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Sunday, 16 September 2018

स्वामी विवेकानन्द ने किया राष्ट्रीय गौरव का उद्घोष

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

सदियों की परतंत्रता ने भारत के मानवतावादी विचारों को धूमिल किया था। उंसकी जगह संकुचित, हिंसक और उपभोगवादी सभ्यता का वर्चस्व कायम हुआ हुआ था। भारत में ऐसे ही लोगों का शासन था। इसलिए इसी की प्रतिध्वनि बाहरी दुनिया को सुनाई दे रही थी। जबकि भारत को कभी विश्वगुरु माना जाता था। विदेशी शासन में यह छवि कायम नहीं रह सकी। वैश्विक सम्मेलनों में भारत की कोई आवाज नहीं होती थी। उसे उपेक्षा का सामना करना पड़ता था। शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द को भी इस उपेक्षा का सामना करना पड़ा था। उन्हें मात्र तीन मिनट का ही समय दिया गया था। यह आयोजकों की शरारत थी। धार्मिक विषयों पर तीन मिनट में कुछ भी कहना असंभव होता है। वह भी इतने व्यापक धर्म पर बोलना बढ़ी चुनौती थी, जिसमें कोई एक धर्मग्रन्थ या एक उपासना पद्धति नहीं है। ये तीन मिनट भारत को अपमानित करने और गुलामी का अहसास कराने के लिए दिए गए थे। स्वामी विवेकानन्द ने यह चुनौती स्वीकार की। जिन्होंने जानबूझकर कम समय दिया था, उनके हाँथ में समय बढ़ाना भी न रहा, इसके लिए श्रोताओं ने विवश कर दिया। इतना ही नहीं व्याख्यान समाप्त करने के बाद जब वह बाहर निकले तो भारत को उपेक्षित समझने वाले ही उनके पीछे चल रहे थे। इस ऐतिहासिक अवसर की सवा सौ वी जयंती पर विश्व में अनेक आयोजन किये गए। लखनऊ में ऐसे ही एक आयोजन में राज्यपाल राम नाईक ने संबोधित किया।

राज्यपाल ने कहा कि आज का दिन मार्गदर्शन प्राप्त करने वाला दिन है। स्वामी विवेकानन्द ने आज से एक सौ पच्चीस वर्ष पहले शिकागो में आयोजित धर्म संसद में अपनी बात रखकर विदेशियों को भारतीय संस्कृति व अस्मिता से अपने भाषण के माध्यम से परिचित कराया। विदेशों में जहां लोगों की सोच हो कि भारतीय अनपढ़ और गुलाम रहने के लायक हैं। ऐसी जगह जाना जहां भारतीयों और कुत्तों की मनाही हो, वहां अपना भाषण भाईयों और बहनों से आरम्भ करना उनके व्यक्तित्व की विशेषता है। स्वामी विवेकानन्द के उद्बोधन ने विश्व में भारत के प्रति दृष्टिकोण बदल दिया।

उन्होंने कहा कि धर्म संसद में लोगों को जोड़ना उनके अलौकिक व्यक्तित्व का परिचायक है। आज की परिस्थितियों में उनकी बातों पर विचार करने की आवश्यकता है। सही मार्गदर्शन मिले तो देश का नवनिर्माण होता है। स्वामी जी से ऊर्जा प्राप्त करके हमें संकल्प के साथ संकल्प सिद्धि का प्रयास करना होगा। स्वामी विवेकानन्द ने धर्म संसद में उपस्थित लोगों को द्वेष रहित होकर भाईयों और बहनों कहकर सम्बोधित किया।

स्वामी जी ने कहा कि हम उस देश से आते हैं, जिसका मानना है कि पूरा विश्व एक ईश्वर की सन्तान है और भारत सभी धर्मों को सच्चा मानते हुए सम्मान करता है। स्वामी जी का मानना था खोज और ज्ञान समदर्शी और महान बनाता है। भारत में विधिवता ही विश्व में हमारी पहचान बनाता है। भारतीय चिंतन में सहिष्णुता है। आज भी विविधता में एकता की मिसाल कायम है। इस छवि को ज्यादा मजबूत बनाने की आवश्यकता है। भारत के लोगों को अपनी गौरवपूर्ण विरासत का ध्यान रखना चाहिए।

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