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Tuesday 30 April 2019

चुनावी माहौल में ‘पीएम कैंडीडेट’ वाली पॉलिटिक्स ने पकड़ा जोर

विपक्ष में मची पीएम बनने की होड़!

सत्ता पक्ष से एक ही नाम, विरोधी दलों से आ रहें कई नाम

रवि गुप्ता
लखनऊ। कहते हैं कि किसी भी देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था में जितना महत्व सत्ता पक्ष का होता है, उतनी ही अहमियत विपक्ष की भी होती है। लेकिन देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्यों पर गौर करें तो यहां पर तो विपक्ष बिखरा हुआ ही नहीं बल्कि इसके सभी सहयोगी दलों के बीच प्रधानमंत्री बनने की होड़ सी मची हुई है। कहने को तो विपक्षी पार्टियां Ñमहागठबंधन के मंच पर एक साथ होने का दावा करते आ रहीं, मगर जहां पीएम प्रत्याशी की बात आती है तो सभी के सुर अलग-अलग हो जाते हैं। यही नहीं कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जो पहले तो सक्रिय राजनीति से दूर रहने की कसमें खाते हैं, मगर चुनावी माहौल में जैसे ही मौका मिलता है तो अपने ही दल के किसी दूसरे नेता के कंधे पर बंदूक रखकर अपने पीएम बनने की चाहत को जगजाहिर करने से नहीं चूकते।

वहीं राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस श्रेणी में कुछ दल तो ऐसे भी हैं जो हवाई बयानबाजी और कागजी लिखा-पढ़ी से दो कदम आगे बढ़कर कहीं न कहीं आॅनलाइन की दुनियां में यह प्रसारित करने में लगे रहें कि उनके लिए तो कभी विश्व के सबसे ताकतवर नेता ने पीएम बनने की बात कही थी।
बहरहाल, इंडिया में अपने-अपने दल के पीएम कैंडीडेट की ऊठापटक वाली राजनीति का कुछ ऐसा ही चेहरा इन दिनों 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रहा है। दो-तिहाई सीटों पर चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न होने के साथ ही पक्ष-विपक्ष को मिलाकर बतौर पीएम उम्मीदवार कई नेताओं का नाम लिया जाने लगा। एनडीए की बात करें तो यहां पर मोदी और केवल मोदी को ही पीएम प्रत्याशी के तौर पर प्रोजेक्ट करते हुए लोस चुनाव लड़ा जा रहा है, जबकि दूसरी ओर यूपीए की मौजूदा राजनीतिक स्थितियों को देखें तो इसके सबड़े दल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पीएम बनाने को लेकर भी अन्य सहयोगी दलों के बीच अभी तक स्वीकार्यता नहीं बनती दिख रही है। दरअसल, विभिन्न दलों के बीच पीएम प्रत्याशी का शिगूफा चुनाव से पहले ही सार्वजनिक होना शुरू हो गया था। मगर हाल-फिलहाल जब एनसीपी के सर्वेसर्वा व वरिष्ठ राजनीतिज्ञ शरद पवार ने अपने पसंदीदा पीएम कैंडीडेट के तौर पर बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू का नाम लिया तो अभी तक ठंडे बस्ते में पड़े रहे इस विषय को जैसे फिर से गर्म हवा मिल गई।

ऐसे में इस चुनावी वातावरण में जनता-जनार्दन से जुडेÞ कई अहम मुद्दे पिछड़ गए और ‘पीएम कैंडीडेट’ राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया। वहीं इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ल का कहना है कि इसमें कोई गलत बात नहीं है कि लोकतांत्रिक चुनावी व्यवस्था में पीएम प्रत्याशी के मद्देनजर विभिन्न पार्टियों के एक से अधिक प्रत्याशी का नाम सामने आये। लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि देश की हालिया राजनीति पर गौर करें तो सत्ता पक्ष कहीं अधिक केंद्रीकृत प्रतीत होती है, तो वहीं विपक्ष में एक प्रकार से बिखराव वाला नकारात्मक विकेंद्रीकरण नजर आता है। ऐसे में अगर विपक्ष के बीच से एक से अधिक पीएम उम्मीदवार का नाम सार्वजनिक मंच पर लिया जायेगा तो यह स्थिति उसके राजनीतिक अस्तित्व के लिए भयावह साबित हो सकती है…क्योंकि देश की हर खासो-आम जनता किसी भी हाल या परिस्थिति में स्थिर, मजबूत व टिकाऊ सरकार चाहती है!

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