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Tuesday 4 June 2019

जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है

भक्तजनो का लगा ताँता, हजारो की संख्या में भक्तजन प्रसाद कर रहे ग्रहण

सुल्तानपुर। ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सभी मंगल ‘बडा़ मंगल’ के रूप में मनाए जाते हैं और इस आयोजन में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आदि सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

मंगलवार के इस आयोजन में जनपद के जगह जगह भण्डारे का आयोजन किया जाता है इस परिप्रेक्ष में बड़ा मंगलवार के तीसरे मंगलवार को कलेक्ट्रेट के सामने मीडिया सेन्टर पर भण्डारे का आयोजन किया गया इस भण्डारा कार्यक्रम के आयोजक पत्रकार दिनेशश्रीवास्तव सहित बहुतायत की संख्या में मीडिया बन्धुओ के सहयोग से किया गया पत्रकार दिनेश श्रीवास्तव की पत्नी ने पवन पुत्र हनुमान की प्रतिमा पर माल्यर्पण कर भोग लगाकर भण्डारे की शुरआत की इस मौके पर उपस्थित पत्रकार अनूप श्रीवास्तव, शरद श्रीवास्तव, विकास मिश्र, ज्ञानेंद्र तिवारी, लाल जी, शिव कुमार मौर्य, अंशू श्रीवास्तव ,संतोष पाण्डेय, के डी शुक्ला, इम्तियाज रिजवी, राहुल सोनकर, श्रवण यादव, राजीव श्रीवास्तव आदि लोगो ने बजरंग बली के चित्र पर माल्यर्पण कर आम जनमानस को सभी कष्टों व् संकटो से दूर करने की कामना की।

क्या मान्यता है बड़ा मंगलवार का
मान्यता है कि इस परंपरा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगल शासक ने की थी। नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबिया ने उसका कई जगह इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह लखनऊ अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर आईं।

पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा। रूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड गईं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक ही रात में बीमार बेटा पूरी तरह से चंगा कैसे हो सकता है।

मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़-धनिया, भूने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद.. बंटवाया और प्याऊ लगवाए थे। तभी से इस बडे़ मंगल की परंपरा की नींव पडी़।

*बडा मंगल मनाने के पीछे एक और कहानी है। नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है। सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिए आलिया ने हनुमानजी की मूर्ति मंगवाई। हनुमानजी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी।

मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी लखनऊअलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा। आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता है।
चार सौ साल पुरानी इस परंपरा ने इतना बृहद रूप ले लिया है कि अब हर चौराहे, हर गली और हर नुक्कड पर भंडारा चलता है। पूरे दिन शहर बजरंगबली की आराधना से गूंजता रहता है और हर व्यक्ति जाति, धर्म, अमीरी-गरीबी सब भूला कर भंडारा में हिस्सा लेने और हनुमानजी का प्रसाद ग्रहण करने की होड़ में लग जाता है।

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