समय तक करना भी खतरे से खाली नहीं है। वास्तव में तंबाकू की पहली खुराक ही खतरनाक होती हैं। पहली खुराक बल्कि ज्यादा ही खतरनाक होती है। इसमें मौजूद निकोटीन नामक मादक, तत्व आप को दूसरी, फिर तीसरी और चौथी खुराके के लिए विवश कर देता है। इसका असर सीधे-सीधे आदमी के दिमाग पर पड़ता है और व्यक्ति इसका आदी होता जाता है और अंत युवा भी कैंसर का शिकार बन जाते हैं।
मुंह व गले का कैंसर हमारे खान-पान व आदतों से जुड़ी बीमारी है और इसका परिणाम भी घातक ही होता है। भले ही अब अंतिम अवस्था तक इसके इलाज की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन इनसे बचाव ही बेहतर और सबसे सरल इलाज है।

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