मौलिक भारत के ट्रस्टी और भारत सरकार के पूर्व सचिव डॉ कमल टावरी एक अद्भुत व्यक्तित्व हैं। बड़े जीवट के व्यक्ति डॉ टावरी अपनी प्रशासनिक सेवा के लंबे दौर में ग्रामीण विकास, कृषि, कुटीर उद्योगों , किसान, मजदूर और कामगारों से अधिक जुड़े रहे जो सिविल सेवा में एक अपवाद जैसा है। देश की दो तिहाई ग्रामीण आबादी को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए अपने सेवानिवृत्त जीवन के पिछले एक दशक में उनकी कोशिशें और प्रयास भी उसी गति से जारी रहे किंतु कभी उनकी दिशा भटकी तो कभी सरकार का सहयोग नहीं मिला। लेकिन वो पूरे देश मे ऐसे लोगों का समूह बनाते रहे जो भारत की मिट्टी, संस्कृति और मौलिक जीवन धारा से जुड़े थे।
मौलिक सोच और जमीनी काम वाले हजारों जुझारू लोगो का नेटवर्क अब उनके साथ है। हमारे काम और चिंतन से खासे प्रभावित तो वे बर्षों से थे पर पिछले दो बर्षो में वे डायलॉग इंडिया और मौलिक भारत से औपचारिक रूप से जुड़ गए। डायलॉग इंडिया की उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए की जाने वाली रैंकिंग से जब वे नजदीक से जुड़े तो उनको उच्च शिक्षा संस्थानों और ग्रामीण भारत के पुनरुत्थान के बीच एक कड़ी दिखी जिसकी उन्होंने कई बार मुझसे विस्तार से चर्चा की। उनकी दृष्टि और कार्ययोजना ने मुझे प्रभावित किया। पिछले एक बर्ष में उन्होंने अपने पूरे नेटवर्क को मथा और सभी से विस्तृत चर्चा कर ग्रामीण भारत के सम्पूर्ण काया पलट की कार्ययोजना बनायी।
उन्होंने देश की पंचायतों, किसान नेताओं,लघु व मध्यम उद्योगों, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जोड़कर मानव संसाधन मंत्रालय को अपनी कार्ययोजना समझायी। इसके बाद मंत्रालय की सहमति से हमने अपने साथ जुड़े संगठन इंडो यूरोपियन कंफेडरेशन ऑफ स्माल एन्ड मीडियम इंडस्ट्री का आल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ टेक्निकल एडुकेशन के साथ एक समझौते को अंजाम दिया गया। मौलिक भारत, डायलॉग इंडिया और राष्ट्रीय पंचायत परिषद इसमें सहभागी बन गए और आगाज हुआ एक क्रांतिकारी पहल का।
जी हाँ, देश भर में एआईसीटीई से जुड़े दस हज़ार से भी अधिक तकनीकी संस्थान हैं जिनमें 80 लाख विद्यार्थी तकनीकी शिक्षा ले रहे हैं। इसके अलावा 3 करोड़ से अधिक एल्युमनी भी हैं। इनमें आधों को भी कारपोरेट और सरकारी क्षेत्र नोकरी नहीं दे पाते और देश मे शिक्षित बेरोजगारों की बाढ़ आई हुई है। एक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दशा बिगड़ी हुई है और दूसरी ओर शहर अत्यधिक जन दबाब में बिखर गए हैं। यह देश के लिए अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। देश की वर्तमान सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है। सरकार के समर्थन से देश के 6.5 लाख ग्रामो को तकनीकी रूप से शिक्षित युवाओं की फौज से जोड़ने के लिए एक संकल्प हम सबने मिलकर लिया। इसी संकल्प के तहत “विकसित गांव विकसित राष्ट्र” बिषय पर एआईसीटीई मुख्यालय में दो दिन की राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमे हमने पिछले दो बर्षो के अपने अथक परिश्रम, देश भर के सेकड़ो दौरों, बैठकों से एकसूत्र में पिरोए गए पूरे देश से जमीनी काम करने वाले लोगों को दिल्ली में बुलाया ताकि वे एआईसीटीई के प्रबंधकों और विशेषज्ञों के सामने कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाबो के लिए किए गए सफल प्रयोगों का प्रस्तुतिकरण किया गया। सभी संबंधित केन्द्र सरकार के मंत्रालयों को भी बुलाया गया और सांसद आदर्श ग्राम योजना को आधार बनाकर आगे की कार्ययोजना बनाई गई।
इस आयोजन की निम्न उपलब्धि रहीं –
1) पूरे देश से लगभग 600 लोग इस आयोजन में अपने खर्चे पर आए। इनको आने जाने, रहने खाने का कोई खर्च नहीं दिया गया। यानि जमीनी काम करने और उसे आगे बढ़ाने वाले संस्थान, संस्था और लोगों को ही आमंत्रित किया गया।
2) लगभग 150 से अधिक सफल प्रयोगों को इस कांफ्रेंस में प्रदर्शित किया गया। अब इनको एक पोर्टल पर एक साथ उपलब्ध कराया जाएगा।
3) कांफ्रेंस की सफलता से प्रभावित होकर एआईसीटीई ने औपचारिक रूप से घोषणा कर दी कि शुरुआत में एक हज़ार और अगले दो से तीन बर्षो में पचास हज़ार तक गाँव अपने से संबद्ध संस्थानों को गोद मे लेने की कार्ययोजना बनाई है।
4) अब तकनीकी संस्थानों के लिए एक अवसर है जो गोद लिए गावों का सर्वे और मैपिंग कर कृषि, कुटीर उधोगों और व्यापार के नए अवसरों को तलाशे और गाँव के लोगो से अपने विद्यार्थियों को जोड़े। यह विन विन सिचुएशन जैसा होगा यानि शुभ लाभ जिसमें ग्रामीणों को भी अपनी कमाई बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों की मदद मिलेगी और विशेषज्ञों को भी संबंधित क्षेत्र में नोकरी या अपना काम शुरू करने के अवसर। साथ ही सभी प्रकार की सरकारी एजेंसियों को ईस कार्य मे सहभागी बनने का स्पष्ट रोडमैप।
5) तकनीकी संस्थानों के विद्यार्थियों के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के माध्यम से रोजगार के नए अवसर सामने आ गए हैं, जिनसे उनके अनिश्चितता भरे भबिष्य के लिए नए अवसर खुल गए हैं। रोजगार न दे पाने के कारण बंद होते उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यह पहल एक संजीवनी जैसी है। इसी कारण सरकार सभी स्तरों पर इस पहल को आगे बढ़ाने की इच्छुक है।
6) हम सभी समाजसेवियों के लिए यह अवसर है कि देश मे फैल हुए 40 हज़ार से भी अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों को देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ने, संस्था के संचालकों और विद्यार्थियों को इस दिशा में प्रेरित और प्रशिक्षित करने के लिए ताकि अगले कुछ बर्षो में ग्रामीण भारत की आमदनी दोगुनी या अधिक हो सके और उसका ढांचागत विकास व्यवस्थित तरीके से हो सके।
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