लखनऊ। कल तक मुख्यमंत्री योगी जिन्दाबाद और रीता बहुगुणा जोशी जिन्दाबाद के नारे लगाने वाले हजारों जनस्वास्थ्य रक्षक इस समय गहरी हताशा के दौर में हैं। बमुश्किल दो माह पहले ऐसा लगने लगा था कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य रक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर वाकई गंभीर है और लोकसभा चुनावों से पहले लगभग डेढ़ दशक से चले आ रहे इस आंदोलन पर कोई निर्णायक फैसला ले लिया जायेगा लेकिन अब तक ऐसा कुछ होता नजर नहीं आया है। लंबे समय से जनस्वास्थ्य रक्षकों की लड़ाई लड़ रहे।
अॉल इण्डिया कम्युनिटी हेल्थ वर्कर एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव मनोज कुमार का मानना है कि मुख्यमंत्री योगी और परिवार कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी के स्तर से जो प्रयास प्रारंभ किए गए थे, वे जनस्वास्थ्य रक्षकों के पक्ष में उत्साह जगाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन परिवार कल्याण निदेशालय और स्वास्थ्य विभाग के बीच यह पूरा मामला सरकारी फाइलों में उलझकर रह गया है। मंत्री स्तर से सैद्धांतिक सहमति मिलने के बावजूद कई जिलों से ग्राउण्ड सर्वे की रिपोर्ट तक शासन के पास न पहुँचना इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश के करोड़ों ग्रामीणों को संक्रामक बीमारियों के प्रकोप से बचाने वाली इस महत्वपूर्ण योजना को धरातल पर उतारने के लिए कितनी राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। एक सामान्य सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में हर साल पच्चीस से तीस हजार लोग ऐसी संक्रामक बीमारियों से मरते हैं जिन्हें थोड़ी सी सावधानी के साथ दूर किया जा सकता है। फिलहाल लोकसभा चुनाव सामने है और भाजपा नेतृत्व जनस्वास्थ्य रक्षकों के मामले में अभी बैकफुट पर नजर आ रहा है। अगर कांग्रेस, सपा या बसपा जैसी किसी विपक्षी पार्टी ने चुनावी मौसम में यह मुद्दा हथियाकर अपने घोषणा पत्र में डाल दिया तो अस्सी से अधिक लोकसभा सीटें रखने वाले उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में जनस्वास्थ्य रक्षकों की भाजपा नेतृत्व से नाराजगी चुनाव परिणामों की दिशा बदल सकती है।
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